संडे जज्बात- अब्बू मुझे आज मार दिया जाएगा: दुबई की जेल से रोते हुए बेटी ने कहा- मेरा टाइम तो खत्म हुआ, लेकिन उजैर को मत छोड़ना

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संडे जज्बात- अब्बू मुझे आज मार दिया जाएगा:  दुबई की जेल से रोते हुए बेटी ने कहा- मेरा टाइम तो खत्म हुआ, लेकिन उजैर को मत छोड़ना

संडे जज्बात- अब्बू मुझे आज मार दिया जाएगा: दुबई की जेल से रोते हुए बेटी ने कहा- मेरा टाइम तो खत्म हुआ, लेकिन उजैर को मत छोड़ना

मेरा नाम शब्बीर खान है। यूपी के बांदा जिले के गोयरा मुगली गांव में रहता हूं। 14 फरवरी की बात है। देर रात घर पर सब सो रहे थे। अचानक फोन बजा। इंटरनेशनल नंबर देखकर मेरे रोंगटे खड़े हो गए। अंदाजा हो गया था कि कोई बुरी खबर होगी।

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ये फोन दुबई की जेल से आया था। फोन उठाते ही सिसकियां सुनाई दीं। मेरी शहजादी, मेरी बेटी रो रही थी। रोते हुए बोली, अब्बू मेरा टाइम खत्म हो गया। आज मुझे फांसी हो जाएगी। मुझसे कहा गया है कि केवल दस मिनट हैं तुम्हारे पास, जिससे बात करना है कर लो। मुझे आज तक ये नहीं पता है कि मेरी बेटी को फांसी हुई है या उसे गोली मारकर खत्म किया है।

मैं एक मजबूर बाप फोन पर अपनी बेटी को सिर्फ इतना ही कह सका कि बेटा रो मत। बेटी को उस आखिरी 10 मिनट में भी हमारी ही फिक्र थी। उस वक्त भी वो यही कह रही थी कि आप लोग अपना ध्यान रखिएगा। मेरी चिंता न कीजिएगा। अब मैं सुकून से रहूंगी। सारे मुकदमे वापस ले लीजिएगा, लेकिन उजैर को नहीं छोड़िएगा। मैं कुछ भी न कह सका, सिर्फ हां-बेटा!, हां-बेटा बोलता रहा।

22 दिन हो गए मेरी बेटी की मौत को। आज भी उसके वो आखिरी शब्द मेरे कानों में गूंजते हैं। उसकी बातें मुझे बहुत तकलीफ देती हैं। उसे मालूम था कि तीन घंटे बाद मरना है, फिर भी वो हमें समझा रही थी। ये बात मुझे रोज परेशान करती है। उसको उसी दिन यानी 15 फरवरी की सुबह सजा-ए-मौत दी गई।

सजा-ए-मौत के बाद शहजादी को अबू धाबी के कब्रिस्तान नंबर A7S1954 में दफनाया गया है।

शहजादी पर चार माह के बच्चे के कत्ल का आरोप था। जब वो छोटा बच्चा मरा, तो बेटी उसके कब्र पर गई थी। लौटकर आई तो वीडियो कॉल पर अपनी मां से कह रही थी कि मुझे वहां सुकून मिला। ऊपर वाले ने उसकी सुन ली है। उसे भी वहीं दफना दिया गया, जहां उस बच्चे को दफनाया गया, जिसकी मौत का आरोप मेरी बेटी पर लगा था।

मेरी बेटी पर झूठे आरोप लगाकर सजा-ए-मौत दिलवाने वालों ने अपने रसूख का इस्तेमाल किया। उस बच्चे का पोस्टमॉर्टम तक रुकवा दिया गया था, जिसके मरने के 52 दिन बाद मेरी बच्ची पर मुकदमा कर दिया गया।

उसे महीनों खलीफा सीटी पुलिस स्टेशन में रखा। इतना सबकुछ हुआ, लेकिन बेटी को बचाया नहीं जा सका। मुझे बेटी की डेड बॉडी तक नहीं मिली। उसके कब्र की मिट्टी भी मिल जाती तो हमें थोड़ा सुकून होता।

उसकी केवल यही गलती थी कि वो ‘आम लड़कियों’ जैसा दिखना चाहती थी। बचपन में उसने एकबार मुझसे कहा था कि पापा प्लास्टिक सर्जरी करा दो, मैंने कह दिया था कि मेरे पास इतना पैसा नहीं है। उस दिन के बाद उसने कभी मुझसे कुछ नहीं कहा।

दरअसल, मेरी बेटी शहजादी नौ साल की थी। एक दिन किचन में खाना बनाते हुए उसका कमर से ऊपर का हिस्सा जल गया। इलाज कराया, लेकिन चेहरे के दाग नहीं गए।

