परशुराम का जन्म त्रेता युग (रामायण काल) में एक ब्राह्मण ऋषि के घर हुआ. इनको भगवान विष्णु का छठवें अवतार माना जाता है. भगवा भोलेनाथ द्वारा प्रदान किए गए परशु धारण करने के कारण इनको परशुराम कहा जाता है. हिंदू कैलेंडर की बात करें तो इसके अनुसार, शुक्ल पक्ष के दौरान तीसरे दिन (तृतीया) को परशुराम जयंती वैशाख महीने में मनाई जाती है. जो आमतौर पर अप्रैल या कभी मई के महीने में मनाई जाती है. भगवान परशुराम की पूजा बड़े धूम-धाम से की जाती है. अगर आप घर में भगवान परशुराम की पूजा करना चाहें तो घऱ में भी पूजा कर सकते हैं.
दूसरे हिंदू धर्म के पर्व और त्यौहारों के तरह ही परशुराम जयंती के दिन भी सूर्योदय से पहले पवित्र तीर्थों में या फिर घर में गंगाजल मिले जल से स्नान करना अति शुभ माना जाता है. स्नान के बाद पूजा में धुले हुए सफेद वस्त्र ही पहनना चाहिए. पूजा में भगवान विष्णु एवं पशुराम जी को चंदन, तुलसी के पत्ते, कुमकुम, अगरबत्ती, फूल और मिठाई चढ़ाकर पूजा करनी चाहिएं. ऐसा माना जाता है कि परशुराम जयंती के दिन व्रत रखने से श्रेष्ठ और कुल उद्धारक पुत्र की प्राप्ति होती है. इस दिन के व्रत में केवल दूध का ही सेवन करना चाहिए
शास्त्रों के अनुसार भगवान शिव के परम भक्त परशुराम न्याय के देवता माने जाते हैं,जिन्होंने 21 बार इस पृथ्वी को क्षत्रिय विहीन किया था. भगवान परशुराम की जयंती देश भर में धूमधाम से मनाई जाती है.परशुराम शस्त्रविद्या के महान ज्ञाता और गुरु थे. उन्होंने भीष्म, द्रोण व कर्ण को शस्त्रविद्या प्रदान की थी. ऐसा बताया जाता है कि कर्ण को उन्होनें ब्राह्मण पुत्र मानकर शिक्षा दी थी.
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लेकिन जब पता चला कि कर्ण क्षत्रिय कुल से संबंध रखता है, तो उन्होनें कर्ण को श्राप दिया कि जब भी तुझे मेरी शिक्षा की सबसे ज्यादा जरूरत होगी. मेरी शिक्षा तेरे काम नहीं आएगी तुम मेरे द्वारा दी गई शिक्षा को भूल जाओगे. महाभारत के युद्ध में परशुराम द्वारा दिए गए श्राप के कारण ही कर्ण जरूरत के समय़ अपनी शिक्षा को भूल गए थे.