स्कूल बैग में कॉन्डम, शराब… टीनएज बच्चों को ये क्या हो रहा है? जानें एक्सपर्ट का क्या है कहना

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स्कूल बैग में कॉन्डम, शराब… टीनएज बच्चों को ये क्या हो रहा है? जानें एक्सपर्ट का क्या है कहना

स्कूल बैग में कॉन्डम, शराब… टीनएज बच्चों को ये क्या हो रहा है? जानें एक्सपर्ट का क्या है कहना

  • केस 1 : बेंगलुरु के एक स्कूलवालों ने जब मोबाइल ढूंढने के लिए बच्चों के बैग की जांच की, तो कॉन्डम, गर्भनिरोधक गोलियां, सिगरेट और लाइटर जैसी चीजें मिलीं।
  • केस 2 : रायपुर के नजदीक एक नाबालिग ने मोबाइल पर अश्लील फिल्में देखने के बाद पड़ोस की 10 साल की बच्ची से रेप किया। बाद में उसे मौत के घाट उतार कर घटना को स्यूसाइड का रूप देने की कोशिश की।
  • केस 3 : वाकया हैदराबाद का है। नौवीं और दसवीं क्लास में पढ़ने वाले 5 लड़कों ने एक नाबालिग लड़की के साथ गैंगरेप किया। उन्होंने इस वारदात को मोबाइल कैमरे से फिल्माया।
  • केस 4 : मेरठ के एक स्कूल में बच्चों का ग्रुप टीचर को आई लव यू जान कहकर छेड़ रहा था और मोबाइल से विडियो बना रहा था। बाद में वह विडियो वायरल हो गया।

ये सभी हाल फिलहाल की घटनाएं हैं। इनके बारे में पढ़ने के बाद हर मां-बाप का यही सवाल है कि आखिर बच्चे ऐसा क्यों कर रहे हैं। समय रहते बच्चों को इस स्थिति में आने से कैसे रोका जाए? इसी को लेकर हमने तमाम एक्सपर्ट से बात की।

पैरंट्स नहीं इंटरनेट बन गया टीचर

इन तमाम घटनाओं में मोबाइल पर इंटरनेट का इस्तेमाल सबसे कॉमन चीज है। तो क्या इंटरनेट इसकी मुख्य वजह है या इन घटनाओं के पीछे दूसरे कारण भी हैं। इस बारे में साइकॉलजिस्ट इशिता मुखर्जी बताती हैं, ‘आजकल मनोरंजन के लिए डिजिटल दुनिया में मौजूद कॉन्टेंट बच्चे पर गहरा असर छोड़ रहा है। पहले एडल्ट शोज टीवी या मोबाइल पर नहीं आते थे, लेकिन अब इस तरह के कॉन्टेंट तक हर किसी की पहुंच है। दूसरा, आजकल बच्चों में पॉर्न देखने का चलन बढ़ गया है। जब कोई चीज आपको आसानी से मिल जाती है, तो उसके बारे में जानने की इच्छा आपमें बढ़ जाती है। ऐसा ही आजकल के बच्चों के साथ हो रहा है। तीसरा, दूसरों से बेहतर दिखने की होड़ भी है। जैसे कोई बच्चा सिगरेट या शराब पीता है और दूसरे बच्चे को वो लूजर महसूस कराते हैं, जिस वजह से भी बच्चे इस तरह की चीजों में फंस रहे हैं। चौथी चीज यह है कि जब कोई बच्चा कुछ करता है, तो दूसरे बच्चे में भी उसको करने की जिज्ञासा उत्पन्न होती है। तो ये सब कारण ही बच्चे के व्यवहार पर असर डाल रहे हैं।’ वहीं आकाश हेल्थकेयर में कंसल्टेंट सायकाइट्रिस्ट डॉ. स्नेहा शर्मा बताती हैं, ’12 से 18 साल के बच्चे अपने बचपन से एडल्ट एज में कदम रख रहे होते हैं, उस दौरान उनका मानसिक विकास उतना नहीं हुआ होता है, जितना शारीरिक तौर पर हो रहा होता है। तब उनको लगता है कि हम तो बड़े हो गए हैं। हम एडल्ट हैं और हमें फ्रीडम है, तो हम खुद का ध्यान रख सकते हैं। ये बदलाव नया नहीं है। लेकिन आजकल एक्सपोजर बढ़ गया है। डिजिटल चीजें मौजूद हैं। वे दूसरे बच्चों से सीखते हैं, जो खुद कुछ नहीं जानते हैं। पॉर्न का एक्सपोजर भी बढ़ा है, क्योंकि हम उसको छुपाने की कोशिश करते हैं। इस वजह से कई बार बच्चे द्वारा रेप की घटनाएं भी सामने आ रही हैं। हमारे पास ऐसे मामले आते हैं, जहां पैरंट्स पॉर्न विडियो को लेकर शिकायत करने आते हैं।’

