25 की उम्र में विधायक, 52 दिन की CM बनीं: सुषमा स्वराज रात में पुलिस स्टेशन पहुंच जातीं; जेल में सीखी कन्नड़ h3>
अक्टूबर 1998 का समय। दिल्ली की BJP की सरकार में CM की कुर्सी पर भयंकर खींचतान मची थी। एक तरफ थे पूर्व CM मदन लाल खुराना और दूसरी तरफ CM साहिब सिंह वर्मा। सुष्मिता दत्ता अपनी किताब ‘सुषमा स्वराज: द पीपल्स मिनिस्टर्स’ में लिखती हैं कि दोनों गुटों के का
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इधर प्याज की बढ़ी कीमत, बिजली की किल्लत और दिल्ली में बिगड़ती कानून व्यवस्था के चलते भी सरकार बदनाम हो रही थी। दो महीने बाद विधानसभा चुनाव थे। कांग्रेस शीला दीक्षित को CM फेस के तौर पर प्रदेश अध्यक्ष बनाकर मैदान में उतार चुकी थी।
शीला के मुकाबले के लिए एक महिला लीडर की जरूरत थी। वरिष्ठ पत्रकार सुशील कुमार सिंह के मुताबिक, लाल कृष्ण आडवाणी ने सुषमा से कहा कि आपको दिल्ली की बागडोर संभालनी होगी। सुषमा ने शर्त रखी, ‘अगर हम चुनाव हारे तो मैं इस्तीफा देकर केंद्र में वापस आ जाऊंगी।’ अटल-आडवाणी ने सुषमा की बात मान ली।
BJP दिल्ली का CM फिर बदलने जा रही थी। 11 अक्टूबर 1998 को प्रेस कॉन्फ्रेंस में CM साहिब सिंह ने ऐलान किया कि दिल्ली की अगली CM सुषमा स्वराज होंगी। सुषमा CM बनीं, लेकिन महज 52 दिनों के लिए।
मैं दिल्ली का CM सीरीज के तीसरे एपिसोड में सुषमा स्वराज के CM बनने की कहानी और उनकी जिंदगी से जुड़े किस्से…
दिल्ली CM पद की शपथ लेतीं सुषमा स्वराज। सुषमा 52 दिन CM रहीं। छोटे कार्यकाल पर वो कहती थीं कि मुझे मैच में आखिरी का ओवर खेलने के लिए मिला है और हर बॉल पर छक्का मारना है।
CM बिना सुरक्षा थाने पहुंचीं, नशे में मिले थानेदार को हटवाया सुषमा ने CM बनने के बाद उनकी सरकार ने चौराहे-चौराहे 40 रुपए वाला प्याज 10 रुपए किलो बेचा। दिल्ली में क्राइम चरम पर था। तब सुषमा ने कहा,
मैं रात में जागूंगी और दिल्ली निश्चिंत होकर सोएगी। मैं एक-एक थाना चेक करके देखूंगी कि पुलिस क्या कर रही है।
वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ मिश्रा बताते हैं, ‘सुषमा का ये दांव ही उल्टा पड़ गया। पुलिस केंद्र के अधिकार में थी। थाने में CM को सम्मान तो मिल सकता था, लेकिन वे किसी कॉन्स्टेबल काे भी सस्पेंड नहीं कर सकती थीं। वे रात में पुलिस थानों का दौरा करती थीं।’
एक बार सुषमा प्राइवेट गाड़ी से देर रात बिना सुरक्षा के साउथ दिल्ली के एक पुलिस स्टेशन पहुंचीं। थाने के SHO नशे में थे और ऐसी हालत में CM के सामने नहीं आना चाहते थे, लेकिन सुषमा अड़ गईं।
वरिष्ठ पत्रकार गुलशन राय खत्री बताते हैं कि सुषमा ने वहीं धरना दे दिया। आखिरकार SHO आए और उनके नशे में पाकर सुषमा ने केंद्रीय गृहमंत्री से सिफारिश करके उन्हें सस्पेंड करवा दिया। एक दूसरे थाने में एक पुलिस वाला सोता हुआ मिला, उसे भी सुषमा ने खूब लताड़ लगाई। ये किस्से मीडिया में छप रहे थे।
