‘सीएम का पेट खराब था, इसीलिए बाबरी विध्वंस के बाद भोपाल दंगों में समय पर नहीं लगा कर्फ्यू’…MP की अजब सियासत का गजब हाल

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‘सीएम का पेट खराब था, इसीलिए बाबरी विध्वंस के बाद भोपाल दंगों में समय पर नहीं लगा कर्फ्यू’…MP की अजब सियासत का गजब हाल

‘सीएम का पेट खराब था, इसीलिए बाबरी विध्वंस के बाद भोपाल दंगों में समय पर नहीं लगा कर्फ्यू’…MP की अजब सियासत का गजब हाल

भोपालः एमपी गजब है। यहां के लोग अजब हैं और नेताओं के तो क्या कहने। यहां ऐसे भुलक्कड़ मुख्यमंत्री भी हुए हैं जो अपने मंत्रियों तक को नहीं पहचान पाते थे। एक मुख्यमंत्री ने तो अपने मातहत मंत्री की घूसखोरी की बात फाइल की नोटशीट में लिख दी थी। प्रदेश के एक विधायक को जब सरकारी आवास मिलने में देरी हुई तो उसने विधानसभा परिसर में स्पीकर पर बंदूक तान दी थी। ऐसा ही एक किस्सा बाबरी मस्जिद टूटने के ठीक बाद का है जब मुख्यमंत्री का पेट खराब होने के चलते राजधानी भोपाल में कर्फ्यू लगाने का फैसला लेने में देर हुई।

भोपाल में करीब 139 लोगों की जान गई
छह दिसंबर, 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद पूरे देश में दंगे फैल गए थे। दंगों में सबसे ज्यादा मौतें मुंबई में हुई थीं जहां 458 लोग मारे गए थे। इसके बाद गुजरात के सूरत का नाम था, जहां 200 लोगों की मौत हो गई थी। तीसरा सबसे भयानक दंगा भोपाल में हुआ था। यहां करीब 139 लोगों की जान गई थी। उस समय मध्य प्रदेश में बीजेपी की सरकार थी और सुंदरलाल पटवा मुख्यमंत्री थे।

बाबरी विध्वंस के एक दिन बाद शुरू हुए दंगे
भोपाल में दंगों की शुरुआत पुराने शहर से हुई थी जब हिंदुओं के जुलूस पर पथराव हुआ। सात दिसंबर, 1992 की सुबह दंगा तब शुरू हुआ जब कुछ मुसलमान युवकों ने जहांगीराबाद की सरकारी इमारतों पर और हिंदू परिवारों पर हमला बोल दिया था। उसी रात भोपाल उत्तर से निर्दलीय विधायक आरिफ अकील को गिरफ्तार कर सागर जेल भेज दिया गया।

मीडिया ने भी आग में घी डालने का काम किया
दंगों को फैलाने में पक्षपाती मीडिया की भी अहम भूमिका थी। दो अखबारों ने एक गर्ल्स हॉस्टल पर हमले की गलत खबर छाप दी जिसने आग में घी डालने का काम किया। उस समय एमए खान भोपाल के कलेक्टर थे जबकि सुभाष अत्रे एसपी थे। जब दंगा बढ़ गया तो दोनों अधिकारी शहर में कर्फ्यू लगाने के आदेश पर हस्ताक्षर लेने मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा के आवास पर पहुंचे। उन्हें वहां लंबा इंतजार करना पड़ा क्योंकि पटवा देर तक बाहर ही नहीं निकले। इसका कारण भी बड़ा रोचक है।

बाथरूम में थे सीएम, कलेक्टर-एसपी इंतजार करते रहे
बताया जाता है कि उन दिनों पटवा का पेट बहुत खराब रहता था। वे काफी समय गुसलखाने में बिताते थे। कलेक्टर और एसपी जब उनके आवास पर पहुंचे तो पटवा बाथरूम में थे। उन्हें काफी समय लगा और तब तक दोनों अधिकारी बाहर इंतजार करते रहे। पटवा जब बाहर आए, तब उन्होंने कर्फ्यू लगाने के आदेश को मंजूरी दी। उस समय सक्रिय रहे पुराने पत्रकारों की मानें तो विलंब से कर्फ्यू का निर्णय शहर में बहुत सी हिंसक घटनाओं का कारण बना।

रातोंरात बदले गए कलेक्टर और एसपी
आठ दिसंबर तक भोपाल में हालात इतने खराब हो चुके थे कि कलेक्टर और एसपी को रातोंरात बदल दिया गया। प्रवेश शर्मा को नया कलेक्टर बनाया गया जबकि दुर्ग के तत्कालीन एसपी सुरेंद्र सिंह को भोपाल में पदस्थ किया गया। ये फैसला इतना आनन-फानन में लिया गया कि सुरेंद्र सिंह को दुर्ग से भोपाल लाने के लिए सरकारी हवाई जहाज भेजा गया।

कारसेवकों के स्वागत के लिए मंत्री की ड्यूटी
पटवा की पेट खराब की समस्या शहर में कर्फ्यू लगाने में देरा का कारण भले बनी हो, लेकिन उन्होंने कारसेवकों के स्वागत में कोई कसर नहीं छोड़ी। उन्होंने अपने एक मंत्री बाबूलाल गौर की ड्यूटी भोपाल रेलवे स्टेशन पर लगाई थी जिससे अयोध्या से लौट रहे कारसेवकों को कोई मुश्किल ना हो।

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