’12वीं भी नहीं करने देते और बच्चों पर डाल देते हैं बोझ’, कोटा में छात्रों की सुसाइड के क्यों बढ़ रहे केस जानिए h3>
जयपुर : कोटा में कोचिंग के लिए आए छात्रों की आत्महत्या (Kota Student Suicide Cases) पर राजस्थान सरकार ने चिंतन शुरू कर दिया है। सीएम अशोक गहलोत ने जयपुर में कोटा के प्रमुख कोचिंग संचालकों के साथ इसको लेकर बैठक की। सीएम ने जानना चाहा कि छात्र ऐसा क्यों कर रहे हैं। इस पर कोचिंग संचालकों ने कहा कि इसमें कोटा या कोचिंग का दोष नहीं है। पैरेंट्स भी कहीं न कहीं से जिम्मेदार हैं। यह एक ट्रेंड चला है कि बच्चा 10 वीं पास होता है कि पैरेंट्स उसे लेकर कोटा चले आते हैं। 11वीं और 12वीं की पढ़ाई उसकी डमी करवाते हैं, मतलब यह कि ऐसी जगह पर एडमिशन करवाते हैं जहां उसे सिर्फ एग्जाम देने जाना होता है। बच्चे की उम्र कम होती है और यहीं से उस पर दबाव बढ़ने की शुरुआत हो जाती है।
छात्रों के सुसाइड की आई तीन बड़ी वजहें
करीब 2 घंटे से ज्यादा सीएम आवास में चली बैठक में इसके अलावा दूसरे तनाव को लेकर भी चर्चा हुई। यह भी सामने आया कि पैरेंट्स बड़ी कोचिंग में लाखों रुपये की फीस जमा करते हैं। इसके बाद बच्चों के रहने खाने पर भी खर्च होता है। परिवार के परिवेश से आने के बाद कोटा में बच्चा बिल्कुल एकांत में आ जाता है। इसके बाद उसके ऊपर पैरेंट्स के लाखों रुपये खर्च का भी दबाव होता है। कई परिवारों की आर्थिक स्थिति भी सही नहीं होती है। ऐसे में अकेलापन और दबाव भी बड़ा कारण बनते हैं।
सीएम गहलोत ने बनाई कमिटी, 15 दिन में रिपोर्ट
तीसरा कारण असफलता और साथ के बच्चे की सफलता का दबाव रहता है। बच्चों पर मनोवैज्ञानिक रूप ये यह दबाव भी पड़ता है कि वह सफल नहीं हो पाया और उसके साथ कोचिंग करने वाला दूसरा बच्चा सफल हो गया। अब इन दबावों को कैसे दूर कर माहौल बदलने के लिए सरकार कुछ कर सकती है इस पर मंथन होगा। सीएम अशोक गहलोत ने इसके लिए शिक्षा, चिकित्सा विभाग के अधिकारियों की एक कमिटी बनाई है। कमिटी के पास 15 दिन का समय होगा। माना जा रहा है कि कमिटी अपनी रिपोर्ट के साथ कुछ सिफारिशें भी लागू करवाने के लिए करेगी।
तीन दिन तक पड़ा रहा पीजी में छात्र का शव
कोटा में कोचिंग के लिए बच्चे को छोड़ने के बाद पैरेंट्स भी उससे दूरी बना लेते हैं। वह इसलिए कि बच्चे से बात करेंगे तो उसे घर की याद आएगी। दूसरी बात यह भी है कि बच्चा अभी सो रहा होगा। कई बच्चे भी ज्यादा पढ़ने के लिए पैरेंट्स या किसी परिवारीजन से बात न करने का गोल सेट कर इसकी जानकारी भी दे देते हैं। फिर बच्चा बिल्कुल अकेला हो जाता है। ऐसी ही एक घटना हुई जिसमें बच्चे ने आत्महत्या की और 3 दिन तक शव पीजी के कमरे में पड़ा रहा। इस दौरान परिवारीजन ने एक बार सिर्फ कॉल की थी। बात न होने पर कारण भी नहीं जानना चाहा। पीजी संचालकों को लगा कि वो पढ़ाई कर रहा होगा तो निकलना नहीं चाह रहा।
सीएम ने कहा कि पैरेंट्स बच्चों पर दबाव न बनाएं
