दक्षिण अफ्रीका में गांधी जी कहाँ रहते थे?

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महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका में थे। उन्होंने वहां की ब्रिटिश सरकार के खिलाफ अहिंसक युद्ध छेड़ रखा था। गांधीजी ने वहां फीनिक्स आश्रम की स्थापना की थी, जहां रहकर वे आंदोलन का संचालन करते थे। उनके साथ जो लोग थे, वे गांधीजी के सादगीपूर्ण तरीकेसे जीवन-यापन के सिद्धांतों का पालन करते थे।
एक दिन एक युवक गांधीजी के पास आया और उनके आश्रम में रहने की इच्छा व्यक्त की। उसे वहां के नियमों की जानकारी दी गई। उसने नियमों का पालन करने पर सहमति जताई। नियमों में से एक था – एक माह तक बिना नमक का भोजन करना। युवक ने उस नियम का पालन करने का प्रण लिया। गांधीजी ने उसे आश्रम में रहने की अनुमति दे दी। कुछ समय तक युवक ने उत्साह से नियमों का पालन किया, किंतु फिर उसका मन नमकरहित भोजन से ऊब गया।

उसने डरबन से मसालेदार स्वादिष्ट भोज्य पदार्थ मंगवाए और स्वयं तो खाया ही, आश्रम के अन्य मित्रों को भी खिलाया। बाद में उनमें से एक ने गांधीजी को यह बात बता दी। गांधीजी ने आश्रम के सभी सदस्यों को बुलाकर पूछा- ‘क्या तुम लोगों ने वह स्वादिष्ट भोजन किया?’ सभी ने इंकार किया। यह सुनते ही गांधीजी ने अपने दोनों गालों पर जोरों से थप्पड़ मारना शुरू कर दिया और बोले- ‘मुझसे सच्चई छिपाने में कसूर तुम्हारा नहीं, मेरा ही है, क्योंकि शायद अभी तक मैंने पूर्णसत्य का गुण प्राप्त नहीं किया है।इसलिए सत्य मुझसे दूर भागता है।’ गांधीजी को निरंतर स्वयं को सजा देते देख उन सभी को अपनी भूल का अहसास हुआ और उन्होंने गांधीजी से क्षमायाचना की। सत्य के आग्रही को समाज के नैतिक सुधार के लिए कीमत चुकानी पड़ती है। वस्तुत: सत्संकल्प सत्समाज का निर्माता होता है।

1893 में गांधीजी एक साल के कॉन्ट्रैक्ट पर वकालत करने दक्षिण अफ्रीका गए थे। वह उन दिनों दक्षिण अफ्रीका के नटाल प्रांत में रहते थे। किसी काम से दक्षिण अफ्रीका में वह एक ट्रेन के फर्स्ट क्लास कंपार्टमेंट में सफर कर रहे थे। उनके पास वैध टिकट भी था लेकिन उनको सफेद रंग का नहीं होने के कारण कंपार्टमेंट से निकल जाने को कहा गया। गांधीजी रेलवे अधिकारियों से भिड़ गए और कहा कि वे लोग चाहें तो उनको उठाकर बाहर फेंक सकते हैं लेकिन वह खुद से कंपार्टमेंट छोड़कर नहीं जाएंगे। वास्तव में अन्याय के खिलाफ खड़े होने की यही हिम्मत तो सविनय अवज्ञा थी।

इस घटना से गांधीजी टूटने की बजाए और मजबूत होकर उभरे। उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में रंग के नाम पर होने वाले भेदभाव और भारतीय समुदाय के उत्पीड़न के खिलाफ लड़ने का दृढ़ निश्चय किया। यहीं से गांधीजी का एक नया अवतार जन्म लेता है और अन्याय के खिलाफ लड़ने के लिए कमर कस लेते हैं। कॉन्ट्रैक्ट खत्म होने के बाद भी उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में ही रुकने का फैसला किया। उन्होंने दक्षिण अफ्रीका के एक कानून के खिलाफ मुहिम चलाई जिसके तहत भारतीय समुदाय के लोगों को वोट देने का अधिकार प्राप्त नहीं था। 1894 में उन्होंने नटाल इंडियन कांग्रेस का गठन किया और दक्षिण अफ्रीका में भारतीय नागरिकों की दयनीय हालत की ओर दुनिया का ध्यान खींचा।

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