सिद्धार्थ मिश्रा बताते हैं कि सुषमा अपने हिसाब से ठीक काम रही थीं, लेकिन पुलिस सुषमा के खिलाफ हो गई। थानों पर छापेमारी का नुकसान सुषमा को उठाना पड़ा। विपक्ष सहित BJP के नेताओं ने भी कहा कि जब पुलिस CM के अधिकार क्षेत्र में नहीं है तो वे ऐसा क्यों कर रही हैं।
दिल्ली विधानसभा के पूर्व सचिव एसके शर्मा कहते हैं कि सुषमा स्वराज सिर्फ 52 दिनों तक CM रहीं। उन्हें विधानसभा का कोई सत्र नहीं बुलाने का मौका नहीं मिला। चुनाव हुए तो सुषमा हौज खास सीट से जीतीं, लेकिन भाजपा चुनाव हार गई। सुषमा ने भी विधायक पद से इस्तीफा दे दिया और दक्षिणी दिल्ली से सांसद बने रहने का फैसला किया।
वरिष्ठ पत्रकार अपर्णा द्विवेदी बताती हैं, ‘जब चुनाव हुए और नतीजे आए, तो मैं उनके घर पहुंची। वहां एकदम सन्नाटा था। गेट खुले हुए थे। मैं घर के अंदर पहुंची और दरवाजा खटखटाया। सुषमा स्वराज उस समय रो रही थीं। उन्होंने कहा कि थोड़ा समय दे दो। 5 मिनट में उन्होंने अपना चेहरा ठीक किया। फिर वो आईं और पूछा कि खड़े होकर बाइट दूं या बैठकर दूं? उन्होंने दरवाजे के बीच में खड़े होकर कहा कि देखिए इतना ही फासला था मुझमें और उसमें।’
शादी के बाद सुषमा और स्वराज कौशल। दोनों की पहली मुलाकात पंजाब यूनिवर्सिटी में लॉ की पढ़ाई के दौरान हुई थी।
कॉलेज में RSS वाली सुषमा और समाजवादी स्वराज में प्यार हुआ देश के बंटवारे के वक्त लाहौर के धरमपुरा इलाके के रहने वाले हरदेव शर्मा और लक्ष्मी देवी हरियाणा के अंबाला के कैंट एरिया में रहने लगे थे। हरदेव RSS से जुड़े थे।
14 फरवरी 1952 को उनके घर सुषमा का जन्म हुआ। सुषमा शर्मा बचपन से मेधावी थीं। अंबाला में सनातन धर्म कॉलेज से संस्कृत और पॉलिटिकल साइंस में ग्रेजुएशन के बाद सुषमा ने चंडीगढ़ में पंजाब यूनिवर्सिटी से लॉ किया और राजनीति में आईं।
इसी दौरान सुषमा शर्मा की मुलाकात स्वराज कौशल से हुई। ‘RSS के राष्ट्रवादी विचार’ वाली सुषमा और समाजवादी सोच के स्वराज कौशल के बीच दोस्ती हो गई। सुप्रीम कोर्ट में साथ में प्रैक्टिस करने के दौरान दोनों के बीच प्रेम का इजहार हुआ।
ये इमरजेंसी का दौर था, सोशलिस्ट और पूर्व रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नाडिंस पर आरोप लगा था कि उन्होंने बड़ौदा में अवैध रूप से डायनामाइट रखा था। जॉर्ज आपातकाल के विरोध में थे, डायनामाइट केस के बहाने उन्हें जेल में बंद कर दिया गया। स्वराज और सुषमा जॉर्ज का केस लड़ने के लिए एक साथ कोर्ट जाया करते थे।
शुरुआत में दोनों के घर वाले शादी के लिए तैयार नहीं थे। आखिरकार इमरजेंसी के बीच 13 जुलाई, 1975 को शादी हो गई।
इमरजेंसी के बाद के आम चुनावों में जॉर्ज फर्नांडिस ने जेल से ही चुनाव लड़ने का ऐलान किया। सुषमा स्वराज ने बड़ौदा जाकर जॉर्ज फर्नांडिस की तरफ से पर्चा भरा और एक नारा दिया- “जेल का फाटक टूटेगा, जॉर्ज हमारा छूटेगा।” ये नारा बहुत मशहूर हुआ और जॉर्ज चुनाव जीत गए।
