स्थानांतरण नियमों पर शिक्षकों को छल रही सरकार : शिक्षक संघ h3>
बिहार सरकार ने शिक्षकों के स्थानांतरण के लिए नई नीति की घोषणा की है, जिसे शिक्षकों के संघों ने विरोध किया है। उनका कहना है कि इस नीति से महिलाओं को नौकरी और परिवार के बीच सामंजस्य बनाने में कठिनाइयों…
Newswrap हिन्दुस्तान, मुजफ्फरपुरMon, 7 Oct 2024 05:54 PM
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मुजफ्फरपुर, वरीय संवाददाता। राज्य सरकार ने शिक्षकों के स्थानांतरण को लेकर नई नीति की घोषणा सोमवार को कर दी। इस नीति से जहां कई शिक्षकों को राहत मिलने की बात कही जा रही है, वहीं कई ऐसे शिक्षक हैं, जिन्होंने इसे शिक्षक हितों के विरूद्ध बताया है। शिक्षक संघों के प्रतिनिधियों ने इसे शिक्षकों के साथ छल किए जाने की बात कही है। उनका मानना था कि सरकार की मंशा शिक्षकों को राहत पहुंचाने की जगह उनको और अधिक परेशान करने की है। इससे शिक्षकों को लाभ मिलने की जगह और अधिक परेशानी उठानी पड़ेगी। खासकर महिला शिक्षकों को अब नौकरी और परिवार के बीच सामंजस्य बनाने में कई तरह की परेशानियों से दो चार होना पड़ेगा।
मुजफ्फरपुर जिला प्राथमिक शिक्षक संघ के एक गुट के पैट्रन रघुवंश प्रसाद सिंह ने आरोप लगाया कि सरकार की मंशा शिक्षकों को राहत देने की नहीं है। यही कारण है कि उनको तंग करने के लिए नई नियमावली में कई तरह के विसंगतिपूर्ण प्रावधान किए गए हैं। नियम के अनुसार शिक्षकों को अनुमंडल के बाहर के स्कूलों में भेजा जाएगा। लेकिन, जिन जिलों में एक ही अनुमंडल है, वैसे में शिक्षकों का स्थानांतरण न चाहते हुए भी दूसरे जिले में हो जाएगा, जो नैसर्गिक न्याय के विरुद्ध है। इसको लेकर संघ विभाग के वरीय अधिकारियों के अलावा मुख्यमंत्री और विभागीय मंत्री से मिलकर इसे न्यायसंगत बनाने की मांग करेगा।
वहीं इसी गुट के जिलाध्यक्ष अभय कुमार निर्भय ने कहा कि महिला शिक्षकों को घर और नौकरी दोनों का ध्यान रखना पड़ता है। नियोजित और टीआरई के सभी चरणों में सर्वाधिक महिलाओं की नियुक्ति हुई है। इस स्थानांतरण नियम का सर्वाधिक दुष्प्रभाव उनपर ही पड़ेगा। अब उनको अपने स्थापित हो चुके परिवार को छोड़कर कहीं और जाना होगा। इसका उनके पारिवारिक जीवन पर विपरीत असर होगा।
जिला प्राथमिक शिक्षक संघ के दूसरे धड़े के प्रधान सचिव राजीव रंजन ने भी सरकार की नई स्थानांतरण नीति की आलोचना की। उन्होंने कहा कि सबसे पहले तो नगर निकाय से बहाल किए गए शिक्षकों को इससे अलग रखा गया है। केवल ग्रामीण इलाकों के शिक्षकों को इसके दायरे में लाया गया है, जो सरकार की कपटपूर्ण मानसिकता को दर्शाता है। नियम सबके लिए समान होने चाहिए। लेकिन, यहां समानता के अधिकार को नजरअंदाज किया गया है।
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बिहार सरकार ने शिक्षकों के स्थानांतरण के लिए नई नीति की घोषणा की है, जिसे शिक्षकों के संघों ने विरोध किया है। उनका कहना है कि इस नीति से महिलाओं को नौकरी और परिवार के बीच सामंजस्य बनाने में कठिनाइयों…
मुजफ्फरपुर, वरीय संवाददाता। राज्य सरकार ने शिक्षकों के स्थानांतरण को लेकर नई नीति की घोषणा सोमवार को कर दी। इस नीति से जहां कई शिक्षकों को राहत मिलने की बात कही जा रही है, वहीं कई ऐसे शिक्षक हैं, जिन्होंने इसे शिक्षक हितों के विरूद्ध बताया है। शिक्षक संघों के प्रतिनिधियों ने इसे शिक्षकों के साथ छल किए जाने की बात कही है। उनका मानना था कि सरकार की मंशा शिक्षकों को राहत पहुंचाने की जगह उनको और अधिक परेशान करने की है। इससे शिक्षकों को लाभ मिलने की जगह और अधिक परेशानी उठानी पड़ेगी। खासकर महिला शिक्षकों को अब नौकरी और परिवार के बीच सामंजस्य बनाने में कई तरह की परेशानियों से दो चार होना पड़ेगा।
मुजफ्फरपुर जिला प्राथमिक शिक्षक संघ के एक गुट के पैट्रन रघुवंश प्रसाद सिंह ने आरोप लगाया कि सरकार की मंशा शिक्षकों को राहत देने की नहीं है। यही कारण है कि उनको तंग करने के लिए नई नियमावली में कई तरह के विसंगतिपूर्ण प्रावधान किए गए हैं। नियम के अनुसार शिक्षकों को अनुमंडल के बाहर के स्कूलों में भेजा जाएगा। लेकिन, जिन जिलों में एक ही अनुमंडल है, वैसे में शिक्षकों का स्थानांतरण न चाहते हुए भी दूसरे जिले में हो जाएगा, जो नैसर्गिक न्याय के विरुद्ध है। इसको लेकर संघ विभाग के वरीय अधिकारियों के अलावा मुख्यमंत्री और विभागीय मंत्री से मिलकर इसे न्यायसंगत बनाने की मांग करेगा।
वहीं इसी गुट के जिलाध्यक्ष अभय कुमार निर्भय ने कहा कि महिला शिक्षकों को घर और नौकरी दोनों का ध्यान रखना पड़ता है। नियोजित और टीआरई के सभी चरणों में सर्वाधिक महिलाओं की नियुक्ति हुई है। इस स्थानांतरण नियम का सर्वाधिक दुष्प्रभाव उनपर ही पड़ेगा। अब उनको अपने स्थापित हो चुके परिवार को छोड़कर कहीं और जाना होगा। इसका उनके पारिवारिक जीवन पर विपरीत असर होगा।
जिला प्राथमिक शिक्षक संघ के दूसरे धड़े के प्रधान सचिव राजीव रंजन ने भी सरकार की नई स्थानांतरण नीति की आलोचना की। उन्होंने कहा कि सबसे पहले तो नगर निकाय से बहाल किए गए शिक्षकों को इससे अलग रखा गया है। केवल ग्रामीण इलाकों के शिक्षकों को इसके दायरे में लाया गया है, जो सरकार की कपटपूर्ण मानसिकता को दर्शाता है। नियम सबके लिए समान होने चाहिए। लेकिन, यहां समानता के अधिकार को नजरअंदाज किया गया है।