कोरोना काल में देश और दुनिया में हो सकती है दवाओं की भारी किल्लत, जानिए क्या है वजह h3>
हाइलाइट्स:
- भारत में कोरोना के मामलों में तेजी से चीन ने कुछ कार्गो फ्लाइट्स रोकी
- फार्मा इंडस्ट्री के मुताबिक दुनिया में दवाओं की भारी किल्लत हो सकती है
- भारतीय दवा कंपनियों का 60 से 70 फीसदी कच्चा माल चीन से आता है
- भारत में बनी दवाएं अमेरिका समेत पूरी दुनिया को एक्सपोर्ट की जाती हैं
नई दिल्ली
भारत की दवा कंपनियों ने चेतावनी दी है कि चीन से आने वाली कुछ कार्गो फ्लाइट्स के बंद होने से देश और दुनिया में दवाओं की भारी किल्लत हो सकती है। अमेरिका काफी हद तक दवाओं के लिए भारत पर निर्भर है और उत्पादन में किसी तरह की कमी से अमेरिका में लाखों लोगों द्वारा नियमित रूप से इस्तेमाल की जाने वाली दवाओं का टोटा पड़ सकता है।
भारत में कोरोना के मामलों में तेजी को देखते हुए चीन की सरकारी सिचुआन एयरलाइंस (Sichuan Airlines) ने 26 अप्रैल से भारत के लिए 15 दिन के लिए कार्गो फ्लाइट्स पर रोक लगा दी। इंडियन ड्रग मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन की नैशनल प्रेजिडेंट महेश दोशी के मुताबिक भारतीय दवा कंपनियों का 60 से 70 फीसदी कच्चा माल चीन से आता है। भारत में बनी दवाएं पूरी दुनिया को एक्सपोर्ट की जाती हैं।
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सप्लाई चेन पर असर
दोशी ने 29 अप्रैल को विदेश मंत्री को लिखे पत्र में कहा कि अगर चीन से आने वाली कार्गो फ्लाइट्स पर रोक जारी रहती है तो इसका पूरी सप्लाई चेन पर असर हो सकता है। इससे देश में जरूरी दवाओं की भारी किल्लत हो सकती है और साथ ही निर्यात भी बुरी तरह प्रभावित हो सकता है। अगर देश में दवाओं का उत्पादन प्रभावित होता है तो इसका दुनिया पर व्यापक असर हो सकता है।
अमेरिका में जिन जेनरिक दवाओं का इस्तेमाल होता है उसका एक बड़ा हिस्सा सन फार्मा और डॉ रेड्डीज लैब बनाती हैं। साथ ही अमेरिका और यूरोप की कई दिग्गज फार्मा कंपनियों ने भारत में मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स खोल रखी हैं। करीब 40 लाख लोग भारत की फार्मा इंडस्ट्री में काम करते हैं। देश में कोरोना के मामलों में तेजी से दवा फैक्ट्रियों में उपस्थिति में मामूली गिरावट आई है। अगर स्थिति और बदतर होती है तो वर्कर्स की संख्या में गिरावट आएगी।
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केवल भारत में बनती हैं 62 जेनरिक दवाएं
अमूमन दवा कंपनियां इस बात का खुलासा नहीं करती हैं कि उनकी दवाएं कहां बनाई जाती हैं। हालांकि US Pharmacopeia ने इस बारे में एक प्रोजेक्ट शुरू किया है। इसके मेडिकल सप्लाई मैप में 77 फीसदी जेनरिक दवाओं की लोकेशन की पहचान की गई है। इसकी प्रवक्ता एनी बेल के मुताबिक 62 जेनरिक दवाएं केवल भारत में बनती हैं। इनमें से कई बैक्टीरिया और वायरस के संक्रमण के इलाज में काम आती हैं। अमेरिका ने जितने आवेदन मंजूर किए हैं उनमें से 31 फीसदी एक्टिव इनग्रीडिएंट मैन्युफैक्चरिंग फैसिलिटीज भारतमें हैं। पिछले साल चीन के कुछ हिस्सों में लॉकडाउन के कारण अमेरिका में कुछ दवाओं की कमी हो गई थी।
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भारत का नुकसान, चीन का फायदा