25 की उम्र में पहली बार हरियाणा के मंत्री पद की शपथ के बाद राज्यपाल जयसुख लाल से चर्चा करतीं सुषमा स्वराज।
CM देवीलाल ने मंत्री पद से हटाया, आलाकमान ने वापसी कराई सुषमा स्वराज ने 1977 में अंबाला कैंट से विधानसभा का चुनाव जीता था। 25 साल की उम्र विधायक बनने वाली वो पहली महिला थीं। हरियाणा में जनता पार्टी की सरकार थी।
राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह और प्रोफेसर रवि दत्ता बाजपेयी अपनी किताब ‘चंद्रशेखर: द लास्ट आइकन ऑफ द आइडियोलॉजिकल पॉलिटिक्स’ में लिखते हैं,
कम उम्र के चलते हरियाणा के मुख्यमंत्री देवीलाल सुषमा स्वराज को अपने मंत्रिमंडल में शामिल नहीं करना चाहते थे। हालांकि, पार्टी अध्यक्ष चंद्रशेखर के कहने पर वे सुषमा को मंत्री बनाने के लिए मान गए।
तीन महीने भी नहीं हुए, सुषमा समाजवादी नेता मधु लिमये के साथ चंद्रशेखर से मिलने पहुंचीं और उन्हें बताया कि देवीलाल उन्हें बर्खास्त करने वाले हैं।
सुषमा के जाने के बाद चंद्रशेखर ने अपने पत्रकार मित्रों को फोन लगाया तो पता चला कि देवीलाल ने फरीदाबाद में एक कार्यक्रम के दौरान अपने एक मंत्री को बर्खास्त कर दिया है।
चंद्रशेखर ने देवीलाल को फोन मिलाकर सुषमा के बारे में पूछा। देवीलाल ने कहा, ‘हां वे मंत्री बनने लायक नहीं हैं। चंद्रशेखर ने उन्हें वापस मंत्री बनाने को कहा तो, देवीलाल का जवाब था, ‘ये नहीं हो सकता।’
चंद्रशेखर ने कहा, ‘तो फिर ठीक है, आप भी CM की कुर्सी पर नहीं रहेंगे। आपको पार्टी से सस्पेंड कर दिया जाएगा।’ देवीलाल को चंद्रशेखर से ऐसे निर्णय की उम्मीद न थी।
देवीलाल तुरंत अपने राजनीतिक गुरु चौधरी चरण सिंह की शरण में दिल्ली पहुंचे। चरण सिंह ने चंद्रशेखर से पूछा तो उन्होंने पूरी बात बताई। सुनते ही चौधरी चरण सिंह नाराज हो गए। उन्होंने भी देवीलाल को पार्टी से निकालने पर हामी भर दी।
देवीलाल दोबारा चंद्रशेखर से मिलने पहुंचे। इस बार चंद्रशेखर ने देवीलाल से कहा, ‘आपकी बेटी की उम्र की है। उसका वैसा ध्यान रखिए।’ इसके बाद आखिर तक सुषमा मंत्रिमंडल में बनी रहीं।
19 मार्च 1998 को अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में सूचना एवं प्रसारण मंत्री पद की शपथ लेतीं सुषमा स्वराज। संसद की कार्यवाही को दूरदर्शन पर लाइव दिखाने की शुरुआत सुषमा के कार्यकाल में ही हुआ था।
1976 में जेल में कन्नड़ सीखी, 23 साल बाद कन्नड़ में भाषण दिया सुष्मिता दत्ता अपनी किताब ‘सुषमा स्वराज: द पीपल्स मिनिस्टर्स’ में लिखती हैं कि 1999 में सोनिया गांधी अपना पहला लोकसभा चुनाव कर्नाटक के बेल्लारी से लड़ रही थीं। तब के BJP अध्यक्ष कुशाभाऊ ठाकरे चाहते थे कि सोनिया के सामने जबरदस्त उम्मीदवार उतारा जाए। सुषमा स्वराज का नाम तय हुआ।
बेल्लारी में सुषमा की पहली रैली में हिम्मत बढ़ाने खुद अटल बिहारी वाजपेयी पहुंचे। अटल के बाद सुषमा ने कन्नड़ में भाषण देना शुरू किया। लोग अचरज में पड़ गए, अटल भी चौंक गए।