​पैरंटस-समाज का डर खत्म

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आमतौर पर पैरंट्स कहते हुए मिलते हैं कि मोबाइल या सोशल मीडिया की वजह से हमारा बच्चा बिगड़ रहा है। लेकिन क्या यह सही वजह है? एक्सपर्ट कहते हैं कि डिजिटल डाइट एक वजह जरूर है, लेकिन परिवार और समाज भी इन घटनाओं का बड़ा कारण हैं। समाजशास्त्री सुरेंद्र एस जोधका बताते हैं, ‘आजकल परिवार में पैरंटिंग कंट्रोल कमजोर हुआ है। पैरंट्स जॉब या दूसरे कामों में इतना बिजी हो गए हैं कि वे बच्चों पर ध्यान नहीं दे पा रहे हैं। इंटरनेट तक बच्चों की पहुंच आसान हो गई है। वहीं सेक्सुअलिटी को लेकर भी बच्चों में उत्सुकता बढ़ी है। हमारे समाज में सेक्सुअलिटी पर बात करने का कल्चर नहीं है। किस उम्र में बच्चे इस ओर आकर्षित हो रहे हैं, इस बारे में किसी को पता नहीं होता। जिनको पता होता है, वे भी बात नहीं करना चाहते हैं। स्कूल में क्या हो रहा है, ये किसी को पता नहीं होता। हमारे यहां तो पढ़े-लिखे लोग भी सेक्स पर बच्चों से बात करने में झिझकते हैं। एक तरफ टिंडर और दूसरे सोशल मीडिया का प्रयोग बढ़ रहा है। दूसरी तरफ समाज में बदलाव नहीं हो रहा, तो बच्चों पर इसका असर होगा ही।’ वहीं इशिता बताती हैं, ‘आजकल बच्चों में फ्रीडम बढ़ गया है। माता-पिता भी इतने व्यस्त हैं कि वे यह सब नहीं देख पा रहे हैं कि आखिर उनका बच्चा क्या कर रहा है। हम वेस्टर्न सोसायटी में आ गए हैं। जहां बच्चों में फ्रीडम के साथ पैरंट्स, टीचर और सोसायटी का डर खत्म हो गया है। बोल्डनेस ज्यादा बढ़ रही है। बच्चे को लगता है कि घर में तो वो कुछ भी रखेगा, तो कोई पकड़ सकता है, लेकिन स्कूल में कौन देखेगा कि बैग में क्या है। पहले स्कूल में रेगुलर बच्चों के बैग चैक हुआ करते थे, जो अब नहीं होते। स्कूल के वॉशरूम में इंटिमेसी की घटनाएं सामने आ रही हैं, क्योंकि स्कूल में देखने वाला कोई नहीं है। हमारे पास ऐसे कई मामले सामने आते हैं, जहां पैरंट्स को संदेह होता है कि उनका बच्चा कुछ गलत कर रहा है। आजकल एक नया शब्द चलन में है, जिसे स्कोरिंग कहते हैं। यानी बच्चा कितनी बार फिजिकली इंटिमेट होते हैं। जितना ज्यादा समय, उतना ज्यादा स्कोर, उतने ही ज्यादा आप पॉपुलर हो जाते हैं। जिसका स्कोर कम होता है, उस बच्चे को उस ग्रुप से बाहर कर दिया जाता है। स्कूल गैंग में रहने के लिए आपको ये स्कोर बढ़ाना होगा, वरना आप बाहर हो जाओगे।’

सेक्स एजुकेशन, परिवार के साथ की जरूरत

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अगर बच्चे समय गलत दिशा में जा रहे हैं, तो उन्हें सही रास्ता दिखाना भी पैरंट्स का काम है। बकौल सुरेंद्र एस जोढका, ‘सबसे पहले बच्चों को सेक्स एजुकेशन की जरूरत है। उसे सामान्य विषय की तरह ही बताना होगा। पैरंट्स को भी अपने बच्चे को वक्त देना होगा। वहीं समाज को भी इस बारे में समझना होगा। किसी भी चीज को ज्यादा बढ़ा-चढ़ा कर दिखाना या बोलना भी बच्चे में उस चीज को लेकर उत्सुकता जगाता है।’ बकौल इशिता मुखर्जी, ‘आपको बच्चे को शुरू से ही सही दिशा में ले जाना होगा। दूसरा, पैरंट्स और बच्चे के बीच एक दोस्ती वाला रिश्ता भी होना चाहिए, ताकि वह जो कहना या जानना चाहता है, उसे सीधे पैरंट्स से पूछ सके। उसे यकीन हो कि पैरंट्स उसके साथ खड़े हैं। साथ ही स्कूल अथॉरिटी को भी ध्यान देने की जरूरत है। उनको भी बच्चों में वो डर पैदा करने की जरूरत है कि वे स्कूल और बाहर कुछ गलत ना कर सकें।’ बकौल डॉ. स्नेहा शर्मा, ‘जब बच्चा आपसे चीजें छुपाने लगे, तो पैरंट्स को पता होना चाहिए। बच्चे की डिजिटल डाइट के बारे में भी पता होना चाहिए। डिजिटल डायट का मतलब, बच्चा सोशल मीडिया पर क्या कर रहा है, इंटरनेट पर किस तरह की मूवी या गाने सुन रहा है, उस बारे में भी पैरंट्स को जानकारी होनी चाहिए। वहीं अगर बच्चा आपकी बातों से हिंसक हो या चिड़चिड़ा हो जाए, तो उसे और पैरंट्स को काउंसिलिंग की जरूरत होती है।’

आपको बच्चे की डिजिटल डाइट के बारे में भी पता होना चाहिए। डिजिटल डाइट का मतलब, बच्चा सोशल मीडिया पर क्या कर रहा है। -डॉ. स्नेहा शर्मा, मनोचिकित्सक

पैरंट्स और बच्चे के बीच एक दोस्ती वाला रिश्ता होना चाहिए, ताकि वह जो कहना या जानना चाहता है, वह सीधे पैरंट्स से पूछ सके। – इशिता मुखर्जी, साइकॉलजिस्ट

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