सिवान का अगला ‘साहेब’ कौन? क्या ओसामा साहब में शहाबुद्दीन की राजनीतिक विरासत संभालने की कुवत

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सिवान का अगला ‘साहेब’ कौन? क्या ओसामा साहब में शहाबुद्दीन की राजनीतिक विरासत संभालने की कुवत

सिवान का अगला ‘साहेब’ कौन? क्या ओसामा साहब में शहाबुद्दीन की राजनीतिक विरासत संभालने की कुवत

सिवान
राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के पूर्व सांसद मोहम्मद शहाबुद्दीन की कोरोना से जेल में मौत के बाद सिवान जिले में नए सिरे से राजनीतिक हलचल शुरू हो गई है। इन दिनों बिहार में लॉकडाउन होने के चलते सिवान के चौक-चौराहों पर तो राजनीतिक चर्चाएं बंद हैं, लेकिन जिले के गांवों में लोग आपसी बातचीत में यही बातें करते देखे जा रहे हैं कि मोहम्मद शहाबुद्दीन जैसे बड़े सियासी तस्वीर के फ्रेम में अब किस नेता की फोटो फिट होने की संभावना है। यूं कहें कि पूरे सिवान में ही चर्चा है कि नया ‘साहब’ कौन होगा।

ओसामा साहब में है साहेब बनने की कुवत?
सिवान के लोग बताते हैं कि मौजूदा दौर में दूसरा मोहम्मद शहाबुद्दीन बनना नामुमकिन लगता है। वे कहते हैं कि शहाबुद्दीन जब अपने पूरे शबाब पर थे तब सिवान में उनकी अलग समानंतर सरकार चलती थी। आलम यह था कि कोई झगड़ा या जमीन बंटवारा के मामले में बिहार पुलिस और प्रशासन अलग कार्रवाई करती थी, वहीं शहाबुद्दीन की अलग न्याय प्रक्रिया चलती थी। बातचीत के दौरान पता चलता है कि जिले के गांवों में सैकड़ों ऐसे मामले हैं जिसमें दो भाइयों का विवाद होने पर उन्होंने पुलिस प्रशासन का फैसला नहीं स्वीकार किया, लेकिन शहाबुद्दीन की हवेली से सुनाए गए फैसले पर दोनों पक्ष बिना किसी झिझक के राजी हो जाते। ऐसी ही तमाम घटनाओं को देखते हुए इलाके के लोग मोहम्मद शहाबुद्दीन को साहेब कहकर संबोधित करते। अब उनकी मौत के बाद लोग कहते हैं कि सिवान में दूसरा साहेब नहीं पैदा हो सकता है।

मोहम्मद शहाबुद्दीन के बेटे ओसामा साहब और लालू प्रसाद यादव के बेटे तेजस्वी यादव।

मोहम्मद शहाबुद्दीन की राजनीतिक विरासत संभालने की रेस में सबसे ज्यादा उनके बेटे ओसामा साहब का नाम चर्चा में है। ओसामा विदेश से पढ़ाई कर लौटे हैं, लेकिन वह सिवान की सियासत से दूर नहीं हैं। ओसामा मां हिना शहाब के लिए चुनाव प्रचार की बागडोर संभाल चुके हैं। इलाके के लोग कहते हैं कि अभी तो हिना शहाब ही राजनीति में हैं, इसलिए यह देखना होगा कि वह बेटे ओसामा को किस रूप में सिवान की राजनीति में लॉन्च करती हैं। साथ ही लोग ये भी कहते हैं कि ओसामा जब चुनावी राजनीति में खुलकर आएंगे तभी पता चल पाएगा कि उनके अंदर पिता की विरासत संभालने का कितना माद्दा है।

किनसे मिलेगी ओसामा को चुनौती
सिवान की पिछले 3 दशक की राजनीति पर गौर करें तो पता चलता है कि माले और शहाबुद्दीन में हमेशा से सियासी टकराव के हालात बने रहे। माना जाता है कि यह अब तक जारी है। ऐसे में तय है कि अगर ओसामा राजनीति में कदम रखते हैं तो उन्हें माले से चुनौती मिलनी तय है। सिवान में अमरनाथ यादव, ओमप्रकाश यादव, अजय सिंह कुछ ऐसे चेहरे हैं जिनसे शहाबुद्दीन की हमेशा से सामना होता रहा। साल 1990 में शहाबुद्दीन पहली बार निर्दलीय विधायक बने थे। इसके बाद वह लालू प्रसाद यादव के करीबी बने तो मरते दम तक उन्हीं के साथ रहे।

बाहुबली नेता शहाबुद्दीन की मौत पर सियासत शुरू

यहां तक राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) की स्थापना और राबड़ी देवी की सरकार बनवाने में भी शहाबुद्दीन का योगदान अहम रहा। उस दौरान आरोप लगे थे कि जनता दल का विघटन होने पर शहाबुद्दीन ने ही विधायकों को डर और भरोसे के जरिए एकजुट रखा था और लालू फैमिली को सियासत में बनाए रखा। ओमप्रकाश यादव 2009 और 2014 में सिवान से सांसद चुने गए, लेकिन इससे ज्यादा वे मोहम्मद शहाबुद्दीन को सीधे चुनौती देने के लिए जाने जाते हैं। जब भी किसी मुकदमें में शहाबुद्दीन का नाम आता तो ओमप्रकाश यादव उसे पुरजोर तरीके से उठाते।

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इसी तरह कभी शहाबुद्दीन के करीबी रहे अजय सिंह भी चुनावी राजनीति में उन्हें चुनौती देते दिखे थे। साल 2011 में दरौंदा विधानसभा सीट पर अजय सिंह ने अपना राजनीतिक कद ऊंचा करने के लिए शहाबुद्दीन से अलग जाकर ताल ठोक दी थी। सत्ताधारी जेडीयू में बेदाग छवि बनाए रखने के लिए अजय सिंह ने पितृपक्ष में शादी की और अपनी नई नवेली पत्नी कविता को विधायक बनवाने में सफल रहे। इसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में कविता जेडीयू के टिकट पर सांसद भी बनी हुई हैं।

सिवान की राजनीति में ये तमाम चेहरे हैं जो मोहम्मद शहाबुद्दीन के लाल ओसामा साहब को राजनीति में पैर जमाने से रोक सकते हैं। देखना होगा कि ओसामा कैसे इनका सामना कर सिवान में अपने पिता शहाबुद्दीन की राजनीतिक विरासत संभालते हैं।

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शहाबुद्दीन की ताकत को अपने पास समेट पाएंगे ओसामा
मोहम्मद शहाबुद्दीन की बिहार के मुस्लिमों के बीच खासी पहुंच रही। इसकी बानगी उनकी मौत के बाद भी देखी जा सकती है। शहाबुद्दीन का शव सिवान लाने में असफल रही आरजेडी पर गंभीर आरोप लगाकर पार्टी के प्रदेश उपाध्‍यक्ष और बिहार विधान परिषद के सभापति रह चुके सलीम परवजे और पार्टी के तकनीकी प्रकोष्ठ के प्रदेश सचिव मो. शोहराब कुरैशी ने इस्तीफा दे दिया है। इसके अलावा राज्य के कई हिस्सों में शहाबुद्दीन की मौत पर शोक सभाएं आयोजित की गई हैं। इसके अलावा सिवान के गरीब तबके के लोग भी शहाबुद्दीन को काफी पसंद करते। इन ताकतों को एकजुट रखना भी ओसामा के लिए चुनौती होगी।

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