सीएम अशोक गहलोत ने कहा कि उन्होंने कोचिंग संचालकों के साथ बैठक की। बैठक में जो कारण सामने आए वह दुखद हैं। पैरेंट्स बच्चों के ऊपर अपनी उम्मीदों का बोझ बहुत कम उम्र में डाल रहे हैं। कम से कम बच्चे को 12वीं करने दें। 10वीं के बाद डमी पढ़ाई करवाकर उस पर डॉक्टर व इंजीनियरिंंग की तैयारी का दबाव बनाकर कोटा में छोड़ रहे हैं। इसे सही नहीं माना जा सकता है। सीएम ने कहा कि बच्चों की आत्महत्या को लेकर वह चिंतित हैं। कमिटी की रिपोर्ट आते ही सरकार के स्तर से जो भी होना होगा किया जाएगा।
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छात्रों के सुसाइड की आई तीन बड़ी वजहें
करीब 2 घंटे से ज्यादा सीएम आवास में चली बैठक में इसके अलावा दूसरे तनाव को लेकर भी चर्चा हुई। यह भी सामने आया कि पैरेंट्स बड़ी कोचिंग में लाखों रुपये की फीस जमा करते हैं। इसके बाद बच्चों के रहने खाने पर भी खर्च होता है। परिवार के परिवेश से आने के बाद कोटा में बच्चा बिल्कुल एकांत में आ जाता है। इसके बाद उसके ऊपर पैरेंट्स के लाखों रुपये खर्च का भी दबाव होता है। कई परिवारों की आर्थिक स्थिति भी सही नहीं होती है। ऐसे में अकेलापन और दबाव भी बड़ा कारण बनते हैं।
सीएम गहलोत ने बनाई कमिटी, 15 दिन में रिपोर्ट
तीसरा कारण असफलता और साथ के बच्चे की सफलता का दबाव रहता है। बच्चों पर मनोवैज्ञानिक रूप ये यह दबाव भी पड़ता है कि वह सफल नहीं हो पाया और उसके साथ कोचिंग करने वाला दूसरा बच्चा सफल हो गया। अब इन दबावों को कैसे दूर कर माहौल बदलने के लिए सरकार कुछ कर सकती है इस पर मंथन होगा। सीएम अशोक गहलोत ने इसके लिए शिक्षा, चिकित्सा विभाग के अधिकारियों की एक कमिटी बनाई है। कमिटी के पास 15 दिन का समय होगा। माना जा रहा है कि कमिटी अपनी रिपोर्ट के साथ कुछ सिफारिशें भी लागू करवाने के लिए करेगी।
तीन दिन तक पड़ा रहा पीजी में छात्र का शव
कोटा में कोचिंग के लिए बच्चे को छोड़ने के बाद पैरेंट्स भी उससे दूरी बना लेते हैं। वह इसलिए कि बच्चे से बात करेंगे तो उसे घर की याद आएगी। दूसरी बात यह भी है कि बच्चा अभी सो रहा होगा। कई बच्चे भी ज्यादा पढ़ने के लिए पैरेंट्स या किसी परिवारीजन से बात न करने का गोल सेट कर इसकी जानकारी भी दे देते हैं। फिर बच्चा बिल्कुल अकेला हो जाता है। ऐसी ही एक घटना हुई जिसमें बच्चे ने आत्महत्या की और 3 दिन तक शव पीजी के कमरे में पड़ा रहा। इस दौरान परिवारीजन ने एक बार सिर्फ कॉल की थी। बात न होने पर कारण भी नहीं जानना चाहा। पीजी संचालकों को लगा कि वो पढ़ाई कर रहा होगा तो निकलना नहीं चाह रहा।
सीएम ने कहा कि पैरेंट्स बच्चों पर दबाव न बनाएं
सीएम अशोक गहलोत ने कहा कि उन्होंने कोचिंग संचालकों के साथ बैठक की। बैठक में जो कारण सामने आए वह दुखद हैं। पैरेंट्स बच्चों के ऊपर अपनी उम्मीदों का बोझ बहुत कम उम्र में डाल रहे हैं। कम से कम बच्चे को 12वीं करने दें। 10वीं के बाद डमी पढ़ाई करवाकर उस पर डॉक्टर व इंजीनियरिंंग की तैयारी का दबाव बनाकर कोटा में छोड़ रहे हैं। इसे सही नहीं माना जा सकता है। सीएम ने कहा कि बच्चों की आत्महत्या को लेकर वह चिंतित हैं। कमिटी की रिपोर्ट आते ही सरकार के स्तर से जो भी होना होगा किया जाएगा।