33 गवाह, 36 पीएम रिपोर्ट्स, 150 साक्ष्य…नतीजा आरोपी बरी: इंदौर बावड़ी हादसे में आरोपियों को सजा नहीं दिला पाई पुलिस, जानिए कहां हुई चूक – Indore News h3>
चर्चित बावड़ी हादसे में 36 लोगों की मौत के मामले में दोनों आरोपियों श्री बेलेश्वर महादेव झूलेलाल मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष सेवाराम गालानी और सचिव मुरली को बरी कर दिया।
इंदौर के चर्चित बावड़ी हादसे में 36 लोगों की मौत के मामले में जिला कोर्ट ने दोनों आरोपियों श्री बेलेश्वर महादेव झूलेलाल मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष सेवाराम गालानी और सचिव मुरली को बरी कर दिया। दोनों के खिलाफ दोष साबित नहीं हुआ। जबकि केस में 33 लोगों की ग
.
दरअसल, पुलिस ने सिर्फ बयानों के आधार पर ट्रस्ट अध्यक्ष और सचिव के खिलाफ गैरइरादतन हत्या का केस दर्ज कर उन्हें गिरफ्तार किया। जबकि तत्कालीन और वर्तमान निगम अधिकारी, कर्मचारियों की भूमिका की जांच ही नहीं की। यहां तक कि कथन तक नहीं लिए गए।
हवन के दौरान टूट गई स्लैब
30 मार्च 2023 को रामनवमी के दिन स्नेह नगर स्थित बेलेश्वर मंदिर में हवन कराया जा रहा था। यहां पर पूर्व में स्लैब डालकर बावड़ी को बंद किया गया था। हवन कुंड की गर्मी और लोगों की भीड़ से स्लैब टूट गई।
कई लोग बावड़ी के अंदर गिर गए। बावड़ी करीब 60 फीट गहरी थी। इस दौरान कुछ लोग सीढ़ियों और रस्सियों के सहारे बाहर निकाल लिए गए। दूसरी ओर बावड़ी में पानी और कीचड़ था जिसमें फंसकर 36 लोगों की जान चली गई। सेना की मदद से 24 घंटे चले अभियान के दौरान शव निकाले जा सके थे।
हादसे में इन 36 लोगों की मौत हो गई थी।
एक साल बाद दर्ज किया और गिरफ्तार
करीब एक साल बाद 22 मार्च 2024 को पुलिस ने ट्रस्ट अध्यक्ष सेवाराम पिता गोकुलदास गालानी और सचिव मुरली पिता टेउमल के खिलाफ केस दर्ज किया। इन पर गैरइरादतन हत्या की धारा 304 (36 बार), गंभीर चोट पहुंचाने की धारा 325 (दो बार) और चोट पहुंचाने की धारा 323 (16 बार) लगाई गई। दरअसल, 36 बार यानी 36 लोगों की मौतें, गंभीर चोट में दो बार यानी दो लोग गंभीर रूप से घायल हुए थे। ऐसे ही 16 बार यानी 16 अन्य लोग घायल हुए थे जिन्हें कम चोटें थी।
- 22 मार्च 2024 को ही पुलिस ने अध्यक्ष सेवाराम गालानी और सचिव मुरली को गिरफ्तार किया।
- 25 मार्च 2024 को तीन दिन बाद ही पुलिस ने चालान भी पेश कर दिया। खास कारण इसमें मजिस्ट्रियल जांच को आधार रखा गया। यानी पुलिस की ओर से ठीक से जांच ही नहीं की गई थी और दोनों आरोपियों से पूछताछ भी पूरी कर ली गई।
- एक साल बाद 3 अप्रैल 2025 को जिला कोर्ट ने दोनों आरोपियों की लापरवाही नहीं पाए जाने बरी कर दिया।
हादसे के बाद इस स्थिति में है बावड़ी।
…इसलिए ये सभी थे जरूरी
दरअसल ये ढेरों दस्तावेजी साक्ष्य, एमएलसी, पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट्स, जब्ती आदि केस को मजबूत करने और न्याय दिलाने में अहम होते हैं। इसके चलते पुलिस ने चालान का यह पुलिंदा तैयार किया। खास यह कि यह एक साल की जांच है लेकिन दूसरे पहलू को देखे तो आरोपियों की गिरफ्तारी के तीन दिन बाद ही पुलिस ने चालान भी पेश कर दिया। यानी इन लोगों से पूछताछ, जब्ती आदि सारी की खानापूर्ति भी हो गई जबकि 36 मौतों की जांच का गंभीर मामला था।
पुलिस इन्वेस्टिगेशन की कमजोरियां