बचपन में शहजादी का चेहरा जल गया था। कई जगह इलाज के बाद भी चेहरे से दाग नहीं गया।

स्कूल में बच्चे उसके चेहरे को लेकर कुछ न कुछ कह देते थे। घर आकर अपनी मां से रोती थी। कहती थी प्लास्टिक सर्जरी करवा दो, उससे चेहरा ठीक हो जाएगा। तब प्लास्टिक सर्जरी का खर्च कम से कम पांच लाख था। मैंने मना कर दिया कि बेटा हमारी हैसियत नहीं है।

एक बार इलाज के लिए कानपुर गई थी। वहां से आकर बताया कि डॉक्टर ने कहा है कि शरीर थोड़ा मजबूत करो फिर देखते हैं। एक ऑपरेशन हुआ भी था, लेकिन वो चाहती थी कि थोड़ी सुंदर हो जाए।

धीरे-धीरे उसने हमसे इस बारे में बात करना बंद कर दिया। कभी इस बात का एहसास भी नहीं होने दिया कि वो अभी भी आम लड़कियों जैसा दिखना चाहती है। वो कुछ कहती नहीं थी तो हमें लगता था कि इस चेहरे के साथ ही खुश है अब। मुझे अफसोस इस बात का है कि मैं बेटी को समझ नहीं पाया। वो अपनी बात मुझसे कह नहीं पाई।

स्कूल में एक एनजीओ वाली दीदी के साथ ही काम करने लगी। कहती थी शादी नहीं करेगी। हम लोग भी मान गए। हमें लगता था कि चेहरा जला है, तो कोई उससे शादी करेगा भी नहीं।

शहजादी एनजीओ के काम में रच-बस गई थी। जाने कब उसने फेसबुक पर उजैर से दोस्ती कर ली। एकाध बार घर भी आया था। हमें यही लगता कि एनजीओ में काम करता है। हमें नहीं पता था कि वो बदमाश है। उस पर तो मुकदमे भी हैं।

शहजादी के पिता बेटी को याद कर बार-बार इमोशनल हो जाते हैं। उन्हें अफसोस है कि वे अपनी बेटी को बचा नहीं पाए।

उजैर ने पहले मेरी बेटी से शादी का वादा किया। उसे प्लास्टिक सर्जरी का भी लालच दिया। शहजादी से कहा कि दुबई में चेहरे की सर्जरी कराएगा। शहजादी ने कहा- घरवाले दुबई नहीं भेजेंगे। उजैर ने कहा- घरवालों को मत बताना।

मेरी बेटी ने उजैर की बात मान ली। हमें ये बताकर तीन महीने के लिए दुबई चली गई कि एनजीओ के काम से जा रही है। वो दुबई जाने के नाम पर इतनी खुश थी कि हम ज्यादा कुछ कह ही नहीं सके।

जिस दिन वो घर से जा रही थी, मन में एक अजीब सी बेचैनी थी। वो बार-बार कह रही थी चिंता मत करो, मैं रोज वीडियो कॉल करूंगी। बस तीन महीने की तो बात है।

वो नवंबर 2021 में घर से गई थी। उजैर ने कहा था पहले तुम जाओ फिर मैं भी अबुधाबी आ जाऊंगा। उसने शहजादी को अपने बुआ-फूफा का नंबर दिया था। उसके फूफा का नाम फैज और बुआ का नाम नाजिया है। अबुधाबी में उनका घर है।

उजैर की बुआ पुलिस में बड़ी अधिकारी है और फूफा वहां एक यूनिवर्सिटी में पढ़ाता है। मैंने दोनों से वीडियो कॉल पर बात की है। दोनों का काफी रसूख है।

शहजादी उनके घर पर ही रहती थी, लेकिन कभी नहीं बताया कि उसे नौकर की तरह रखा जाता था। उसके जाने के चार महीने बाद नाजिया को बेटा हुआ। वो वीडियो कॉल करती थी और सब कुछ दिखाती थी।

जब बच्चा हो गया तो एक दिन मैंने वीडियो कॉल पर कहा, तुम अब उनके घर में न रहो। अपने एनजीओ वालों के साथ रहो, क्या दिक्कत है? वो टाल जाती थी। अपनी मां से कहती थी कि बच्चे में मन लग गया है।

शहजादी अपने पिता शब्बीर खान के साथ।

एकबार टीका लगवाने के बाद नाजिया के बेटे की तबीयत खराब हो गई। वीडियो कॉल पर मेरे ही सामने नाजिया को कॉल करके बच्चे की तबीयत के बारे में बताया। नाजिया ने कहा कि उसे दूध पिला दो। तब नाजिया की मां भी घर पर थी। बच्चे को दूध पिलाया तो चुप हो गया।

