42 परिवारों तक जल पहुंचाने वाले धर्मेंद्र की कहानी: लोगों को बीमार देख लिविंग स्टैंडर्ड बदलने की ठानी, अब हर घर पहुंच रहा शुद्ध पानी – Varanasi News h3>
‘मैं अपने परिवार के साथ जब 2008 में यहां रहने आया तब यहां की स्थिति दयनीय थी। हमने जमीन लेकर झोपड़ी डालकर रहना शुरू किया। यहां बगल में ही वनवासी और नट बस्ती है। पानी के लिए एक हैंडपंप था। जो खराब था।
.
से प्रधान से कहकर रीबोर करवाया पर उससे भी गंदा पानी आने लगा। कई वनवासियों के साथ मैं और पिताजी भी बीमार हो गए। ऐसे में मैंने कुछ करने की ठानी और फिर सबमर्सिबल बोरिंग के लिए जुट गया। आज खुशी है कि 42 घरों को 24 घंटे निशुल्क पानी दे रहा हूं।’ ये कहना है कि वाराणसी के सारनाथ के भैंसोड़ी गांव के रहने वाले धर्मेंद्र कुमार का। धर्मेंद्र पिछले 3 सालों से वनवासियों और नट बस्ती तक 42 परिवारों को शुद्ध जल पहुंचा रहे हैं।
धर्मेंद्र के माता-पिता ने लव मैरिज की। परिवार के तिरस्कार ने उन्हें घर ही नहीं सथवां गांव छोड़ने पर विवश कर दिया। वह गांव छोड़कर भैंसोड़ी पहुंचे। यहां वनवासियों और नट बस्ती की हालत ने उन्हें अंदर तक झकझोर दिया। उन्होंने कोरोना में मदद की। इसके बाद परिवारों को शुद्ध जल मुहैया कराने का बीड़ा उठा लिया। पत्नी अंजली ने मना किया पर धर्मेंद्र के कदम नहीं रुके।
धर्मेंद्र की इस मुहीम को किसने परवान चढ़ाया ? कितनी दिक्कतों का सामना करना पड़ा और अब वनवासियों और नट फैमिली का लिविंग स्टेंडर्ड पानी 24 घंटा मिलने से कितना बदला है? पेश है खास रिपोर्ट…
धमेंद्र ने कहा- कोविड के दौरान पाइप लाइन बिछाने का काम पूरा किया।
पहले पढ़िए बस्तियों की स्थिति के बारे में वाराणसी जिला मुख्यालय से 15 किलोमीटर दूर विकास नहीं पहुंचा है। सारनाथ और चिरईगांव ब्लॉक में आने वाले भैंसोड़ी गांव में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले वनवासियों और नट बस्ती को शुद्ध और साफ पेयजल नहीं नसीब हुआ। कारण, इस बस्ती को जल निगम टीले पर मानता है। इसलिए पाइपलाइन नहीं बिछाई।
हालांकि ग्राम प्रधान ने एक हैंडपंप लगाया, जो गंदा पानी देता है। ऐसे में सोमारू प्रसाद के बेटे धर्मेंद्र ने साल 2021 में बस्ती को शुद्ध पेयजल देने का बीड़ा उठाया।
धर्मेंद्र के प्रयास से 42 परिवारों को शुद्ध पेयजल मिल रहा है।
खेतों की नालियों और माइनर का पी रहे थे पानी धर्मेंद्र ने बताया- गांव के पास ही यहां नट और वनवासी बस्ती है। वहां एक महिला थी जो लालमन वनवासी की पत्नी थी। वो एकदम कंकाल की तरह थी। उसे देखकर लोग डर जाते थे। उसे ले जाकर हम लोग बीएचयू तक दिखाकर लाए पर उसकी बिमारी का पता नहीं चल सका। बस डॉक्टर ने ये बताया कि इसकी यह हालत पानी की वजह से हुई है।
धर्मेंद्र ने बताया- उसके बाद मैंने देखा तो पाया कि वनवासी और नट बस्ती के लोग खेतों के लिए काटी गई नालियों और माइनरों का पानी इस्तेमाल कर रहे हैं। जिससे वो बीमार रह रहे हैं। उस समय कोरोना भी बीत चुका था। मैंने इसपर प्रधान साधू नाथ यादव से बात की तो उन्होंने बताया कि हैंडपंप है। उसे रीबोर करवा दे रहे हैं। उन्होंने हैंडपंप रीबोर करवाया। लेकिन उसका पानी भी ठीक नहीं था।
