सबको मुफ्त वैक्‍सीन, क्‍या वाकई सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद सरकार ने लिया फैसला?

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सबको मुफ्त वैक्‍सीन, क्‍या वाकई सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद सरकार ने लिया फैसला?


सबको मुफ्त वैक्‍सीन, क्‍या वाकई सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद सरकार ने लिया फैसला?

नई दिल्‍ली
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लोगों को मुफ्त वैक्‍सीन देने का ऐलान करते ही इसे लेकर अलग-अलग तरह की प्रतिक्रियांए आने लगीं। भाजपा शासित राज्‍यों के मुख्‍यमंत्रियों ने जहां इस कदम का स्‍वागत किया। वहीं, विपक्षी दलों ने दावा किया कि सुप्रीम कोर्ट के डर से सरकार ने यह फैसला किया। ऐसा कहने वालों में दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया भी शामिल रहे। उन्‍होंने कहा कि अगर केंद्र सरकार चाहती तो काफी पहले वह ऐसा कर सकती थी। लेकिन, सुप्रीम कोर्ट की दखल के बाद उसे यह कदम उठाना पड़ा। क्‍या यही सच है? आइए, यहां जानते हैं कि आखिर सुप्रीम कोर्ट ने वाकई केंद्र से क्‍या कहा था।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 21 जून से 18 साल से अधिक उम्र के सभी लोगों के लिए निशुल्क टीकाकरण की सोमवार को घोषणा की। इसके कुछ दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से अपनी वैक्‍सीनेशन पॉलिसी की समीक्षा करने को कहा था।

न्यायालय ने कहा था कि राज्यों और निजी अस्पतालों को 18-44 साल के लोगों से टीके के लिए शुल्क वसूलने की अनुमति देना पहली नजर में ‘मनमाना और अतार्किक’है। प्रधानमंत्री ने राष्ट्र के नाम संबोधन में कहा कि पूरे देश में 18 साल से अधिक उम्र के सभी लोगों के वैक्‍सीनेशन के लिए केंद्र सरकार 21 जून से राज्यों को फ्री टीके देगी। केंद्र ने टीका निर्माताओं से राज्य के 25 फीसदी कोटे समेत 75 फीसदी डोज खरीदने और इसे राज्य सरकारों को निशुल्क देने का फैसला किया है।

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सुप्रीम कोर्ट कर रहा सुनवाई
यह पूरा घटनाक्रम महत्वपूर्ण है। कारण है कि न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने उदारीकृत टीकाकरण नीति और केंद्र, राज्यों और निजी अस्पतालों के लिए अलग-अलग कीमतों को लेकर केंद्र सरकार से कुछ तल्ख सवाल पूछे थे। शीर्ष अदालत देश में कोविड-19 के प्रबंधन पर स्वत: संज्ञान लिए गए एक मामले पर सुनवाई कर रही है।

वैक्‍सीनेशन के दो चरणों के तहत केंद्र ने अग्रिम स्वास्थ्यकर्मियों और 45 साल से ज्यादा उम्र के लोगों के लिए निशुल्क टीके मुहैया कराए। इसके बाद उदारीकृत टीकाकरण नीति लाई गई। इसके तहत अलग-अलग मूल्यों की शुरुआत की गई। यह निर्णय समीक्षा के दायरे में है।

पीठ ने टीकाकरण नीति की आलोचना करते हुए कहा था कि अगर कार्यपालिका की नीतियों से नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों का हनन हो तो अदालतें मूकदर्शक बनी हुई नहीं रह सकती हैं। अदालत ने इस नीति को प्रथम दृष्टया मनमाना और अतार्किक बताया और इसकी समीक्षा करने का आदेश दिया। इस आदेश को दो जून को अपलोड किया गया था।

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शीर्ष अदालत ने केंद्र से दो सप्ताह के भीतर बजट में वैक्‍सीनेशन के लिए निर्धारित 35,000 करोड़ में से अब तक हुए खर्च और सभी संबंधित दस्तावेज, नीति को लेकर फाइल नोटिंग के विवरण मुहैया कराने को कहा।

कोर्ट ने जताई थी चिंता
टीके के अलग-अलग मूल्य को लेकर चिंता प्रकट करते हुए न्यायालय ने कहा था, ‘हम केंद्र सरकार से इन चिंताओं के समाधान के लिए अपनी टीकाकरण नीति की नए सिरे से समीक्षा करने का निर्देश देते हैं।’

प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में कहा कि केंद्र ने टीका निर्माताओं से राज्य के 25 फीसदी कोटे समेत 75 फीसदी डोज खरीदने और इसे राज्य सरकारों को निशुल्क देने का फैसला किया है।

सुप्रीम कोर्ट की पीठ में एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट भी थे। पीठ ने कहा, ‘केंद्रीय बजट में 2021-22 के लिए टीका खरीदने के वास्ते 35,000 करोड़ रुपये निर्धारित किए गए। उदारीकृत नीति के आलोक में केंद्र सरकार को यह स्पष्ट करने का निर्देश दिया जाता है कि इस कोष से अब तक कितना खर्च हुआ है और इनका इस्तेमाल 18-44 साल के लोगों के टीकाकरण के लिए क्यों नहीं हो रहा।’

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