..जब रो पड़े थे सोराबजी, 2010 में आपातकाल का किस्सा सुनाकर भावुक हो गए थे पूर्व अटॉर्नी जनरल

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..जब रो पड़े थे सोराबजी, 2010 में आपातकाल का किस्सा सुनाकर भावुक हो गए थे पूर्व अटॉर्नी जनरल

जब रो पड़े थे सोराबजी, 2010 में आपातकाल का किस्सा सुनाकर भावुक हो गए थे पूर्व अटॉर्नी जनरल

हाइलाइट्स:

  • कोरोना संक्रमित होने के बाद देश के पूर्व अटॉर्नी जनरल सोली सोराबजी का निधन
  • सोराबजी को यूनाइटेड नेशन ने 1997 में नाइजीरिया में विशेष दूत बनाकर भेजा
  • एक किस्से को याद करते हुए सोराबजी ने कहा एक वक्त ऐसा आया जब मैं रो पड़ा

नई दिल्ली
देश के पूर्व अटॉर्नी जनरल सोली सोराबजी का आज 30 अप्रैल को निधन हो गया। कोरोना संक्रमित होने के बाद उन्हें हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था। सोली सोराबजी की पहचान देश के बड़े मानवाधिकार वकीलों में थी। उन्हें यूनाइटेड नेशन ने 1997 में नाइजीरिया में विशेष दूत बनाकर भेजा था। सोराबजी अपनी बात कहने से कभी चूकते नहीं थे। 2010 में उन्होंने न्यायपालिका के संदर्भ में एक ऐसी बात कही जिसकी चर्चा लंबे समय तक देश में हुई।

जब रो पड़े थे सोराबजी
देश के पूर्व अटॉर्नी जनरल सोली सोराबजी ने 2010 में एक किस्से को याद करते हुए कहा कि वो कभी नहीं रोए, केस हारने के बाद भी भावुक नहीं होते लेकिन, एक वक्त ऐसा आया जब वो रो पड़े थे। न्यायिक स्वतंत्रता पर नई दिल्ली में एक व्याख्यान के दौरान सोली सोराबजी ने भावुक होकर कहा कि आपातकाल के दौरान जब नानी पालखीवाला के साथ सुप्रीम कोर्ट में हेवियस कॉपर्स पर बहस करते हुए उन्होंने पाया कि न्यायमूर्ति वाई वी चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पीएन भगवती जैसे विख्यात जजों ने अपनी आत्मा बेच दी है। तब वो रो पड़े थे।

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सोराबजी ने जब यह बात कही उसके बाद देश में इसकी चर्चा काफी दिनों तक हुई। न्यायपालिका की स्वतंत्रता और जिम्मेदारी दोनों साथ- साथ चलनी चाहिए। सोराबजी ने इस बारे में कहा था कि दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। संविधान की बात करें तो विधायिका और कार्यपालिका की तरह न्यायपालिका लोकतंत्र का स्तंभ है। इसकी स्वतंत्रता की बात की जाती है लेकिन व्यवस्था का ताना- बाना ऐसा है कि सत्ता के दबाव- प्रलोभन से यह पूरी तरह मुक्त नहीं हो पाता है।

चीफ जस्टिस और कानून मंत्री के बीच टकराव
राम जेठमलानी जिस वक्त देश के कानून मंत्री थे उस दौरान सोली सोराबजी एटॉर्नी जनरल थे। कुछ कानूनी मसलों पर राम जेठमलानी और तत्कालीन चीफ जस्टिस ए एस आनंद के बीच टकराव की स्थिति पैदा होने लगी।

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मामला इस कदर बढ़ गया कि न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच टकराव की स्थिति पैदा हो गई। इस टकराव को रोकने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल जी ने जसवंत सिंह को बोलकर जेठमलानी का इस्तीफा मांगा। जेठमलानी ने भी तुरंत इस्तीफा दे दिया।

इस पूरे मसले पर लोगों की अलग- अलग राय है। हालांकि कुछ लोग मानते हैं कि कानून मंत्री होने के नाते सोली सोराबजी जस्टिस आनंद विवाद में जेठमलानी ने गलत बयान दिया था।

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