इस बीच कुछ निवेशक इस बात पर दाव लगा रहे हैं कि भारत की फार्मा इंडस्ट्री इस संकट के कारण बैठ जाएगी और इसका फायदा किसी दूसरे देश को होगा। पिछले हफ्ते हॉन्ग कॉन्ग के Zhongtai International में एनालिस्ट Scarlett Shi ने कहा था कि ऐसी अटकलें हैं कि अगर भारत में दवा कंपनियों का उत्पादन प्रभावित होता है तो इसका फायदा चीन की कंपनियों को होगा। इसके बाद चीन की दवा कंपनियों के शेयरों में भारी उछाल आई थी।
हाइलाइट्स:
- भारत में कोरोना के मामलों में तेजी से चीन ने कुछ कार्गो फ्लाइट्स रोकी
- फार्मा इंडस्ट्री के मुताबिक दुनिया में दवाओं की भारी किल्लत हो सकती है
- भारतीय दवा कंपनियों का 60 से 70 फीसदी कच्चा माल चीन से आता है
- भारत में बनी दवाएं अमेरिका समेत पूरी दुनिया को एक्सपोर्ट की जाती हैं
भारत की दवा कंपनियों ने चेतावनी दी है कि चीन से आने वाली कुछ कार्गो फ्लाइट्स के बंद होने से देश और दुनिया में दवाओं की भारी किल्लत हो सकती है। अमेरिका काफी हद तक दवाओं के लिए भारत पर निर्भर है और उत्पादन में किसी तरह की कमी से अमेरिका में लाखों लोगों द्वारा नियमित रूप से इस्तेमाल की जाने वाली दवाओं का टोटा पड़ सकता है।
भारत में कोरोना के मामलों में तेजी को देखते हुए चीन की सरकारी सिचुआन एयरलाइंस (Sichuan Airlines) ने 26 अप्रैल से भारत के लिए 15 दिन के लिए कार्गो फ्लाइट्स पर रोक लगा दी। इंडियन ड्रग मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन की नैशनल प्रेजिडेंट महेश दोशी के मुताबिक भारतीय दवा कंपनियों का 60 से 70 फीसदी कच्चा माल चीन से आता है। भारत में बनी दवाएं पूरी दुनिया को एक्सपोर्ट की जाती हैं।
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सप्लाई चेन पर असर
दोशी ने 29 अप्रैल को विदेश मंत्री को लिखे पत्र में कहा कि अगर चीन से आने वाली कार्गो फ्लाइट्स पर रोक जारी रहती है तो इसका पूरी सप्लाई चेन पर असर हो सकता है। इससे देश में जरूरी दवाओं की भारी किल्लत हो सकती है और साथ ही निर्यात भी बुरी तरह प्रभावित हो सकता है। अगर देश में दवाओं का उत्पादन प्रभावित होता है तो इसका दुनिया पर व्यापक असर हो सकता है।
अमेरिका में जिन जेनरिक दवाओं का इस्तेमाल होता है उसका एक बड़ा हिस्सा सन फार्मा और डॉ रेड्डीज लैब बनाती हैं। साथ ही अमेरिका और यूरोप की कई दिग्गज फार्मा कंपनियों ने भारत में मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स खोल रखी हैं। करीब 40 लाख लोग भारत की फार्मा इंडस्ट्री में काम करते हैं। देश में कोरोना के मामलों में तेजी से दवा फैक्ट्रियों में उपस्थिति में मामूली गिरावट आई है। अगर स्थिति और बदतर होती है तो वर्कर्स की संख्या में गिरावट आएगी।
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केवल भारत में बनती हैं 62 जेनरिक दवाएं
अमूमन दवा कंपनियां इस बात का खुलासा नहीं करती हैं कि उनकी दवाएं कहां बनाई जाती हैं। हालांकि US Pharmacopeia ने इस बारे में एक प्रोजेक्ट शुरू किया है। इसके मेडिकल सप्लाई मैप में 77 फीसदी जेनरिक दवाओं की लोकेशन की पहचान की गई है। इसकी प्रवक्ता एनी बेल के मुताबिक 62 जेनरिक दवाएं केवल भारत में बनती हैं। इनमें से कई बैक्टीरिया और वायरस के संक्रमण के इलाज में काम आती हैं। अमेरिका ने जितने आवेदन मंजूर किए हैं उनमें से 31 फीसदी एक्टिव इनग्रीडिएंट मैन्युफैक्चरिंग फैसिलिटीज भारतमें हैं। पिछले साल चीन के कुछ हिस्सों में लॉकडाउन के कारण अमेरिका में कुछ दवाओं की कमी हो गई थी।
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भारत का नुकसान, चीन का फायदा
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