धर्मेंद्र और उनके पिता हुए बीमार धर्मेंद्र ने बताया- उस हैंडपंप का पानी पीने के बाद भी नट और वनवासी बीमार ही रह रहे थे। हम भी वहीं का पानी इस्तेमाल कर रहे थे क्योंकि हमारे घर में पाइप तब नहीं था। ऐसे में और पिता जी भी बीमार पड़े। मै जब बिमारी से उठा तो मैंने ठान लिया कि कुछ न कुछ अच्छा करना है ताकि वनवासी जो गरीब हैं उनका लिविंग स्टैंडर्ड बदल सके।
धर्मेंद्र ने बताया- कुछ दिन हम लोगों ने दूसरे के घर से पानी लेना शुरू किया पर वो लोग भी परेशान हुए तो उन्होंने भी बाल्टियां उठाकर फेकना शुरू कर दी। इसपर बहुत आक्रोश आया लेकिन कुछ बोला नहीं और अपने प्रयासों में जुट गया।
चंदा मांगा तो लोगों ने बनाया मजाक, उड़ाई हंसी
पानी के लिए परेशान बस्ती के लिए धर्मेंद्र ने अपने दोस्तों से राय कर पहले सबमर्सिबल की बोरिंग कराने की ठानी। मिस्त्री से बात की तो उसने बताया की सबमर्सिबल की बोरिंग में डेढ़ लाख रुपए लगेगा। इसके बाद हम लोगों ने चंदा इकट्ठा करने की ठानी। धर्मेंद्र ने बताया- जब मै चंदा लेने के लिए निकला और लोगों को इस प्लान के बारे में बताया तो कुछ लोगों ने मेरी हंसी उड़ाई। कुछ ने तो यहां तक कहा कि खाने कमाने का धंधा बना लिया है। फिर भी मेरे कदम नहीं डिगे। कई लोगों ने बेइज्जती कर दुकान और मकान से निकाल दिया।
फिर भी मैंने एक महीने के घूम-घूमकर पैसे इकट्ठे किए। कई जगह से गालियां भी मिली। बताया कि 10 हजार रुपए भी जुटा नहीं पाए थे।
अब जानिए धर्मेंद्र के टूटते सपने को किसने सहारा दिया और कैसे वनवासियों और नट बस्ती तक पानी पहुंचा?
मंजू ने कहा- हमारे परिवार के लोग अब बीमार नहीं होते। साफ पानी पहुंच रहा है।
टूटती आस को तिब्बत विश्वविद्यालय ने दिया सहारा धर्मेंद्र ने बताया- एक समय आय कि मेरी हिम्मत जवाब देने लगी। इसी दौरान हमें पाने दोस्त के माध्यम से तिब्बती विश्वविद्यालय के बारे में पता चला। लोगों ने बताया वहां जाएंगे तो आप का सहयोग वो अवश्य करेंगे क्योंकि आप नेक काम कर रहे हो।
धर्मेंद्र ने बताया- वह तत्कालीन कुलपति प्रोफेसर गेसे नवांग सम्पटेन जी के पास पहुंचे। वहां मुझे कुलसचिव प्रमोद कुमार सिंह और रजिस्ट्रार हिमांशु पांडेय जी मिले। सभी से बात हुई तो कुलपति ने इसे तुरंत स्वीकार कर लिया और बोले की कितना खर्च आएगा। इसपर मैंने उन्हें अपने गांव का विजिट कराया। प्रधान से टीम मिली और प्रतिक्रया ली। प्रधान ने उन्हें लिखित दिया जिसके बाद हमारी मदद हो पाई।
1 लाख 25 हजार का दिया चेक तिब्बती विश्वविद्यालय से हमें 1 लाख 25 हजार का पहला चेक मिला था। धर्मेंद्र ने बताया- इसके बाद बोरिंग शुरू हुई। बोरिंग के बाद पैसे कम पड़ गए लेकिन फिर हमारे पास पैसे नहीं थे। इसपर हमने फिर उनसे मदद के लिए पहुंचे तो कुलसचिव प्रमोद सर से मुलाकात की।
मैंने उनसे कहा, हम चाहते हैं की कुछ ऐसा हो जाए की हर घर टोटी लग जाए जिससे वो पानी उनके हिसाब से उनके तक पहुंचे। इसपर भी मदद हुई। इस दौरान ग्राम प्रधान ने पाइप रीबोर के मद से भी मदद की।
