16 दिन बाद राजस्थान में प्राइवेट डॉक्टर्स की हड़ताल खत्म, IMA ने लैटर जारी बताया RTH क्या बनी सहमति
Right to health bill And doctors Strike update : राजस्थान में डॉक्टर्स और सरकार के बीच राइट टु हेल्थ को लेकर चल रही तनातनी का समाधान निकल गया है। प्रदेश में डॉक्टरों की हड़ताल खत्म हो गई है। इस संबंध में देर शाम इंडियन मेडिकल एसोसिएशन यानी आईएमए की ओर से भी लैटर जारी कर दिया गया है। डॉक्टर्स बुधवार को काम पर लौटेंगे।
हाइलाइट्स
- 16 दिन बाद निजी अस्पतालों की हड़ताल समाप्त
- अपनी शर्तों पर काम पर लौटे डॉक्टर
- RTH को लेकर राज्य सरकार और डॉक्टर्स के बीच हुआ MOU
सरकार और डॉक्टर दोनों अपनी अपनी बात पर अड़े
निजी अस्पतालों के डॉक्टरों ने पहले दिन से ही कह दिया था कि राइट टू हेल्थ बिल असंवैधानिक है। यह मंजूर नहीं है, इसे वापस लिया जाए। सरकार इस बिल किसी भी सूरत में वापस नहीं लेना चाहती थी। जब डॉक्टरों को पता चला कि सरकार विधानसभा में बिल पास करने वाली है तो निजी अस्पताल संचालकों ने अस्पतालों में कामकाज बंद कर दिया। सरकार ने 21 मार्च को बिल पारित कर दिया। इससे डॉक्टरों का आक्रोश और ज्यादा बढ गया। डॉक्टरों ने आन्दोलन को उग्र कर दिया। उधर हेल्थ मिनिस्टर और मुख्यमंत्री बार बार बयान देते रहे कि राइट टू हेल्थ बिल जनहित में है। यह लागू होकर रहेगा। डॉक्टरों को यह कतई मंजूर नहीं था। 26 मार्च को डॉक्टरों का एक प्रतिनिधि मंडल मुख्य सचिव उषा शर्मा से मिला। इस दौरान डॉक्टरों ने साफ कह दिया कि राइट टू हेल्थ (RTH) मंजूर नहीं है, इसे रद्द किया जाए। इतना कह कर डॉक्टर बैठक छोड़कर वापस लौट गए।
सरकार ने निजी अस्पताल संचालकों के साथ किया एमओयू
हड़ताल कर रहे निजी अस्पतालों के डॉक्टरों का समर्थन सरकारी डॉक्टर्स और रेजिडेंट डॉक्टर ने भी किया। ऐसे में सरकार को डॉक्टर की मांगों के सामने झुकना पड़ा। सोमवार 3 मार्च को आधी रात के बाद यानी मंगलवार 4 मार्च की सुबह साढे 3 बजे तक डॉक्टरों और सरकार के बीच हुई वार्ता समझौता हुआ। समझौते में सबसे बड़ी बात यह थी कि राइट टू हेल्थ कानून उन निजी अस्पतालों पर लागू नहीं होगा जिन्होंने ना तो सरकारी रियायत पर जमीन ली और ना ही अन्य कोई मदद ली हो। साथ ही 50 बैड से कम क्षमता वाले अस्पताल पहले से ही इस कानून के दायरे से बाहर हैं। सरकार की ओर से इस शर्त को मानने पर 95 फीसदी निजी अस्पताल राइट टू हेल्थ कानून के दायरे से बाहर हो गए। इसके लिए निजी अस्पताल के डॉक्टरों ने सरकार के साथ एमओयू किया। एमओयू में यह शर्त रखी कि भविष्य में जब भी इस कानून में संशोधन किया जाए तो सुझाव कमेटी में इंडियन मेडिकल काउंसिल के दो डॉक्टरों को शामिल किया जाए। साथ ही विवाद के मामलों में पुलिस की ओर से डॉक्टरों पर सीधा मुकदमा दर्ज नहीं करने और शिकायतों के निवारण के लिए सिंगल विंडो सिस्टम लागू करने पर सहमति बन गई।
केवल इन अस्पतालों पर लागू होगा राइट टू हेल्थ
राइट टू हेल्थ कानून केवल सरकारी अस्पतालों और निजी मेडिकल कॉलेजों से जुड़े अस्पतालों पर लागू होगा। मेडिकल कॉलेजों से जुड़े अस्पतालों को कानून के दायरे में इसलिए रखा गया क्योंकि वहां सैकड़ों स्टूडेंट अध्ययनरत रहेंगे तो उनकी जिम्मेदारी तय रखी जा सके। साथ ही सरकारी सहायता प्राप्त निजी अस्पताल यानी पीपीपी मोड पर संचालित अस्पतालों और ट्रस्ट की ओर से संचालित अस्पतालों को इस कानून के दायरे में रखा गया है। ऐसे अस्पतालों की संख्या बहुत कम है। 16 दिन की हड़ताल के बाद जो हल निकला उससे सांप भी मर गया और लाठी भी नहीं टूटी। यानी सरकार ने कानून भी लागू कर दिया और निजी अस्पतालों को कानून के दायरे से बाहर भी रख दिया। (रिपोर्ट – रामस्वरूप लामरोड़, जयपुर)
आसपास के शहरों की खबरें
Navbharat Times News App: देश-दुनिया की खबरें, आपके शहर का हाल, एजुकेशन और बिज़नेस अपडेट्स, फिल्म और खेल की दुनिया की हलचल, वायरल न्यूज़ और धर्म-कर्म… पाएँ हिंदी की ताज़ा खबरें डाउनलोड करें NBT ऐप