Corona In UP: कोरोना से जूझ रही मां के लिए बेटे-बेटी ने कार को बना दिया ‘कोविड वार्ड’, कोरोना को हराया h3>
यसरा हुसैनलखनऊ
कोरोना के कहर से पूरा देश कराह रहा है। इस मुसीबत के दौर में लखीमपुर खीरी के रहने वाले एक भाई-बहन की जोड़ी ने अपनी कोरोना से संक्रमित मां को बचाने के लिए अनोखा रास्ता अपनाया है। उन्होंने अपनी मां के इलाज के लिए अपनी कार को ‘कोरोना वार्ड’ की शक्ल दे दी। दरअसल, कोरोना पीड़ित मां को डायलिसिस की जरूरत थी। ऐसे में भाई-बहन की जोड़ी ने कार की छत पर ऑक्सीजन सिलेंडर रखकर मां का इलाज शुरू कर दिया।
दोनों भाई-बहन कार की अगली सीट पर बैठ गए और पीछे की सीट को ‘बेड’ बना दिया। लखीमपुर खीरी से लखनऊ आए इन लोगों को बड़ी मुश्किलों से बीमार मां को पांचवें दिन अस्पताल में बेड नसीब हुआ है और अगले पांच दिन बाद उनकी सेहत में सुधार हुआ। इस दौरान कोरोना पीड़ित मां के दोनों बच्चों को अस्पताल की पार्किंग में 10 दिन बिताने पड़े। इस दौरान भाई को भी कोविड 19 का संक्रमण हो गया।
कोरोना के शक में कराया टेस्ट
बीते 20 अप्रैल को 25 साल की पायल और उनका 23 साल का भाई आकाश लखीमपुर खीरी से अपनी मां को डायलिसिस के लिए लखनऊ लेकर आए थे। उन्होंने सोचा कि मां का डायलिसिस कराने के बाद शाम तक वह अपने घर लौट जाएंगे। आमतौर पर ऐसा ही होता था लेकिन दुर्भाग्य से उसी दिन मां को तेज बुखार आ गया तो उन्होंने मां का आरटी-पीसीआर टेस्ट कराया। पायल बताती हैं कि उन्होंने मां का कोरोना टेस्ट कराने के लिए सैंपल दिया क्योंकि उन्हें कोविड का शक था। उन्होंने लखनऊ में किसी रिश्तेदार के यहां या होटल में रुकना ठीक नहीं समझा। लोकल ठेले से खाना खरीदने के बाद वह अस्पताल की पार्किंग में गाड़ी खड़ी कर उसी कार में सो गए।
अस्पताल ने डायलिसिस से किया मना
पायल बताती हैं कि दूसरे दिन मां की रिपोर्ट कोरोना पॉजिटिव निकली। जिस अस्पताल में मां का डायलिसिसि होता था, उसने अब डायलिसिस से मना कर दिया। जैसे-तैसे दोस्तों की मदद से एक दूसरा अस्पताल डायलिसिस के लिए राजी हुआ लेकिन जैसे ही मां का ऑक्सीजन लेवल कम हुआ उसने भी मना कर दिया। उन्होंने बताया कि अब हमारे पास लखीमपुर जाने का विकलप नहीं था। हमने सरकार से मदद मांगी लेकिन नतीजा सिफर था।
ऑक्सीजन लेवल में आया सुधार
हालांकि, एक कॉन्टैक्ट के जरिये 1300 रुपये में ऑक्सीजन की 5 कैन मिली। यह कैन कुछ मिनट चलीं। 22 अप्रैल से हम लोग कुछ बेहतर होने की उम्मीद में लखनऊ में डटे रहे। अस्पताल डायलिसिस के लिए राजी हुआ क्योंकि मेरी मां का ऑक्सीजन लेवल काफी सुधर चुका था। इसके बाद कोरोना से जंग की नई चुनौती सामने आई। 23 अप्रैल तक हम लखनऊ में बने रहे और ऑक्सीजन की तलाश करते रहे।
भाई भी कोरोना पॉजिटिव
पायल ने बताया कि 23 अप्रैल को पिता लखीमपुर से ऑक्सीजन लेकर लखनऊ आ गए। हमने पिताजी से ऑक्सीजन लेकर उन्हें वापस भेज दिया ताकि उन्हें कोरोना से सुरक्षित रखा जा सके। 24 अप्रैल को आखिरकार मां को राममनोहर लोहिया में बेड मिला और इलाज के बाद 30 अप्रैल को अस्पताल से छुट्टी मिली। इस दौरान मेरा भाई आकाश भी कोरोना पॉजिटिव हो गया लेकिन बाद में वह ठीक हो गया। फिलहाल हमारा परिवार सुरक्षित है।