सुनवाई में यह तथ्य सामने आया कि ट्रस्ट के अध्यक्ष और सचिव होने के कारण सेवकराम और मुरली को आरोपी बनाया गया था। वहां बाउंड्री वॉल पर अवैध निर्माण किए जाने और उसे हटाए जाने को लेकर नोटिस संबंधी कोई दस्तावेज पेश नहीं किया गया। पुलिस प्रोसिडिंग में भी बाउंड्री के अवैध निर्माण का उल्लेख नहीं है। एक कमजोर पहलू यह रहा कि घटनास्थल से लगा ही पार्षद कार्यालय है। पुलिस ने पार्षद कार्यालय के किसी भी व्यक्ति के कथन तक नहीं लिए।
स्लैब कब, कौन से वर्ष और किसने बनवाई थी, इसका प्रमाण ही नहीं
नगर निगम का कार्यालय और पार्षद दोनों के ही कार्यालय घटनास्थल (बगीचे) में हैं। उसके बाद भी नगर निगम के माध्यम से दस्तावेजों की मांग नहीं की गई और न ही प्राप्त किए गए। यह तथ्य भी पता नहीं लगाया गया कि बावड़ी पर निर्माण (स्लैब) किस संस्था ने कराया था। किस वर्ष निर्माण हुआ था। कोर्ट ने प्रोसिडिंग में लिखा है कि ये सभी ऐसे तथ्य हैं जो दर्शाते हैं कि पुलिस विवेचना का स्तर कितना नीचे तक पहुंच गया है। मामले की सत्यता की खोज न करते हुए विवेचना महज एक खानापूर्ति रह गई है।
कोई भी आरोप नहीं हुआ प्रमाणित इसलिए बरी
आरोपित सेवाराम और मुरली के खिलाफ प्रमाणित नहीं हो पाया कि उनकी जानकारी में था कि बावड़ी की छत काफी कमजोर हो गई है। वह गिर सकती है, जनहानि हो सकती है। इस कारण दोनों पर दोष सिद्ध नहीं हुए और उन्हें सभी आरोपों से बरी किया गया।
ढाई साल के हितांश खानचंदानी की मौत हो गई। जब एम्बुलेंस अस्पताल पहुंची और उसमें बेटे का शव देखा, तो पिता प्रेमचंद फफक कर रो पड़े।
नगर निगम के जिम्मेदारों को आरोपी ही नहीं बनाया
आरोपियों के एडवोकेट राघवेंद्रसिंह बैस ने बताया कि मामले की मजिस्ट्रियल जांच हुई थी। इसके बाद पुलिस ने चालान पेश किया था। विवेचना के दौरान पुलिस ने सिर्फ ट्रस्ट के इन दोनों पदाधिकारियों को ही आरोपी बनाया। जबकि नगर निगम के जोन से संबंधित जिम्मेदारों को आरोपी ही नहीं बनाया।
मामले में 33 लोगों की गवाही हुई। इसमें सामने आया कि ट्रस्ट के अध्यक्ष और सचिव की इसमें कोई लापरवाही नहीं है। कोर्ट ने विवेचना अधिकारियों और निगम अधिकारियों की लापरवाही को लेकर टिप्पणी की है। केस में पुलिस ने ठीक से जांच नहीं की। केस में ट्रस्ट के लोगों की लापरवाही इसलिए नहीं मानी क्योंकि उन्हें जानकारी ही नहीं थी कि वहां बावड़ी है।
रहवासियों की प्रतिक्रिया, ट्रस्ट का कोई लेना-देना नहीं
रहवासी लक्ष्मीकांत पटेल का कहना है कि कोर्ट ने अपना काम किया है, जो मान्य है। शासन ने ट्रस्ट पदाधिकारियों के खिलाफ जो एफआईआर दर्ज की जबकि उनका घटना से कोई लेना-देना नहीं है। स्लैब संभवत: 1983-84 में डली थी जबकि ट्रस्ट 2017 में बना। ट्रस्ट का उद्देश्य माताजी के मंदिर का पुनरुद्धार करना था। ट्रस्ट का घटना से कोई संबंध ही नहीं था। नया मंदिर तो वहीं कुछ दूर बनाया जा रहा था। इस नए मंदिर में नगर निगम ने अड़चनें पैदा कि जिसके कारण उस रामनवमी (2023) तक मंदिर नहीं बन पाया था। घटना वाले दिन हवन अगर नए मंदिर में होता तो हादसा नहीं होता। यह मंदिर भी घटना के बाद नगर निगम ने तोड़ दिया।
पूरा मामला जमीन पर कब्जा करने का
रहवासी अवनीश जैन का कहना है कि घटना के 20 साल पहले तक बावड़ी खुली थी। फिर एक व्यक्ति द्वारा बावड़ी में कूदकर आत्महत्या करने के बाद उस पर छत डालकर मंदिर के नाम अस्थायी निर्माण कर लिया गया था। इसकी शिकायत तब जूनी इंदौर थाने में की गई थी। यहां जमीन पर कब्जा करने की लड़ाई है। एक माह पहले फिर पास में टिन लगाकर कब्जा किया गया है। 36 लोगों की मौत साधारण नहीं बल्कि एक तरह से उनकी हत्या का केस है। यह दुखद कांड देशभर में अपने आप में बहुत अलग और दुर्भाग्यपूर्ण है।