सुषमा ये चुनाव तो हार गईं, लेकिन कन्नड़ बोलने के चलते सुषमा को बेल्लारी के लोगों का जबरदस्त प्यार मिला। दरअसल इमरजेंसी के दौरान सुषमा को भी गिरफ्तार करके बेंगलुरु जेल में बंद किया गया था। जेल में जनसंघ की कुछ कार्यकर्ताओं से सुषमा ने कन्नड़ सीखी थी। हालांकि, सुषमा को नहीं पता था कि 1976 में सीखी कन्नड़ 1999 के चुनावी भाषण में काम आएगी।
चुनाव हारकर भी सुषमा ने बेल्लारी को नहीं छोड़ा। वे 11 साल तक लगातार वर-महालक्ष्मी उत्सव के लिए बेल्लारी जाती थीं।
चुनाव लड़ने से इनकार किया तो पति ने धन्यवाद दिया 20 नवंबर 2018 को दोपहर 2 बजे इंदौर में सुषमा स्वराज ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की। उस समय वे MP के विदिशा से सांसद थीं। उस प्रेस कॉन्फ्रेंस में मौजूद रहे इंदौर के वरिष्ठ पत्रकार और क्रिकेट कमेंटेटर डॉ. सुशीम पगारे बताते हैं कि किसी ने सुषमा से उनके किडनी ट्रांसप्लांट को लेकर सवाल पूछा। वे थोड़ी देर चुप रहीं और बोलीं, ‘इसीलिए तो मैं अगला चुनाव नहीं लड़ना चाहती हूं।’
उन्होंने आगे कहा, ‘मुझे चुनाव लड़ाने का अधिकार पार्टी को है, लेकिन खराब सेहत के चलते मैंने मन बना लिया है कि अगला लोकसभा चुनाव नहीं लड़ूंगी। हाल ही में किडनी ट्रांसप्लांट हुआ है। डॉक्टरों ने कहा है कि धूल से बचना है।’
‘राजनीति में धूल से बचना संभव नहीं है। सालभर से मैं सभाओं में नहीं जा पा रही हूं। मैं विदेश जा सकती हूं, लेकिन अपने विदिशा नहीं जा सकती। कुछेक इलाके छोड़कर मेरा पूरा संसदीय क्षेत्र ग्रामीण है।’
अगले दिन सुषमा के पति स्वराज कौशल ने ट्वीट किया, ‘मैडम अब चुनाव न लड़ने के आपके फैसले के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। मुझे याद है एक समय ऐसा भी आया जब मिल्खा सिंह ने दौड़ना बंद कर दिया था।’
‘ये मैराथन भी 1977 से यानी 41 साल से जारी है। आपने 11 चुनाव लड़े हैं। 1977 से सभी चुनावों में हिस्सा लिया है, सिवाय दो बार के, जब पार्टी ने 1991 और 2004 में आपको चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं दी थी।’
हरीश साल्वे को उनकी फीस के एक रुपए देतीं सुषमा स्वराज की बेटी बांसुरी स्वराज।
हरीश साल्वे से कहा: ‘घर आकर एक रुपए ले जाना’ सीनियर वकील हरीश साल्वे बताते हैं, सुषमा स्वराज मेरी बड़ी बहन की तरह थीं। उन्होंने मुझसे कहा कि पाकिस्तान में कैद भारतीय नागरिक कुलभूषण जाधव का केस तुम लड़ोगे। तुम इंटरनेशनल कोर्ट फॉर जस्टिस (ICJ) में देश का पक्ष रखोगे।
उन्होंने मजाक में पूछा, ‘बताइए, कितनी फीस लेंगे।’ मैंने कहा, ‘देश का मामला है, मुझे केवल एक रुपया दीजिएगा। केस का फैसला भारत के पक्ष में आया।’
साल्वे बताते हैं, ‘6 अगस्त 2019 को मैंने रात 8:50 बजे उन्हें फोन लगाया। काफी देर बात हुई, उन्होंने मिलने को कहा। बोलीं कि मुझे आपके केस की जीत के लिए एक रुपया देना है, तुम्हें फीस लेने आना ही पड़ेगा। तुम कल शाम 6 बजे मुझसे मिलो। मैंने कहा, मैं आता हूं।’
