सुनीता नारायण का कॉलम: हम क्लीन एनर्जी की ओर बढ़ रहे हैं, लेकिन यह काफी नहीं

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सुनीता नारायण का कॉलम:  हम क्लीन एनर्जी की ओर बढ़ रहे हैं, लेकिन यह काफी नहीं

सुनीता नारायण का कॉलम: हम क्लीन एनर्जी की ओर बढ़ रहे हैं, लेकिन यह काफी नहीं

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17 घंटे पहले

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सुनीता नारायण पर्यावरणविद्

यह डोनाल्ड ट्रम्प का युग है। जलवायु परिवर्तन की लगाम कसने के लिए की जाने वाली कार्रवाइयों का विरोध हो रहा है। यह गर्म होती दुनिया के प्रभावों के बढ़ने के साथ-साथ और बढ़ेगा और गरीबों के साथ ही अमीरों को भी इसका विनाशकारी नुकसान उठाना पड़ेगा। बीमाधारक इन आपदाओं को कवर करने में सक्षम नहीं होंगे, क्योंकि लागत बढ़ जाती है तो बीमा कंपनियां पीछे हट जाती हैं।

ऐसे में आज हमारे सामने उन कार्यों पर ध्यान केंद्रित करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है, जो आजीविका और अर्थव्यवस्थाओं में सुधार करते हुए जलवायु जोखिमों को कम करेंगे। चुनौती यह है कि समावेशी विकास के लाभों को स्थिरता के साथ कैसे प्राप्त करते रहें और डीकार्बनाइजेशन के मार्ग पर भी कैसे बने रहें।

क्लीन एनर्जी ट्रांजिशन के मुद्दे को ही लें। भारत की अनिवार्यता आजीविका सुरक्षा के लिए लाखों लोगों को बिजली प्रदान करना है। आज भी, देश में बड़ी संख्या में परिवार ऊर्जा के अभाव से जूझ रहे हैं। बिजली की आपूर्ति या तो अविश्वसनीय है, अनुपलब्ध है या महंगी है।

लोगों के पास लाइट चालू करने तक की सुविधा नहीं है और महिलाएं अभी भी गंदे बायोमास से खाना बनाती हैं। उद्योग भी इसी तरह से प्रभावित हैं। और यह तब होता है, जब ऊर्जा की लागत प्रतिस्पर्धात्मकता को निर्धारित करती है। यही कारण है कि भारतीय उद्योग कोयला जलाकर खुद की बिजली उत्पादन प्रणाली को प्राथमिकता देता है।

यही कारण है कि केंद्र सरकार की 2030 तक 500 गीगावाट स्वच्छ ऊर्जा की योजना सराहनीय है। इसने जानबूझकर कोयले को बदलने की योजना नहीं बनाई है- जो आज भारत के कुल बिजली उत्पादन का 75% प्रदान करता है- बल्कि कोयले को विस्थापित करने की योजना बनाई है।

ऐसा करने की इसकी योजना सौर और पवन सहित स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों की क्षमता बढ़ाना है, जो 2030 तक बिजली की मांग का 44% उत्पन्न कर सकते हैं। इसके लिए स्वच्छ ऊर्जा को दोगुना से भी अधिक करने की आवश्यकता होगी, जबकि भारत इस अवधि में अपनी बिजली की खपत को भी दोगुना कर देगा।

लेकिन हमें यह स्पष्ट होना चाहिए कि यह अभी भी वर्क-इन-प्रोग्रेस है। हमें इस बात की सावधानीपूर्वक समीक्षा करना होगी कि क्या कारगर है और क्या नहीं। भारत ने अपनी रिन्यूएबल ऊर्जा की स्थापित क्षमता में वृद्धि की है- पुरानी (जलविद्युत) और नई (सौर और पवन) दोनों में।

यह भी एक तथ्य है कि भारत में आज लगभग 200 गीगावाट की स्वच्छ ऊर्जा क्षमता है। लेकिन यह पर्याप्त नहीं है। क्योंकि इस गैर-जीवाश्म बिजली क्षमता ने इस अवधि में एक चौथाई से भी कम बिजली का उत्पादन किया है।

यदि आप केवल नई रिन्यूएबल एनर्जी- सौर और पवन- पर विचार करते हैं, जिन्होंने निवेश और स्थापना के मामले में साल-दर-साल प्रभावशाली वृद्धि देखी है, तो यह मात्र 13 प्रतिशत है। सरकार के अपने प्रस्ताव के अनुसार, कोयले की जगह लेने के लिए स्वच्छ ऊर्जा के इन स्रोतों को 2030 तक आवश्यक बिजली का 30 प्रतिशत उत्पादन करना होगा।

सोलर एनर्जी कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (एसईसीआई) की वेबसाइट से पता चलता है कि जून 2024 तक प्रभावी बिजली खरीद समझौते (पीपीए) की तारीख से बहुत पहले ही परियोजनाओं का एक बड़ा पोर्टफोलियो चालू नहीं हुआ था।

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि मौजूदा व्यवस्था के अनुसार, परियोजनाओं को पीपीए पर हस्ताक्षर होने के बाद ही टेंडर दिए जाते हैं। यह भी तब किया जाता है, जब परियोजना प्रस्तावक यह स्पष्ट कर देता है कि उसके पास परियोजना के लिए निवेश और भूमि सहित अन्य सुविधाएं हैं।

एसईसीआई के अनुसार, इनसे सौर, पवन और हाइब्रिड परियोजनाओं की कुल क्षमता 34.5 गीगावाट हो जाती है। फिर 10 गीगावाट तक की परियोजनाएं अभी भी पीपीएएस का इंतजार कर रही हैं। ये इसलिए अटकी हुई हैं क्योंकि राज्य बिजली खरीद एजेंसियां ​​प्रस्तावित कीमत पर हस्ताक्षर करने के लिए अनिच्छुक हैं। और ये तब हो हो रहा है, जब एक नई कोयला परियोजना से वितरित बिजली की लागत एक सौर परियोजना से अधिक है। हमें इन कमियों को दूर करना होगा।

(ये लेखिका के अपने विचार हैं)

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