1947 में लाल किले पर फहराए गए तिरंगे का राजस्थान से है खास नाता, जानिए स्वतंत्रता दिवस की रोचक किस्सा

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1947 में लाल किले पर फहराए गए तिरंगे का राजस्थान से है खास नाता, जानिए स्वतंत्रता दिवस की रोचक किस्सा

1947 में लाल किले पर फहराए गए तिरंगे का राजस्थान से है खास नाता, जानिए स्वतंत्रता दिवस की रोचक किस्सा

दौसा/ जयपुर: हिन्दुस्तान की आजादी का प्रतिक हमारा राष्ट्रध्वज तिरंगा हमारी शान है। हमारी राष्ट्रीय अस्मिता का प्रतीक है। इस बार हम आजादी का 77 वां स्वतंत्रता दिवस पर्व मनाने जा रहे है। पर क्या आप जानते हैं कि हमारी आजादी का पहला राष्ट्रध्वज तिरंगा राजस्थान के दौसा से बनकर तैयार हुआ था। माना जाता है कि वही तिरंगा 15 अगस्त 1947 को लाल किले पर देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने फहराया था। आज भी दौसा खादी समिति के सैंकडो बुनकर राष्ट्रध्वज तिरंगे का कपडा शान से बुन रहे हैं।

स्वतंत्रता सेनानी देशपाण्डे लेकर पहुंचे थे तिरंगा

लाल किले की प्राचीर पर स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री प.जवाहरलाल नेहरू ने जो तिरंगा फहराया था। वह दौसा जिले के आलूदा गांव का बना हुआ था। उस समय आलूदा गांव में रहने वाले सैकडों बुनकर परिवार महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित होकर चरखा कातते थे। उन्हीं के चरखे से कात कर हाथों से तिरंगे ध्वज को रंगकर स्वतंत्रता सेनानी देशपाण्डे जी दिल्ली लेकर गये थे। आलूदा के अलावा जयपुर जिले के गोविन्दगढ़ से भी तिरंगा दिल्ली भेजा गया था। पर बताया जाता है कि आजादी का पहला ध्वज दौसा का बना ही फहराया गया था।

दौसा और जयपुर से गए थे तिरंगे

आजादी से पूर्व चरखा संघ हुआ करता था और इसके संचालक देशपांडे होते थे। देशपांडे ने आजादी के समय आलूदा गांव के चौथमल बुनकर से तिरंगे का कपड़ा तैयार करवाया और उसे दिल्ली लेकर गए। बुनकर चौथमल ने करीब 2 माह में तिरंगे का कपड़ा तैयार किया था। स्वतंत्रता सेनानी टाट साहब ने इस कपड़े पर तिरंगा रंगा था। बताया जा रहा है कि देशपांडे की ओर से दौसा के आलूदा और जयपुर के गोविंदगढ़ से तिरंगे का कपड़ा बनवाकर ले जाया गया था। ऐसे में इस बात की पुष्टि नहीं है कि 15 अगस्त 1947 को दौसा या गोविंदगढ़ में कहां से बना हुआ तिरंगे के कपड़े का उपयोग हुआ था।

आजादी के बाद वर्ष 1967 में दौसा खादी की स्थापना हुई। तभी से दौसा के बनेठा और जसोदा में तिरंगे झंडे का कपड़ा तैयार किया जाता है । इसकी प्रोसेसिंग के लिए फिर मुंबई भेजा जाता है। मुंबई से तिरंगा तैयार होने के बाद पुनः दौसा आता है और यहां से इसे बाजार में भिजवाया जाता है। तिरंगे के कपड़े को बनाने के बाद प्रोसेसिंग यूनिट भी दौसा में स्थापित करने के लिए अनेक प्रयास हुए लेकिन दौसा में फ्लोराइड युक्त पानी होने के कारण प्रोसेसिंग यूनिट स्थापित नहीं हो सकी। ऐसे में आज भी तिरंगे का कपड़े को प्रोसेसिंग के लिए मुंबई भिजवाया जाता है।

ऐसा नहीं है कि पूरे देश में केवल दौसा में ही तिरंगे का कपड़ा तैयार किया जाता है। देश के मराठवाड़ा, हुगली, बाराबंकी और ग्वालियर में भी तिरंगे के कपड़े को तैयार किया जाता है। इनमें से मराठवाड़ा और हुगली में कपड़ा बनाने के साथ-साथ प्रोसेसिंग यूनिट भी स्थापित की गई है। वही दौसा, ग्वालियर और बाराबंकी में बने तिरंगे के कपड़े को प्रोसेसिंग के लिए मुंबई भेजा जाता है। ऐसे में इन तीनों जगह से तिरंगे का कपड़ा तैयार कर मुंबई भिजवाया जाता है और फिर वहां से विक्रय के लिए पुनः आता है।

दौसा के जसोता और बनेठा में अभी भी बन रहे तिरंगे

बताया जाता है कि हालांकि तिरंगे की कपड़े को बनाने वाले बुनकरों को आर्थिक रुप से ज्यादा फायदा नहीं है, लेकिन देश के गौरव की बात होने के कारण आज भी दौसा खादी समिति और यहां के कतिन बुनकर तिरंगे के कपड़े को बनाने का काम तेजी से करते हैं और अपने आपको गौरवान्वित महसूस करते हैं। देश की आजादी के समय आलुदा गांव में तिरंगे का कपड़ा बनाया जाता था लेकिन अब आलूदा गांव में बुनकरों ने यह काम बंद कर दिया है । वहीं जसोता और बनेठा गांव के कुछ बुनकर अभी भी तिरंगे का कपड़ा बनाते हैं। इलेक्ट्रिक चरखे आने के बाद दौसा के खादी समिति में भी तिरंगे का कपड़ा तैयार किया जाता है।

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