रोजाना 20 हजार लीटर पानी करते हैं सप्लाई धर्मेंद्र ने बताया – दोनों बस्तियों को मिलकर कुल 42 घर हैं। इन सभी घरों तक हमने करीब 1300 फिट 3 इंच और 500 फिट पौना इंच के पाइप से सप्लाई दी है। पाइप लाइन जमीन से 1 फिट नीचे से गई है। इन्हे पानी सप्लाई के लिए 4; एक-एक हजार की टंकिया लगाईं गई है।
इन टंकियों को रोजना दिन भर में 5 बार खाली होने पर भरा जाता है। ऐसे में रोजाना 20 हजार लीटर पानी का उपभोग ये 42 परिवार कर रहे हैं।
गर्मी में 7 हजार तो जाड़े में 4 हजार आता है बिल धर्मेंद्र के घर में लगे इस सबमर्सिबल का बिल गर्मी के महीने में 7 हजार से अधिक और जाड़े के महीने में 4 हजार से अधिक आता है। धर्मेंद्र ने बताया- कुछ दिनों से जॉब नहीं कर रहा। ऐसे में प्यासों की दिक्कत हुई तो हमने हाल ही में बकाया बिल के लिए ओटीएस सुविधा का लाभ लिया है। बिल भर रहे हैं।
जानिए वनवासियों और नट बस्ती के लोगों का कितना बदला लिविंग स्टैंडर्ड
दैनिक NEWS4SOCIALसे बात करते हुए धर्मेंद्र ने बताया कि अब यहां के लोगों को देखकर खुशी होती है, मेरा प्रयास सफल हुआ इसके लिए ऊपर वाले का धन्यवाद करता हूं।
पहले पास में खड़े होना था मुश्किल धर्मेंद्र ने बताया- जब मै यहां आया था तो इन लोगों के पास खड़ा होना मुश्किल होता था। क्योंकि ये कई-कई दिनों तक पानी की कमी की वजह से नहाते नहीं थे। इनका कपड़ा भी नहीं धुला जाता था। इस बस्ती से होकर लोग गुजरना नहीं पसंद करते थे। हर वक्त गंदगी का माहौल था।
धर्मेंद्र के प्रयासों से आज यहां का लिविंग स्टैंडर्ड बदल गया है। बस्ती में किसी भी प्रकार की स्मेल नहीं है। इसके अलावा बच्चे यहां हमेशा साफ सुथरे मिलते हैं। इसके अलावा कई लड़के ऐसे हैं जो सुबह तैयार होकर सेंट छिड़ककर काम पर जाते हैं। धर्मेंद्र ने बताया- अब यहां के लड़के रोज नहा रहे हैं। साफ-सफाई की वजह से किसी भी प्रकार की कोई बिमारी भी नहीं है।
माता-पिता ने किया अंतरजातीय विवाह, धर्मेंद्र ने छोड़ दिया गांव धर्मेंद्र के पिता सोमारू राम का घर सथवां गांव में है। धर्मेंद्र ने बताया- मेरे माता-पिता ने प्रेम विवाह किया। ऐसे में घर से उन्हें तिरस्कार मिला। सहते-सहते मेरी उम्र 18 साल हो गयी। जिसपर मैंने पिता जी वहां से अलग रहने को कहा और हम लोग एक किलोमीटर दूर भैंसोड़ी गांव में आकर किराए के मकान में रहने लगे।
उस दौरान हमने माता-पिता की दिक्कतों को देखा। तो हमारे मकान मालिक ने किसी तरह पिता जी द्वारा जुटाए गए पैसों से एक जमीन यहां दिलाई जिसपर हम लोग सपरिवार मड़ई डालकर रहने लगे।
……………………..
ये खबर भी पढ़ें-
शामली एनकाउंटर, गोली लगने से इंस्पेक्टर का लीवर फटा; 2 km पीछा किया, 40 मिनट में 50 राउंड फायरिंग
शामली में यूपी STF ने सोमवार आधी रात 4 बदमाशों का एनकाउंटर किया। मारे गए बदमाशों में सबसे बड़ा नाम पश्चिम यूपी के कुख्यात कग्गा गैंग को ऑपरेट करने वाले अरशद का था।
STF ने 2 Km तक बदमाशों की कार का पीछा किया। 50 राउंड फायरिंग हुई। STF इंस्पेक्टर सुनील कुमार घायल हो गए। उनका लीवर फट गया। बदमाशों की लोकेशन पुलिस को कैसे मिली? घेराबंदी कैसे हुई? बदमाशों ने क्यों फायरिंग शुरू की? पढ़ें पूरी खबर