राहुल गांधी और अमित शाह की उम्र में कितना फर्क है?

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और रही बात राहुल गांधी और अमित शाह की उम्र में 6 साल का फर्क है

कांग्रेस के राहुल गांधी निर्विरोध अध्यक्ष चुने गए थे। हालांकि, वे कांग्रेस के सबसे यंग प्रेसिडेंट नहीं थे। उनके पिता राजीव गांधी महज 40 की उम्र में पार्टी प्रेसिडेंट बन गए थे। 2012 में कांग्रेस ने उनके नेतृत्व में यूपी में चुनाव लड़ा। तब से अब तक राहुल ने 36 चुनाव में पार्टी का नेतृत्व किया। वहीं, अमित शाह 2014 के लोकसभा चुनाव के वक्त बीजेपी की सेंट्रल पॉलिटिक्स में एक्टिव हुए और बाद में प्रेसिडेंट बने।आपको बता रहा है अमित शाह और राहुल गाँधी के बीच में फर्क।और रही बात राहुल गांधी और अमित शाह की उम्र में 6 साल का फर्क है .

सबसे पहले जानिए: राहुल के बारे में

1) पहली बार: कांग्रेस वर्किंग कमेटी ने नवंबर 2016 में एक रिजॉल्यूशन पास कर राहुल को प्रेसिडेंट बनाने की सिफारिश की थी। 131 साल में ऐसा पहली बार हुआ था जब CWC ने किसी नेता का नाम आगे बढ़ाया।

2) रिकॉर्ड प्रेसिडेंटशिप के बाद मिला चार्ज: सोनिया गांधी 1998 में कांग्रेस प्रेसिडेंट बनीं। उनके नाम सबसे लंबे वक्त तक अध्यक्ष पद पर बने रहने का रिकॉर्ड है। उनके 19 साल के दौरान 10 साल यूपीए की सरकार भी रही। राहुल ने उनके बाद चार्ज संभाला।

3) निर्विरोध चुनाव: 2000 में कांग्रेस संगठन के चुनाव में सोनिया गांधी के खिलाफ जितेंद्र प्रसाद खड़े हुए। इसके बाद ऐसा कोई मौका नहीं आया जब सोनिया को किसी नेता की चुनौती का सामना करना पड़ा हो। राहुल के साथ भी यही हुआ। वे निर्विरोध चुने गए।

4) बुरे दौर में कांग्रेस: कांग्रेस के पास इतिहास में सबसे कम 44 लोकसभा सीटें हैं। इमरजेंसी के पास पहली बार ऐसा हुआ है जब हिमाचल, पंजाब, कर्नाटक जैसे चुनिंदा 5 राज्यों में ही कांग्रेस की सरकार है।

5) कोई नंबर-2 नहीं: बीते 19 साल में जब बागडोर सोनिया के पास थी तब प्रणब मुखर्जी, मनमोहन सिंह या राहुल गांधी अपने-अपने दौर में जाहिर तौर पर पार्टी में नंबर-2 थे। अब राहुल के प्रेसिडेंट बन जाने के बाद बड़ा सवाल यह है कि पार्टी में नंबर-2 कौन होगा?

अमित शाह जैसी कामयाबी के लिए राहुल को क्या करना होगा?

1) बूथ लेवल पर मजबूती के साथ वोटर बेस बढ़ाना होगा

  • 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 44 सीटें मिलीं। वोट सिर्फ 19.5% मिले। वहीं, बीजेपी ने 31.3% वोटों के साथ खुद के बूते ही मेजॉरिटी हासिल कर 282 सीटें जीत लीं।
  • इसी साल हुए उत्तर प्रदेश के चुनावों को लें तो वहां बीजेपी ने 40% वोट हासिल कर रिकॉर्ड 312 सीटें जीतीं। वहीं राहुल की अगुआई में कांग्रेस ने पंजाब में चुनाव जीता और 38.8% हासिल किए। यानी राहुल को अगर पार्टी को दोबारा मजबूत करना है तो हर चुनाव में कम से कम 38 से 40% वोट शेयर रखना होगा। इसके लिए उन्हें बीजेपी के मुकाबले कांग्रेस को भी बूथ लेवल पर मजबूत करना होगा।

2) सीटें

  • राहुल के लिए ये जरूरी होगा कि वे पार्टी को मजबूती देने के लिए चुनाव में कांग्रेस की सीटें बढ़ाएं। इससे लोकसभा में पार्टी की आवाज मजबूत होगी और राहुल पर पार्टी के जमीनी कार्यकर्ताओं का भरोसा बढ़ेगा।

3) मोदी-शाह से अकेले मुकाबला करना होगा

  • चुनाव रैलियों में राहुल को अकेले ही मोदी-शाह का मुकाबला करना होगा। ये वे तभी कर सकते हैं जब वे ‘विकास को क्या हुआ, विकास पागल हो गया’ जैसे जुमले लेकर आएं। हाल ही में गुजरात दौरे पर राहुल का यह बयान पॉपुलर हुआ और बीजेपी के कई नेताओं को इसका जवाब देने के लिए आगे अाना पड़ा।

4) नई टीम बनानी होगी

  • नरेंद्र मोदी जब 2014 में बीजेपी के पीएम कैंडिडेट बने और चुनाव जीते तो वे संगठन में अमित शाह को ले आए। शाह ने फिर अपनी टीम बनाई और 3 साल में 11 चुनाव जीते।
  • राहुल को भी अमित शाह की तरह अपनी नई टीम चुननी होगी। सोनिया के कार्यकाल के दौरान प्रणब मुखर्जी, मनमोहन सिंह, अहमद पटेल, मोतीलाल वोरा, वीरप्पा मोइली, पी. चिदंबरम, गुलाम नबी आजाद, दिग्विजय सिंह जैसे नेताओं की टीम थी। राहुल को इन नेताओं से अलग नए चेहरों के साथ टीम चुननी होगी।

5) अलायंस मजबूत करने होंगे

  • अमित शाह के बीजेपी का नेतृत्व संभालने के बाद बीजेपी ने जम्मू-कश्मीर और महाराष्ट्र में अकेले चुनाव लड़ा। लेकिन वहां बाद में पीडीपी और शिवसेना के साथ सरकार बनाई। गोवा और मणिपुर में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी नहीं थी, फिर भी उसने वहां बाकी दलों को जोड़कर सरकार बना ली।
  • इसी तरह तमिलनाडु में AIADMK के दोनों धड़े कभी भी एनडीए में शामिल हो सकते हैं। बिहार में भी बीजेपी ने जदयू को आरजेडी-कांग्रेस से अलग कर अपने साथ मिला लिया और वहां एनडीए की सरकार बना ली।
  • राहुल को भी जम्मू-कश्मीर, तमिलनाड़ु, ओडिशा, बंगाल जैसे राज्यों में साथी तलाशने होंगे। 2019 के आम चुनाव से पहले यूपीए को मजबूत करना होगा।

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साभार-www.bhaskar.com