100-500 रुपए में बेड, एक लाख किराए पर दुकान, गलियों में रेस्टोरेंट… पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री का गांव बना बिजनेस हब

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100-500 रुपए में बेड, एक लाख किराए पर दुकान, गलियों में रेस्टोरेंट… पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री का गांव बना बिजनेस हब

100-500 रुपए में बेड, एक लाख किराए पर दुकान, गलियों में रेस्टोरेंट… पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री का गांव बना बिजनेस हब


छतरपुर रेलवे स्टेशन पर उतरते ही बागेश्वर धाम, बागेश्वर धाम… की आवाज सुनाई देने लगेगी। स्टेशन के बाहर निकलने पर तमाम ऑटो वाले आपसे वहीं चलने के लिए पूछेंगे। स्टेशन से बागेश्वर धाम की दूरी करीब 25 किमी है। झांसी-छतरपुर हाईवे पर बसारी एक जगह पड़ता है। वहां से करीब तीन किमी आगे बढ़ेंगे तो बागेश्वर धाम के लिए सड़क जाती है। कुछ किमी आगे बढ़ने पर गढ़ा गांव है। इसी गांव के बाहरी हिस्से में एक पहाड़ है, जहां बालाजी महाराज का मंदिर है। हाईवे से कटते ही आपको यह दिखने लगेगा कि कैसे बागेश्वर धाम की वजह से इस इलाके में बदलाव हो रहा है। सड़क के किनारे जगह-जगह पर आपको खाने-पीने की दुकानें और ठहरने की व्यवस्था दिख जाएगी। पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के गढ़ा गांव में ज्यादातर घर अब होम स्टे और रेस्टोरेंट में तब्दील हो गए हैं। गांव को पार करेंगे तो मंदिर का एरिया शुरू हो जाता है, यहां खेतों में अब दुकानें और टेंट होटल हैं।

गांव की गलियों में रेस्टोरेंट

हां, हाईवे से बागेश्वर धाम की तरफ जाने वाली सड़क पर आपको जितनी भी दुकानें दिखेंगी, उन सभी में पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री की बड़ी-बड़ी तस्वीरें लगी होंगी। इसके बाद बागेश्वर सरकार का गांव गढ़ा आता है। गढ़ा में घुसते ही आपको यह दिखने लगेगा कि यह गांव अब गांव नहीं रहा है। पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री की वजह से बिजनेस हब बन गया। रहने के लिए लोगों ने जिन घरों का निर्माण कराया था, वह अब होम स्टे है। बाहर से आने वाले लोग इन्हीं घरों में ठहरते हैं। गढ़ा गांव के किसी भी गली से गुजरेंगे तो आपको ये नजारा दिख जाएगा।

100 से 500 रुपए में एक बेड

100-500-

दरअसल, गांव से बाहर निकलने के बाद मंदिर के नजदीक पहुंचेंगे तो वहां कथित तौर पर किसानों के खेत हैं। इन खेतों में तंबू के सहारे बड़े-बड़े टेंट गड़े हैं। इन टेंट्स में रहने की व्यवस्था है। टेंट के अंदर जमीन पर बेड गद्दे लगे हैं। एक गद्दे के लिए बाहर से आने वाले लोगों को 100 रुपए देने होते हैं। 100 रुपए देने पर उन्हें एक बेड मिलता है। उसके बाद रात गुजराते हैं। इसी तरह के पक्के घरों में भी बेड सिस्टम है। यहां पांच सौ रुपए में एक बेड मिलता है।

एक लाख रुपए किराए पर दुकान

एक लाख रुपए किराए पर दुकान

इसके साथ ही उन टेंटनुमा जगहों पर दुकानें भी खुली हैं। इसमें प्रसाद से लेकर खाने-पीने तक की दुकानें हैं। दुकान की साइज के हिसाब से उसका किराया है। मंदिर के नजदीक दुकान चलाने वाले एक दुकानदार ने बताया कि हमारा श्रृंगार की दुकान है। साथ ही दुकान के पीछे स्टे की व्यवस्था है। दुकान की साइज छोटी थी तो उसका किराया 20 हजार महीना था। नवभारत टाइम्स.कॉम की टीम ने उससे पूछा कि सबसे ज्यादा किराया कितना है। वहां से कुछ दूरी पर स्थित एक दुकान की तरफ इशारा किया। बताया कि उसका किराया एक लाख 14 हजार रुपए है। कुछ दिन पहले वह खाली हुआ है।

किसानों की है जमीन

किसानों की है जमीन

वहीं, इन दुकानों से किराया कौन वसूलता है। पास में स्थित एक मंदिर के दफ्तर में हम पहुंचे। उनसे जानना चाहा कि दुकान का किराया कितना है। वहां बैठे स्टॉफ ने कहा कि ये दुकान खेत मालिक के हैं। आप उन्हीं से बात करो। वहीं, लोग किराए पर दुकान देते हैं। कथित रूप से कुछ लोग कहते हैं कि दुकानों के आवंटन में मंदिर प्रबंधन की भूमिका होती है।

गांव बन गया है बिजनेस हब

गांव बन गया है बिजनेस हब

गढ़ा गांव की पहचान अब बागेश्वर धाम के रूप में हो गई है। हर दिन हजारों की संख्या में यहां श्रद्धालु पहुंच रहे हैं। मंगलवार और शनिवार के दिन श्रद्धालुओं की संख्या सबसे ज्यादा होती है। इस दिन बागेश्वर धाम में भारी भीड़ होती है। आसपास में कोई मार्केट नहीं है तो यहां आने वाले लोग गांव में मिलने वाली चीजों पर भी निर्भर रहते हैं। ऐसे में स्थानीय लोगों की चांदी है। वहीं, गढ़ा में जब पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री होते हैं कि तब भक्तों की भीड़ और होती है। लोग बताते हैं कि महाराज जी की वजह से हमें गांव में रोजगार मिल गया है।

बदल गया है अर्थतंत्र

बदल गया है अर्थतंत्र

दरअसल, पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री का गढ़ा गांव बुंदेलखंड का पिछड़ा इलाका है। गांव के लोगों की निर्भरता खेती किसानी पर ही है। अब गांव का अर्थतंत्र पूरी तरह से बदल गया है। बागेश्वर धाम की वजह से यहां जो श्रद्धालु आते हैं, वही ग्रामीणों के लिए वरदान है। गांव के लोग अपने घरों में रेस्टोरेंट खोल दिए हैं। साथ ही ठहरने की व्यवस्था भी की है। कई लोगों ने छोटी दुकानें डाल ली हैं। सभी लोगों का कारोबार यहां चल रहा है। अब लोगों कमाई के लिए लोगों की निर्भरता बागेश्वर धाम पर है।

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