1199 में विवि के जलने के 815 साल बाद नालंदा फिर से रखी गयी थी नींव

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1199 में विवि के जलने के 815 साल बाद नालंदा फिर से रखी गयी थी नींव

1199 में विवि के जलने के 815 साल बाद नालंदा फिर से रखी गयी थी नींव

1199 में विवि के जलने के 815 साल बाद नालंदा फिर से रखी गयी थी नींव
427 में सम्राट कुमारगुप्त ने किया था निर्माण

नालंदा यूनिवर्सिटी01।

राजगीर, कार्यालय संवाददाता।

दुनिया का पहला आवासीय विश्वविद्यालय, जिसकी स्थापना वर्ष 427 में सम्राट कुमारगुप्त की उदारता से नालंदा में की गई थी। विद्वान भिक्षुओं और शिक्षकों की कर्तव्यनिष्ठा ने इसे वैश्विक पहचान दिलायी। 12वीं शताब्दी के अंत तक 800 से अधिक वर्षों तक यह विश्वविद्यालय फला-फूला। ऐसा माना जाता है कि इसमें 2,000 शिक्षक और 10 हजार छात्र थे। नालंदा ने चीन, कोरिया, जापान, तिब्बत, मंगोलिया, श्रीलंका और दक्षिण पूर्व एशिया जैसे दूर-दराज के स्थानों से विद्वानों को अपने परिसर में आकर्षित किया था।

उन विद्वानों ने नालंदा के माहौल, वास्तुकला और शिक्षा के साथ-साथ नालंदा के शिक्षकों के गहन ज्ञान के बारे में भी अभिलेख छोड़े हैं। सबसे विस्तृत विवरण चीनी विद्वानों से प्राप्त हुए हैं और इनमें से सबसे प्रसिद्ध ह्वेनसांग हैं, जो कई सौ शास्त्रों को अपने साथ ले गए थे। उनका बाद में चीनी भाषा में अनुवाद किया गया था। मार्च 2006 में बिहार राज्य विधानसभा के संयुक्त सत्र को संबोधित करते हुए भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने प्राचीन नालंदा के पुनरुद्धार का प्रस्ताव रखा था। इसपर फिलीपींस में पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन के 16 सदस्य देशों के नेताओं ने सहमति जतायी थी।

अधिनियम 2010 में पारित :

भारत की संसद ने नालंदा विश्वविद्यालय अधिनियम, 2010 पारित किया और सितंबर 2014 में छात्रों के पहले बैच का नामांकन हुआ। बिहार सरकार ने विश्वविद्यालय परिसर के लिए 455 एकड़ जमीन आवंटित करने में देर नहीं लगाई। इस प्रकार, नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना हुई। और, वर्ष 2017 से 2024 के दौरान नए परिसर में बुनियादी ढांचों का निर्माण किया गया। बीवी दोषी ने प्राचीन नालंदा के वास्तु को दर्शाते हुए पर्यावरण के अनुकूल वास्तुकला की डिज़ाइन तैयार की है। साथ ही, विश्व मानकों से मेल खाने वाली सभी आधुनिक सुविधाओं को एकीकृत किया गया है। यह एक बड़ा कार्बन फुटप्रिंट-मुक्त नेट-ज़ीरो कैंपस है, जो कई एकड़ हरियाली और 100 एकड़ जल-निकायों में फैला हुआ है, जो वास्तव में सीखने का वास्तव निवास है।

आदर्श और मानक सार्वभौमिक:

नालंदा एक साथ भविष्योन्मुखी है, क्योंकि प्राचीन शिक्षा के केंद्र के आदर्श और मानक अपनी प्रासंगिकता में सार्वभौमिक साबित हुए हैं। ये न केवल एशिया, बल्कि सभी के लिए साझा और टिकाऊ भविष्य के लिए व्यवहार्य समाधान हैं। कोई आश्चर्य नहीं कि नालंदा विश्वविद्यालय के पुनरुद्धार की पहल का दुनियाभर में सर्वसम्मति से और उत्साहपूर्वक स्वागत किया गया है।

शिक्षा साधकों के लिए अद्वितीय कैम्पस :

राजगीर की पंच पहाड़ियों में शुमार वैभारगिरि की तलहटी में पुनर्जीवित नालंदा विश्वविद्यालय कहता है-हमें सबकुछ यहीं सीखना है। इस बौद्धिक परिदृश्य में होने का अनुभव प्रकृति और मनुष्य के बीच व जीवन और सीखने के बीच सहज सह-अस्तित्व के साथ सशक्त बनाता है। यह क्षेत्र भगवान बुद्ध, भगवान महावीर जैसे आध्यात्मिक देवताओं द्वारा प्रदान की गई सकारात्मकता से गुंजायमान है, जिन्होंने इस क्षेत्र में ध्यान किया। नागार्जुन, आर्यभट्ट, धर्मकीर्ति जैसे महान गुरुओं द्वारा विकसित विद्वत्तापूर्ण परंपराओं को जना और विश्वभर में इसकी सोंधी महक फैलायी। महापुरुषों के प्रवचनों को समझने और ज्ञान को उसकी संपूर्णता में ग्रहण करने का अवसर ही नालंदा शिक्षा को सभी साधकों के लिए अद्वितीय और आकर्षक बनाता है।

क्या है नेट जीरो कैम्पस :

नेट जीरो कैम्पस ऐसा क्षेत्र कहलाता है, जो दुनिया के अन्य क्षेत्रों पर किसी भी मामले में बोझ नहीं बनता है। यानि, बिजली, पानी, कार्बन उत्सर्जन, भूगर्भजल, हरियाली आदि के लिए किसी पर निर्भर नहीं रहता है। नालंदा विश्वविद्यालय का लोगो नालंदा के तरीके को दर्शाता है। अर्थात, ‘मनुष्य, मनुष्य के साथ सद्भाव में रहता है। मनुष्य प्रकृति के साथ सद्भाव में रहता है और मनुष्य प्रकृति के हिस्से के रूप में रहता है।

‘नालंदा विश्वविद्यालय राजगीर की 8.3 किलोमीटर की चहारदीवारी से सुरक्षित है। प्राचीन नालंदा की वास्तुशिल्प डिजाइन प्रकृति के साथ सद्भाव बनाये रखने जैसी है। इसमें कार्बन न्यूट्रल और जीरो वेस्ट कैंपस बनाने के लिए 100 एकड़ से अधिक में जल निकाय, 300 एकड़ में ग्रीन लैंडस्केपिंग कार्य, 6.5 मेगावाट सोलर फार्म, 1.5 मेगावाट बायोगैस प्लांट आदि शामिल हैं। स्वदेशी ‘आहर-पाइन’ पद्धति के साथ कुशल जल प्रबंधन प्रणाली लागू की गई है। साथ ही, विकेंद्रीकृत अपशिष्ट उपचार (डीडब्ल्यूएटी) प्रणाली भी अपनाई गई है। इमारतों को ठंडा और गर्म करने के लिए डेसीकेंट इवेपोरेटिव तकनीक व मोटी गुहा दीवारों के साथ थर्मल प्रतिरोध का उपयोग किया गया है। विश्वविद्यालय को गृहा (जीआरआईएचए) अनुकरणीय प्रदर्शन पुरस्कार-2017, 2018, 2019 और वर्ष 2020 व 2022 में गृहा एलडी 5-स्टार रेटिंग में अंतरराष्ट्रीय मान्यता से सम्मानित किया जा चुका है।

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