सितम्बर में क्यों बढ़ जाता है डिप्रेशन, कहीं आपको भी तो नहीं ‘सेप्टेम्बर ब्लूज’, एक्सपर्ट बोले ऐसे रहेंगे खुश | Lifestyle tips Seasonal Depression or september blues kya hai depression se bachne ke aasaan tarike | News 4 Social h3>
केस 1.
महेश (बदला हुआ नाम) कहते हैं कि उन्हें डिप्रेशन की प्रॉब्लम करीब 10 साल से है। दवाएं लेेने से उन्हें आराम जरूर मिलता है। लेकिन जैसे ही मौसम या सीजन में बदलाव आता है तब उनका डिप्रेशन बढऩे लगता है। खासतौर पर तब जब धूप नहीं निकलती। या फिर तब जब सीजन बदलना शुरू हो जाता है। अक्सर सितंबर महीने से उनका मन बेचैन होना शुरू हो जाता है। एक अजीब सी उदासी उन्हें घेरे रहती है। घर हो या बाहर किसी से भी मिलना-जुलना पसंद नहीं आता। किसी काम में मन नहीं लगता। बस ऐसा लगता है बंद और अंधेरे कमरे में आंखें बंद करके लेटे रहो, नींद आ जाए तो ठीक, नहीं तो आंखें बंद कर खुद को शांत करने की कोशिश जारी रहती है।
केस 2
प्रियंका (बदला हुआ नाम) कहती हैं कि उन्हें लॉकडाउन के समय 2020 के दौरान ऐसा हुआ था कि उनका मन बेचैन रहने लगा था, वे परिवार के साथ रहते हुए भी अकेलापन महसूस कर रही थीं। ये प्रॉब्लम सितम्बर के महीने में और बढ़ गई। जिसके बाद उन्होंने डॉक्टर को दिखाया। उनके फैमिली डॉक्टर ने उन्हें मनोचिकित्सक से एडवाइस की बात कही। जब वे डॉक्टर के पास पहुंची तब उन्हें पता चला कि वे डिप्रेशन की शिकार हो चुकी हैं। पिछले 2 साल से उनका डिप्रेशन का इलाज जारी है। लेकिन सितम्बर के महीने में खासतौर पर जैसे ही दिन छोटे होना शुरू होने लगते हैं। तब से उनकी लाइफस्टाइल चैंज होना शुरू हो जाती है। भीड़ में भी वह खुश नहीं रह पातीं अकेलापन उन्हें ज्यादा पसंद आता है। वह बिना कुछ बात किए घंटों बिताने लगती हैं। किसी काम में मन नहीं लगता।
ये तो केवल 2 ही केस हैं। राजधानी भोपाल प्रदेशभर में ऐसे एक दो नहीं बल्कि सैकड़ों केस आते हैं। जिनमें डिप्रेशन के मरीजों में मौसम या सीजन में होने वाले शुरुआती बदलाव के कारण डिप्रेशन हावी होने लगता है। लेकिन मनोचिकित्सक डॉ. सत्यकाम त्रिपाठी कहते हैं अगर आपके साथ भी ऐसा हो रहा है, तो इन परिस्थितियों को समझें। सितम्बर में सीजन में होने वाले बदलाव के कारण मेंटली हेल्थ प्रभावित होती है। डिप्रेशन बढऩे लगता है। यही कारण है कि इस महीने को उदासी के महीने के नाम से भी जाना जाता है। लेकिन ऐसा हर किसी के साथ होता है, किसी के साथ ज्यादा किसी के साथ कम। खास तौर पर डिप्रेशन से पहले से ही जूझ रहे लोगों पर सीजन में होने वाला यह बदलाव हावी होने लगता है। यही स्थिति सेप्टेम्बर ब्लूज कहलाती है।
एक्सपर्ट कहते हैं घबराए नहीं
एक्सपर्ट कहते हैं कि सितंबर में शुरू होने वाला यह उदासी, अकेलेपन का अहसास सर्दियां आते-आते और गहरा जाता है। खासतौर पर पश्चिमी देशों में ये मामले तेजी से बढ़ते हैं। दरअसल सेप्टेम्बर ब्लूज को हम सीजनल एफेक्टिव डिसऑर्डर (एसडी)बीमारी कहते हैं। हालांकि भारत में भी इनकी संख्या तेजी से बढ़ रही है। ऐसे में डॉ. सत्यकाम त्रिपाठी सलाह देते हैं कि..
– इससे कैसे बचना है, इसके जवाब में एक्सपर्ट कहते हैं कि बेफिक्र होकर मौसम और सीजन का लुत्फ उठाएं।
– एसडी की इस बीमारी में सूरज की रोशनी मस्तिष्क के उस हिस्से पर असर डालती है, जो सोने और ऊर्जा स्तर का नियमन करता है।
– इसके बुरे असर की बात की जाए, तो होगा बस इतना ही कि आप खुद को काम करने लायक स्थिति में नहीं पाते। आम दिनों के मुकाबले इन दिनों आपके लिए काम करना मुश्किल बन पड़ता है। यही इसका सबसे बुरा असर होता है।
– इसके विपरीत यदि सूरज की पर्याप्त रोशनी हो, तो ऐसे लोग बहुत ही रिलेक्स फील करते हैं और खुश भी नजर आते हैं।
– सर्दियों का अहसास भर ही इन्हें कुछ इस तरह परेशान करता है कि ये लोग खुद से 10 बार सवाल पूछते हैं गर्मी क्यों चली गई।
– इससे बचने के लिए गर्मियों के रूटीन या आदत को छोड़कर सितंबर में नई चुनौतियों का सामना करने के लिए खुद को तैयार करें।
– सेहत से जुड़ी अपनी अच्छी आदतों को छोड़ें नहीं, बल्कि अपना रूटीन बने रहने दें।
– लोगों से दोस्तों से मिलने-जुलने की आदत बनाए रखें।
– वहीं अगर आप पहले से ही डिप्रेशन का इलाज ले रहे हैं तो आपके डॉक्टर आपको समय-समय पर अपडेट करते हुए इन परिस्थितियों से निपटने के लिए मेंटली प्रिपेयर होने की तैयारी करवाते हैं।
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