हाई कोर्ट का पुलिस की कार्यशैली पर गंभीर सवाल: कहा, पुलिस बताए चार्जशीट दाखिल करने में आखिर सात साल क्यों लगे? – Prayagraj (Allahabad) News

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हाई कोर्ट का पुलिस की कार्यशैली पर गंभीर सवाल:  कहा, पुलिस बताए चार्जशीट दाखिल करने में आखिर सात साल क्यों लगे? – Prayagraj (Allahabad) News

हाई कोर्ट का पुलिस की कार्यशैली पर गंभीर सवाल: कहा, पुलिस बताए चार्जशीट दाखिल करने में आखिर सात साल क्यों लगे? – Prayagraj (Allahabad) News

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दहेज उत्पीड़न के एक मामले में 16 दिसंबर 2014 को एफआईआर दर्ज होने के बावजूद, पुलिस द्वारा आरोप पत्र लगभग सात साल बाद (24 जून 2021) दायर करने पर पुलिस की कार्यशैली को लेकर गंभीर टिप्पणी की है।

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हाई कोर्ट ने दहेज उत्पीड़न के एक मामले में कृष्ण कुमार एवं अन्य की तरफ से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि आरोप पत्र दाखिल करने में लगभग सात वर्षों की अत्यधिक देरी तथा कोर्ट के संज्ञान लेने में अतिरिक्त तीन वर्षों की देरी पुलिस और निचली अदालत दोनों की “सरासर लापरवाही” को दर्शाती है।

प्रयागराज के थरवई थाने से जुड़ा है यह केस

यह मामला 2014 में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 498 ए, 323, 504, 506 और दहेज निषेध अधिनियम की धारा 3/4 के तहत प्रयागराज जिले के थरवई पुलिस स्टेशन में दर्ज एफआईआर से संबंधित है। 16 दिसंबर, 2014 को एफआईआर दर्ज होने के बावजूद, आरोप पत्र 24 जून, 2021 को दाखिल किया गया। चार्जशीट लगभग सात साल बाद दाखिल की गई। देरी को और बढ़ाते हुए मजिस्ट्रेट ने आरोप पत्र दाखिल होने के लगभग तीन साल बाद 12 मार्च, 2024 को संज्ञान लिया। न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देशवाल की कोर्ट ने कहा, “यह तथ्य पुलिस के साथ-साथ संबंधित अदालत की ओर से घोर लापरवाही दर्शाता है।”

DCP गंगापार व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करें

अदालत ने निर्देश दिया कि डीसीपी, गंगापार अपना व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करें जिसमें कारण का उल्लेख किया जाए कि पुलिस को आरोप पत्र प्रस्तुत करने में लगभग सात साल क्यों लगे, जबकि एफआईआर 16 दिसंबर 2014 को दर्ज की गई थी।” इसके साथ ही कोर्ट ने जिला न्यायाधीश, इलाहाबाद को आरोप पत्र पर संज्ञान लेने में तीन वर्ष की देरी के संबंध में संबंधित मजिस्ट्रेट से स्पष्टीकरण मांगने तथा रजिस्ट्रार (अनुपालन) को इलेक्ट्रॉनिक रूप से रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया गया है।

मामले को 21 अप्रैल को आगे की सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है। इस बीच, रजिस्ट्रार (अनुपालन) को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया गया है कि अदालत के आदेश की प्रतियां तत्काल अनुपालन के लिए डीसीपी और जिला न्यायाधीश दोनों को भेजी जाएं।

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