स्वामी मौर्य का मंच और कांशीराम का संदेश… अखिलेश की इस राजनीति के पीछे मायावती पर निशाना तो नहीं
अजेंडे में यूं ही अहम कांशीराम
सपा को बसपा से गठबंधन का चुनावी फायदा भले न हुआ हो, लेकिन दोनों दलों के नेताओं-कार्यकर्ताओं के बीच की दीवार जरूर टूटी। 2019 से 2022 तक बसपा के कई नेताओं ने सपा का दामन थामा। इंद्रजीत सरोज, स्वामी प्रसाद मौर्य, लालजी वर्मा, रामअचल राजभर, केके सचान, आरएस कुशवाहा जैसे अहम नाम इस सूची में हैं। इनमें चार तो बसपा के प्रदेश अध्यक्ष रहे हैं। गैर-यादव ओबीसी व दलितों को जोड़ने में सपा को 2022 में सफलता भी मिली, जब पार्टी को 32% से अधिक वोट मिले।
2024 के लिए जातीय जनगणना को मुद्दा बना रही सपा नए वोट बैंक के विस्तार में जुटी है। अंबेडकर वाहिनी के जरिए दलित सम्मेलन, कांशीराम जयंती पर आयोजन, अवधेश प्रसाद जैसे दलित चेहरों की मंच पर मौजूदगी इसी का हिस्सा है। बसपा की मुस्लिम वोटों में सेंधमारी की कोशिश के बीच सपा उसके गैर-जाटव दलित वोटों को जोड़ने में लगी है। इसलिए कांशीराम भी अजेंडे में प्राथमिकता पर हैं।
संदेश पार्टी के भीतर भी
स्वामी के मंच पर अखिलेश की मौजूदगी इसका भी संदेश है कि रामचरितमानस सहित दूसरे विवादों को लेकर अखिलेश बहुत चिंतित नहीं हैं। गैर-यादव ओबीसी वोटों को जोड़ने के अजेंडे में स्वामी की अहमियत बनी हुई है। कोलकाता में हुई राष्ट्रीय कार्यसमिति में मंच पर नहीं दिखे स्वामी अगले दिन अखिलेश के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस में मौजूद थे। हालांकि, रायबरेली के आयोजन से वहां पार्टी का एक धड़ा असहज है। वहीं, स्वामी का कहना है कि हमारी मंशा किसी को दुख पहुंचाने की नहीं है। पार्टी बढ़ेगी, जनाधार बढ़ेगा तो उनको भी फायदा होगा।