कोरोना के कहर से पूरा देश कराह रहा है। इस मुसीबत के दौर में लखीमपुर खीरी के रहने वाले एक भाई-बहन की जोड़ी ने अपनी कोरोना से संक्रमित मां को बचाने के लिए अनोखा रास्ता अपनाया है। उन्होंने अपनी मां के इलाज के लिए अपनी कार को ‘कोरोना वार्ड’ की शक्ल दे दी। दरअसल, कोरोना पीड़ित मां को डायलिसिस की जरूरत थी। ऐसे में भाई-बहन की जोड़ी ने कार की छत पर ऑक्सीजन सिलेंडर रखकर मां का इलाज शुरू कर दिया।
दोनों भाई-बहन कार की अगली सीट पर बैठ गए और पीछे की सीट को ‘बेड’ बना दिया। लखीमपुर खीरी से लखनऊ आए इन लोगों को बड़ी मुश्किलों से बीमार मां को पांचवें दिन अस्पताल में बेड नसीब हुआ है और अगले पांच दिन बाद उनकी सेहत में सुधार हुआ। इस दौरान कोरोना पीड़ित मां के दोनों बच्चों को अस्पताल की पार्किंग में 10 दिन बिताने पड़े। इस दौरान भाई को भी कोविड 19 का संक्रमण हो गया।
कोरोना के शक में कराया टेस्ट
बीते 20 अप्रैल को 25 साल की पायल और उनका 23 साल का भाई आकाश लखीमपुर खीरी से अपनी मां को डायलिसिस के लिए लखनऊ लेकर आए थे। उन्होंने सोचा कि मां का डायलिसिस कराने के बाद शाम तक वह अपने घर लौट जाएंगे। आमतौर पर ऐसा ही होता था लेकिन दुर्भाग्य से उसी दिन मां को तेज बुखार आ गया तो उन्होंने मां का आरटी-पीसीआर टेस्ट कराया। पायल बताती हैं कि उन्होंने मां का कोरोना टेस्ट कराने के लिए सैंपल दिया क्योंकि उन्हें कोविड का शक था। उन्होंने लखनऊ में किसी रिश्तेदार के यहां या होटल में रुकना ठीक नहीं समझा। लोकल ठेले से खाना खरीदने के बाद वह अस्पताल की पार्किंग में गाड़ी खड़ी कर उसी कार में सो गए।
अस्पताल ने डायलिसिस से किया मना
पायल बताती हैं कि दूसरे दिन मां की रिपोर्ट कोरोना पॉजिटिव निकली। जिस अस्पताल में मां का डायलिसिसि होता था, उसने अब डायलिसिस से मना कर दिया। जैसे-तैसे दोस्तों की मदद से एक दूसरा अस्पताल डायलिसिस के लिए राजी हुआ लेकिन जैसे ही मां का ऑक्सीजन लेवल कम हुआ उसने भी मना कर दिया। उन्होंने बताया कि अब हमारे पास लखीमपुर जाने का विकलप नहीं था। हमने सरकार से मदद मांगी लेकिन नतीजा सिफर था।
ऑक्सीजन लेवल में आया सुधार
हालांकि, एक कॉन्टैक्ट के जरिये 1300 रुपये में ऑक्सीजन की 5 कैन मिली। यह कैन कुछ मिनट चलीं। 22 अप्रैल से हम लोग कुछ बेहतर होने की उम्मीद में लखनऊ में डटे रहे। अस्पताल डायलिसिस के लिए राजी हुआ क्योंकि मेरी मां का ऑक्सीजन लेवल काफी सुधर चुका था। इसके बाद कोरोना से जंग की नई चुनौती सामने आई। 23 अप्रैल तक हम लखनऊ में बने रहे और ऑक्सीजन की तलाश करते रहे।
भाई भी कोरोना पॉजिटिव
पायल ने बताया कि 23 अप्रैल को पिता लखीमपुर से ऑक्सीजन लेकर लखनऊ आ गए। हमने पिताजी से ऑक्सीजन लेकर उन्हें वापस भेज दिया ताकि उन्हें कोरोना से सुरक्षित रखा जा सके। 24 अप्रैल को आखिरकार मां को राममनोहर लोहिया में बेड मिला और इलाज के बाद 30 अप्रैल को अस्पताल से छुट्टी मिली। इस दौरान मेरा भाई आकाश भी कोरोना पॉजिटिव हो गया लेकिन बाद में वह ठीक हो गया। फिलहाल हमारा परिवार सुरक्षित है।