साल्वे कहते हैं, ‘रात 12 बजे मेरे पास फोन आया कि सुषमा जी नहीं रहीं। मैंने कहा, ये क्या बकवास है। टीवी ऑन किया तो सभी चैनल एक ही बात कह रहे थे कि मेरी प्यारी बहन नहीं रही। रात साढ़े 11 बजे उनका निधन हो गया था।’
सुषमा की आखिरी इच्छा पूरी करने के लिए उनकी बेटी बांसुरी स्वराज ने 27 सितंबर 2019 को हरीश साल्वे को एक रुपया भेंट किया था।
सुषमा स्वराज जब सूचना एवं प्रसारण मंत्री थीं तो उन्होंने करवा चौथ का व्रत रखा जिसे मीडिया ने बहुत कवरेज दिया था। सुषमा और स्वराज कौशल ने अपने करियर की शुरुआत सुप्रीम कोर्ट में वकील के रूप में की थी। वहीं दोनों ने शादी करने का फैसला लिया था।
टीवी पर करवाचौथ मनाने वाली पहली मंत्री वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ मिश्रा बताते हैं कि सुषमा स्वराज की छवि ऐसे नेता की थी, जिन्होंने अपना भारतीय नारी का स्टेटस मेंटेन रखा था। वो हमेशा सलीके से साड़ी और लंबा सा मंगलसूत्र पहनतीं, लंबी मांग भरतीं।
उनके सूचना और प्रसारण मंत्री रहने के दौरान अचानक मीडिया में हल्ला हो गया कि सुषमा निर्जल करवाचौथ का व्रत रखेंगी। ये मीडिया के लिए बड़ी खबर थी।
प्राइवेट चैनल्स का जमाना आ गया था, सुषमा का करवाचौथ व्रत खूब कवर किया गया। दिनभर सजी-संवरी सुषमा को दिखाया गया। प्रिंट मीडिया ने भी अगले दिन पहले पेज पर उनकी फोटो छापीं।
सुषमा स्वराज की इकलौती बेटी बांसुरी बताती हैं, ‘वे भले ही कितनी भी व्यस्त हों डिनर हमारे साथ ही करती थीं। मेरे स्कूल के दिनों में हमेशा मेरा रिपोर्ट कार्ड देखती थीं। उन्होंने कोई भी पेरेंट्स-टीचर्स मीटिंग मिस नहीं की।’
मशहूर सुषमा के कुछ और अन्य किस्से
- सोनिया का विरोध: 2004 में सोनिया को PM बनाने के कांग्रेस के प्रस्ताव का विरोध करने वालों में सुषमा सबसे आगे थीं। उन्होंने ऐलान किया कि सोनिया PM बनती हैं तो वे सिर मुंडवा लेंगी। सफेद कपड़े पहनकर धरना देंगी, जमीन पर सोएंगी।
- भाषण: 1996 में संसद में निंदा प्रस्ताव के दौरान उनका एक बयान काफी मशहूर हुआ- ‘हां अध्यक्ष जी, हम सांप्रदायिक हैं, क्योंकि हम ‘वंदे मातरम’ गाने की वकालत करते हैं। हां, हम सांप्रदायिक हैं, क्योंकि हम धारा 370 को खत्म करना चाहते हैं।’
- ट्वीट: सुषमा के विदेश मंत्री रहने के दौरान एक व्यक्ति ने ट्वीट किया, ‘अगर मैं मंगल ग्रह में फंस गया तो? सुषमा ने जवाब दिया- ‘अगर आप मंगल ग्रह पर फंस गए हैं, तो भारतीय दूतावास आपकी मदद करेगा।’
- विवाद: 2015 में IPL के पूर्व प्रमुख और भगोड़े ललित मोदी की पत्नी को सर्जरी के लिए वीजा दिलाने में मदद का आरोप लगा। सुषमा ने कहा, ‘मैंने केवल मानवीय आधार पर मदद की। अगर ये अपराध है तो मैं अपराधी हूं। सदन जो चाहे सजा दे, मैं तैयार हूं।’
- काम: संसद की कार्यवाही दूरदर्शन पर लाइव दिखाने की व्यवस्था करने वाली सूचना और प्रसारण मंत्री।
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