सिविल सर्विस डे पर मिलिए IAS नीलकमल दरबारी से: पाली में महिलाओं की स्थिति पर बोली- जितना पिछड़ा क्षेत्र उतनी आगे बढ़ने की ललक देखी – Pali (Marwar) News

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सिविल सर्विस डे पर मिलिए IAS नीलकमल दरबारी से:  पाली में महिलाओं की स्थिति पर बोली- जितना पिछड़ा क्षेत्र उतनी आगे बढ़ने की ललक देखी – Pali (Marwar) News

सिविल सर्विस डे पर मिलिए IAS नीलकमल दरबारी से: पाली में महिलाओं की स्थिति पर बोली- जितना पिछड़ा क्षेत्र उतनी आगे बढ़ने की ललक देखी – Pali (Marwar) News

आईएएस नीलकमल दरबारी। फाइल फोटो

सिविल सर्विस डे पर आज हम आपको पाली जिले में तैनात की गई पहली महिला जिला कलेक्टर रही IAS नीलकमल दरबारी से रूबरू करवाते है। जिन्होंने अपने पाली में ड्यूटी को लेकर कई अनुभव NEWS4SOCIALसे साझा किए और बताया कि…

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जव उन्होंने वर्ष 1996 में पाली में जॉइन किया था। लेकिन बच्चियों और महिलाओं में एक जिज्ञासा भी देखी कि वे सोचती ,इनसे खुलकर बात कर सकते हैं। जब कभी फील्ड में जाती,मैं आगे चलकर बच्चियों से बात करती। यह जानकारी में आया कि पांचवी और आठवीं तक पढ़ाने के बाद इनकी पढ़ाई रुक जाएगी। तब पढ़ाई के संसाधन सीमित थे। इंटरनेट,यू ट्यूब नहीं थे। उनमें आगे पढ़ने की जिज्ञासा को संवाद से प्रोत्साहित करती।

स्वरोजगार की ललक

महिलाओं में स्वरोजगार की बहुत ललक नजर आई। इसके लिए हम ग्रामीण विकास,महिला बाल विकास ,जिला उद्योग केंद्र ,ट्राई सेम सहित महिलाओं के रोजगार से जुड़ी कई योजनाओं को एक अम्ब्रेला “नारी शक्ति चेतना “के नीचे लाए।तब स्किल डिपार्टमेंट जैसा कुछ अलग से नहीं था।इनके लिए घर बैठकर रोजगार के लिए सिलाई,मसाला कुटाई सहित कई पारंपरिक उद्योगों की ट्रेनिंग की व्यवस्था करवाई।

वाक्या आत्मविश्वास व स्वाभिमान का

इनमें आत्मविश्वास और स्वाभिमान की भावना भी खूब झलकती थी।एक वाक्या याद आता है।मेरे ऑफिस के बाहर मैंने करीब 22 साल की नव विवाहिता को दो तीन दिनों से रोज़ बैठे देखा ।उसे अंदर बुलाया।उसने भावुकता से बताया,कि उसके पति मुंबई गए थे ।अब उनका पता नहीं चल रहा।शायद वे दंगों में लापता थे ।उसके परिवार वाले भी उस नवविवाहिता के भविष्य को लेकर उदासीन थे।तब ऐसी परिस्थिति को देखते हुए उसको स्वरोजगार प्रदान कराने की व्यवस्था कराई।सिलाई प्रशिक्षण का इंतजाम करवाया।

महत्वाकांक्षी और सहयोगी

उन दिनों मेरी भी बच्ची चार साल की थी।मुझे देखकर बच्चियां मोटिवेट होती थी ।वे खुसुर फुसुर के अंदाज़ में अपनी महत्वाकांक्षा मुझ तक पहुँचा देती,कि वे भी पढ़कर कुछ बनना चाहती है ।उनकी हौसला अफजाई करती ।उनमें व महिलाओं में सहयोग की भावना भी बहुत देखी ।निखिल डे व अरुणा रॉय के अकाउंटेबिलिटी एंड पब्लिक एक्सपेंडिचर कार्यक्रम के सिलसिले में मगरा क्षेत्र में गई थी।वहाँ महिलाओं ने दीवारों पर लिखने से लेकर कार्यक्रम में पूरा सहयोग किया।

लेकिन घर के आस पास सफाई की जागरूकता नहीं

यह भी देखा कि व्यक्तिगत स्वच्छता को लेकर तो वे जागरूक थी।लेकिन घर का कचरा घर के आस पास डाल देने की प्रवृत्ति के प्रति जागरूक नहीं थी।अवेयरनेस कैंपेन,नागरिक दायित्व ,साक्षरता के सिलसिले में जब जब भी फील्ड में जाती।देखती कि वह क्षेत्र जितना पिछड़ा हुआ है,महिलाओं में आगे बढ़ने की ललक उतनी ज़्यादा है।आज भी याद आता है कि मुझे देखकर लड़कियाँ पढ़ने की चाहत को लेकर बहुत उत्साहित होती थी।

(जैसा तोषचन्द्र चौहान को बताया) ‎

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