6 साल की उम्र में बंदूक थाम बना नक्सली, बेटी ने ऐसा इमोशनल किया कि छोड़ दिया खून-खराबा h3>
रवि सिन्हा, रांची: बॉलीवुड की फिल्म सरकार के एक सीन में डायलॉग है- ‘आदमी को मारने से पहले उसकी सोच को मारना जरूरी है’। यह बात काफी हद तक नक्सलवाद को लेकर फीट बैठती है। सुरक्षाबलों की ओर से चलाए जाने वाले ऑपरेशन में नक्सली मारे तो जाते हैं, लेकिन उनकी ओर से समाज के युवाओं में भरी जाने वाली सोच खत्म नहीं होती है। इस तरह नक्सलवाद निरंतर चलता आ रहा है। जहां तक नक्सलवाद की सोच को खत्म करने की बात है तो इसका एक ताजा उदाहरण रांची में मंगलवार को देखने को मिला। जो शख्स 6 साल की उम्र में नक्सली बन गया और उसके बाद उसने न जाने कितनी नृशंस वारदातों को अंजाम दिए। उसी 10 लाख रुपये के इनामी नक्सली सुरेश मुंडा ने झारखंड में सरेंडर कर दिया। खास बात यह है कि कुख्यात नक्सली की हिंसक सोच को बदलने में उसकी बेटी ने अहम रोल निभाया है। नक्सली सुरेश मुंडा में आए बदलाव की देखा-देखी 2 लाख के इनामी माओवादी लोदरा लोहरा ने भी सरेंडर किया है।
प्रतिबंधित नक्सली भाकपा-माओवादी के दो इनामी सदस्यों ने मंगलवार को पुलिस के समक्ष सरेंडर किया है। ऑपरेशन नई दिशा के तहत सरकार के आत्मसमर्पण व पुनर्वास नीति के तहत रांची जोनल आईजी कार्यालय में आयोजित एक समारोह में 10 लाख के इनामी सुरेश मुंडा और 2 लाख के इनामी माओवादी लोदरा लोहरा ने आईजी अभियान एवी होमकर के समक्ष सरेंडर किया। इस मौके पर रांची जोनल आईजी, डीआईजी, एसटीएफ और सीआरपीएफ के वरीय अधिकारी मौजूद रहे।
छह साल की उम्र से नक्सलियों के लिए काम करने लगा था सुरेश मुंडा
आईजी ऑपरेशन ने बताया कि आत्मसर्पण करने वाले सुरेश मुंडा के खिलाफ 67 मामले दर्ज हैं, जबकि लोदरो मुंडा के खिलाफ 54 मामले दर्ज हैं। झारखंड-बिहार में 90 के दशक में जब नक्सली गतिविधियां चरम थी, उस वक्त संगठन विस्तार के लिए माओवादी नेता हर गांव से कुछ बच्चे और युवाओं को अपने साथ ले जाते थे, ताकि माओवादियों की गतिविधियों की सूचना कोई पुलिस को नहीं दें। इसी क्रम में रांची के बुंडू-तमाड़ इलाके में 1997-98 में माओवादी कमांडर कुंदन पाहन का दस्ता सक्रिय था। कुंदन पाहन ने रांची के बुंडू थाना क्षेत्र के बारूहातु गांव निवासी सुरेश मुंडा को छह वर्ष की उम्र में दस्ते में शामिल करने के लिए जबरन गांव-घर से साथ ले जाया गया था।
इसके बाद सुरेश को सबसे पहले 1998 में जनमिलिशिया का काम दिया गया था और पुलिस की गतिविधि की सूचना नक्सली संगठन तक पहुंचाने की जिम्मेवारी थी। करीब 12-13 वर्ष की उम्र तक सुरेश कुंदन पाहन के दस्ते में रहा और 2002 उसे एरिया कमांडर बनाया गया, लेकिन 2004 में उसे पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया और जेल में 6 साल के बाद वह नकुल यादव और दिनेश चश्मा के दस्ते में काम करने लगा।
बाद में वह सारंडा के पोड़ाहाट जंगल में सक्रिय हो गया और 2012 में उसे सब जोनल कमांडर बनाया गया। इस दौरान उसने कई बड़ी घटनाओं को अंजाम दिया गया, जिसमें पुलिसकर्मियों पर हमला, हथियार लूट और आईईडी विस्फोट की घटना शामिल है।
बेटी के मिलने की जिद्द में नक्सली ने फेंकी बंदूक
सुरेश मुंडा ने जब सरेंडर किया उस वक्त उसकी 14 साल की बेटी भी वहीं मौजूद रही। उसने बताया कि मां की मौत के बाद से वह अकेली हो गई थी। रिश्तेदारों के यहां रहकर उसे अपनी पढ़ाई करनी पड़ रही है। मां की मौत के बाद से उसे पिता की कमी काफी खलती थी। वह जब कभी पिता सुरेश मुंडा से मिलती या बात करती तो वह उन्हें बंदूक छोड़कर सामान्य जीवन जीने को कहती। पिछले दिनों उसने पिता को एक चिट्ठी लिखी, जिसमें कहा- ‘पापा आप मेरे साथ क्यों नहीं रहते, कब तक इधर-उधर भटकते रहेंगे। आपके साथ के लोग सरेंडर कर सामान्य जीवन जी रहे हैं, आप भी सरेंडर कीजिए और मुझे अपने साथ रखिए। मम्मी के जाने के बाद मैं बेहद अकेली हो गई हूं’। बेटी चिट्ठी पढ़कर नक्सली सुरेश मुंडा इमोशनल हो गए और उन्होंने सरेंडर करने का फैसला लिया।
