हिन्दुस्तान स्पेशलः 1506 संवत का है भोजपुर का बेलाउर का सूर्य मंदिर, प्रसाद में मिलते हैं मनोकामना सिक्का

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हिन्दुस्तान स्पेशलः 1506 संवत का है भोजपुर का बेलाउर का सूर्य मंदिर, प्रसाद में मिलते हैं मनोकामना सिक्का

हिन्दुस्तान स्पेशलः 1506 संवत का है भोजपुर का बेलाउर का सूर्य मंदिर, प्रसाद में मिलते हैं मनोकामना सिक्का

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उदवंतनगर प्रखंड के बेलाउर गांव के सूर्य मंदिर में छठ पर बड़ी संख्या में पूजा करने के लिए पहुंचते हैं। बेलाउर को भगवान भास्कर की नगरी भी कहा जाता है। यहां छठ व्रत करने के लिए बिहार ही  नहीं उत्तरप्रदेश, मध्य प्रदेश व झारखंड समेत विदेशों में रहने वाले भारतीय मूल के लोग भी पहुंचते हैं। मंदिर की ऐतिहासिक मान्यता है। बेलाउर आबादी व क्षेत्रफल के दृष्टिकोण से जिले का सबसे बड़ा गांव माना जाता है।

गांव के राजा बावन सुबा ने 1506 संवत में लगभग 252 छोटे-बड़े तालाबों का निर्माण कराया था। करीब 22 हजार बीघे के मालिक रहे राजा के नगर में मंदिर नहीं थे। तब राजा ने विशालकाय भैरवानंद तालाब के बीच में भगवान भास्कर के मंदिर की स्थापना करायी थी। तब से गांव-नगर के लोग छठ का व्रत करने लगे थे। हालांकि, समय बीतने के साथ मंदिर जर्जर हो गया। तब 1942 में बेलाउर गांव पहुंचे भोजपुर के करवासिन गांव निवासी मौनी बाबा ने  सूर्य मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। 

1949 ई में सवा साल तक यज्ञ कराने के बाद राजस्थान के जयपुर शहर से सात घोड़े के रथ पर सारथी सहित भगवान भास्कर की मकराना पत्थर की मनमोहक मूर्ति मंगा स्थापित कराई थी। उसी समय से यहां व्रत करने वाले लोगों की संख्या बढ़ने लगी और आज दो लाख के करीब लोग आस्था का केन्द्र मानते हुए यहां छठ व्रत करने आते हैं। राजधानी पटना से 75 किमी दूर और आरा जंक्शन से दक्षिण दिशा में 12 किमी की दूरी पर बेलाउर गांव के पश्चिम-दक्षिण दिशा में यह मंदिर स्थित है।

भगवान भास्कर के मंदिर की अलग विशेषता

बेलाउर में स्थित सूर्य मंदिर की अलग विशेषता है। अमूमन हर जगह सूर्य मंदिर का मुख्य द्वार पूरब की ओर देखा जाता है, लेकिन यहां पर मंदिर का मुख्य द्वार पश्चिम की ओर स्थापित है। विशालकाय भैरवानंद तालाब के बीचोंबीच भगवान भास्कर का मंदिर बना है, जो अन्य मंदिरों से अलग महत्व रखता है।

सूर्य मंदिर से एक फुट ऊंचा है जाटा बाबा का मंदिर

लोग कहते हैं कि बेलाउर नगर में जब अकाल की स्थिति बनी थी तो कुओं व तालाबों से भी पानी नहीं निकल रहा था। तब जाटा बाबा नाम के ब्राह्मण बालक ने कुदाल से भैरवानंद तालाब में मिट्टी खोदनी शुरू की तो तेज वर्षा हुई और नगर वासियों को अकाल से छुटकारा मिला। तब से जाटा बाबा उसी भैरवानंद तालाब के पास रहने लगे थे और उसी जगह समाधि ले ली थी। मौनी बाबा ने सूर्य मंदिर निर्माण के साथ जाटा बाबा का मंदिर भी बनावाया था और इनका मंदिर सूर्य मंदिर से एक फुट ऊंचा है। यहां आने वाले लोग जाटा बाबा के मंदिर में ही बच्चों का मुंडन कराते हैं।

मनोकामना सिक्का ले जाते और मन्नत पूरी होने पर लौटा देते

बेलाउर सूर्य मंदिर में मनोकामना सिक्का लेने की परंपरा है। यहां छठ व्रत करने वाले लोग मनोकामना सिक्का लेकर जाते हैं और मन्नत पूरी होने के बाद छठ व्रत करने के साथ ही सिक्का वापस लौटा देते हैं। मंदिर के पुजारी पुरुषोत्तम दुबे के अनुसार कई वर्षों से मनोकामना सिक्का लेने और लौटाने की परंपरा चली आ रही है। भगवान के मंदिर में सिद्ध किये गये सिक्के को लोग अपनी मन्नत रूपी प्रसाद समझ ले जाते हैं। हालांकि,मन्नत पूरी होने के बाद सिक्के वापस करने होते हैं।

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