जैन धर्म के अनुसार मुनिराज के पहले 108 क्यों लगाते है?

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108 जैन धर्म में नाम से पहले क्यो
108 जैन धर्म में नाम से पहले क्यो

जैन धर्म के अनुसार मुनिराज के पहले 108 क्यों लगाते है ? ( Why do we put 108 before Muniraj according to Jainism? )

जैन धर्म एक बहुत प्राचीन धर्म है. इस धर्म की शुरूआत भारत से हुई थी. इसके बाद यह धर्म धीरे धीरे फैलता गया. अनेंक शासको ने भी इस धर्म को संरक्षण दिया. आमतौर पर आपने सुना होगा कि जैन धर्म दिगंबर साधु जिन्हें मुनि भी कहा जाता है. सभी परिग्रहों का त्याग कर कठिन साधना करते है. वो अपने नाम से पहले 108 लगाते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसके पीछे का कारण क्या है. चलिए इस पोस्ट में आपके इसी सवाल का जवाब जानते हैं.

जैन मुनि

मुनिराज क्यों लगाते हैं मुनिराज से पहले 108-

मुनिराज क नाम से पहले 108 लगाने के कई कारण होते हैं. सबसे पहला कारण तो यह होता है कि इंसान108 प्रकार से पाप करता है. उन्हें रोकने के लिए मुनि बनते हैं. इसी कारण मुनिराज के नाम से पहले 108 लगता है. इसके अलावा दूसरे कारण की बात करें, तो 108 ब्रह्म का प्रतीक होता है. ब्रह्म का अर्थ होता है- आत्मा. मुनिराज आत्मा की अराधना करते हैं. इस कारण भी मुनिराज के नाम से पहले 108 लगता है.

जैन मुनि

108 ब्रह्म का प्रतीक कैसे होता है-

आमतौर पर आपने सुना होगा कि 108 अंक ब्रह्म का प्रतीक होता है. अगर इसके पीछे के कारण की बात करें, तो ब्रह्म में ब+र+ह+म से मिलकर बना है. अगर इनके स्थान को देखें, तो क से लेकर ब तक 23 , क से लेकर र तक 27 , क से लेकर ह तक 33 तथा क से लेकर म तक 25 स्थान होते हैं. इन चारों का योग 23+27+33+25= 108 होता है. इसी कारण 128 को ब्रह्म का प्रतीक माना जाता है. ब्रह्म अर्थात् आत्मा.

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महावीर स्वामी-

भगवान महावीर स्वामी का ज्ञातृ वंश के क्षत्रिय थे तथा ये काश्यप गोत्र से संबंध रखते थे. ये जैन धर्म के 24 वें तीर्थकर थे. इनका जन्म वैशाली गणराज्य के कुण्डग्राम में हुआ था. इन्होंने ज्ञान प्राप्त करने के लिए 12 वर्षों तक कठोर तपस्या की. जिसके बाद इनको कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई. इनके अनुसार हमें दूसरो के प्रति भी वहीं व्यवहार करना चाहिएं जो हमें खुद के लिए पसंद हो. इन्होंने ही ” जियो और जीने दो” का सिद्धांत दिया था. इन्होंने जैन धर्म मानने वालों के लिए पांच व्रत भी बताए हैं. जिनमें सत्य , अहिंसा , अचौर्य , अपरिग्रह , ब्रह्मचर्य को शामिल किया जाता है. 72 वर्ष की आयु में बिहार के पावापुरी ( राजगीर ) में इनको निर्वाम ( मोक्ष ) की प्राप्ति हुई.

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