ट्रैक्टर चालक बन सुरक्षाबलों से ओझल बना था नक्सली लोदरो लोहरा
2 लाख के इनामी नक्सली लोदरो लोहरा उर्फ सुभाष वर्ष 2010 में संगठन से जुड़ा और उसके खिलाफ विभिन्न थानों में 54 अपराधिक मामले दर्ज है। खूंटी जिले के अड़की थाना क्षेत्र का रहने वाला लोदरो लोहरा घर में रहकर ट्रैक्टर चलाने का कार्य करता था, लेकिन कुंदन पाहन की धमकी के बाद वह भी 2010 में संगठन से जुड़ गया।
छह साल की उम्र से नक्सलियों के लिए काम करने लगा था सुरेश मुंडा
आईजी ऑपरेशन ने बताया कि आत्मसर्पण करने वाले सुरेश मुंडा के खिलाफ 67 मामले दर्ज हैं, जबकि लोदरो मुंडा के खिलाफ 54 मामले दर्ज हैं। झारखंड-बिहार में 90 के दशक में जब नक्सली गतिविधियां चरम थी, उस वक्त संगठन विस्तार के लिए माओवादी नेता हर गांव से कुछ बच्चे और युवाओं को अपने साथ ले जाते थे, ताकि माओवादियों की गतिविधियों की सूचना कोई पुलिस को नहीं दें। इसी क्रम में रांची के बुंडू-तमाड़ इलाके में 1997-98 में माओवादी कमांडर कुंदन पाहन का दस्ता सक्रिय था। कुंदन पाहन ने रांची के बुंडू थाना क्षेत्र के बारूहातु गांव निवासी सुरेश मुंडा को छह वर्ष की उम्र में दस्ते में शामिल करने के लिए जबरन गांव-घर से साथ ले जाया गया था।
इसके बाद सुरेश को सबसे पहले 1998 में जनमिलिशिया का काम दिया गया था और पुलिस की गतिविधि की सूचना नक्सली संगठन तक पहुंचाने की जिम्मेवारी थी। करीब 12-13 वर्ष की उम्र तक सुरेश कुंदन पाहन के दस्ते में रहा और 2002 उसे एरिया कमांडर बनाया गया, लेकिन 2004 में उसे पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया और जेल में 6 साल के बाद वह नकुल यादव और दिनेश चश्मा के दस्ते में काम करने लगा।
बाद में वह सारंडा के पोड़ाहाट जंगल में सक्रिय हो गया और 2012 में उसे सब जोनल कमांडर बनाया गया। इस दौरान उसने कई बड़ी घटनाओं को अंजाम दिया गया, जिसमें पुलिसकर्मियों पर हमला, हथियार लूट और आईईडी विस्फोट की घटना शामिल है।
बेटी के मिलने की जिद्द में नक्सली ने फेंकी बंदूक
सुरेश मुंडा ने जब सरेंडर किया उस वक्त उसकी 14 साल की बेटी भी वहीं मौजूद रही। उसने बताया कि मां की मौत के बाद से वह अकेली हो गई थी। रिश्तेदारों के यहां रहकर उसे अपनी पढ़ाई करनी पड़ रही है। मां की मौत के बाद से उसे पिता की कमी काफी खलती थी। वह जब कभी पिता सुरेश मुंडा से मिलती या बात करती तो वह उन्हें बंदूक छोड़कर सामान्य जीवन जीने को कहती। पिछले दिनों उसने पिता को एक चिट्ठी लिखी, जिसमें कहा- ‘पापा आप मेरे साथ क्यों नहीं रहते, कब तक इधर-उधर भटकते रहेंगे। आपके साथ के लोग सरेंडर कर सामान्य जीवन जी रहे हैं, आप भी सरेंडर कीजिए और मुझे अपने साथ रखिए। मम्मी के जाने के बाद मैं बेहद अकेली हो गई हूं’। बेटी चिट्ठी पढ़कर नक्सली सुरेश मुंडा इमोशनल हो गए और उन्होंने सरेंडर करने का फैसला लिया।
ट्रैक्टर चालक बन सुरक्षाबलों से ओझल बना था नक्सली लोदरो लोहरा
2 लाख के इनामी नक्सली लोदरो लोहरा उर्फ सुभाष वर्ष 2010 में संगठन से जुड़ा और उसके खिलाफ विभिन्न थानों में 54 अपराधिक मामले दर्ज है। खूंटी जिले के अड़की थाना क्षेत्र का रहने वाला लोदरो लोहरा घर में रहकर ट्रैक्टर चलाने का कार्य करता था, लेकिन कुंदन पाहन की धमकी के बाद वह भी 2010 में संगठन से जुड़ गया।