एक दिन उसका वीडियो कॉल करीब पांच घंटे चला। इसी दिन नाजिया के बेटे की मौत हुई थी। उस दिन बच्चा काफी देर सोया था। शहजादी बार-बार उसे उठा रही थी, लेकिन वो उठ नहीं रहा था। शाम को जब बच्चे की मां घर आई तो शहजादी ने कहा, बाबू अभी तक सो रहा है। इतना कभी नहीं सोता।

ये लोग पास गए तो कुछ शक हुआ। तुरंत बच्चे को लेकर डॉक्टर के पास भागे। डॉक्टर ने बताया- बच्चा नहीं रहा। शहजादी ने अपनी मां को फोन किया और पूरी रात रोती रही। अगले दिन भी यही रोना-धोना चलता रहा।

ये सबकुछ धीरे-धीरे शांत हुआ। मैंने एक दिन शहजादी से कहा, अब तो उनका घर छोड़ दो। वो कहने लगी जल्द ही घर आऊंगी। घटना के एक महीने के बाद शहजादी से बातचीत कम होने लगी। वो वीडियो कॉल भी करती, तो इधर-उधर देखती रहती थी। पांच मिनट भी बात नहीं करती थी।

शहजादी पर 4 महीने के बच्चे की हत्या का आरोप था। वह 2 साल से अबुधाबी की जेल में बंद थी।

फिर सीधे जेल से शहजादी का फोन आया। उसने सारी कहानी बताई। कहा, बच्चे की मौत के बाद वो उजैर के बुआ-फूफा से घर आने के लिए जिद करने लगी। उन्हें बदनामी का डर था इसलिए शहजादी को भेजना नहीं चाहते थे। उन लोगों ने बच्चे का पोस्टमॉर्टम भी नहीं कराया था। बच्चे के डॉक्टर ने भी ये कहा था कि उसके जीवन में पहली बार ऐसा हुआ कि एक फोन से पोस्टमॉर्टम रोकना पड़ा।

एक दिन उन लोगों ने शहजादी को मारपीट कर कुबूल कराया कि उसकी गलती से बच्चे की मौत हुई है। फिर खलीफा थाने में रिपोर्ट कराई और कोर्ट में गई तो सीधे सजा-ए-मौत सुना दी गई। तभी हमें ये पता चला कि वो प्लास्टिक सर्जरी कराने के लिए दुबई गई थी।

जब उसने ये कहानी बताई तो मेरे पैर के नीचे से जमीन चली गई। अपनी बीमार पत्नी को लेकर उजैर के बुआ-फूफा के आगरा वाले घर गया। हम एक घंटा उस बड़ी सी कोठी के बाहर जमीन पर बैठे थे। फिर कह दिया गया कि यहां आने का कोई मतलब नहीं है।

हम कई बार एम्बेसी भी गए। मगर कोई जवाब नहीं आता था। आखिर 15 फरवरी को उसे मार दिया गया। ढाई साल में पहली बार विदेश मंत्रालय और एम्बेसी ने संपर्क किया। वो भी तब जब मैंने फोन मिलाकर उनसे शहजादी के बारे में पूछा। उन्होंने कहा कि रुकिए बताते हैं।

शब्बीर खान बताते हैं- ‘हम सरकार से सीबीआई जांच की मांग कर रहे हैं। जीते जी बेटी को इंसाफ नहीं मिला, मरने के बाद तो मिलना ही चाहिए।

ये बात 28 फरवरी की है। मैंने कई बार एम्बेसी में फोन किया तब उन्होंने कहा कि अफसोस है आपकी बेटी को नहीं बचाया जा सका। इससे पहले मैं किसके दरवाजे नहीं गया? पीएमओ से लेकर सीएम तक, मैं हर जगह गया और कहीं सुनवाई नहीं हुई।

अब मैं बस यही चाहता हूं कि जिंदा रहते तो बेटी को इंसाफ नहीं मिला। कम से कम मरने के बाद तो उसे इंसाफ मिल जाए। उजैर नाम का लड़का है, वो मानव तस्कर है। मेरी बेटी ने बताया था कि उजैर ने उससे तीन लाख रुपए लिए थे और उधर अपनी बुआ से भी डेढ़ लाख रुपए लिए थे। वो मेरी बेटी के दिव्यांग सर्टिफिकेट से हर महीने 1500 रुपए लेता रहा। मैंने ये सब कम्प्लेन की है। आप चेक कर सकते हैं।

मैंने आगरा में उजैर पर जुलाई 2024 का मुकदमा किया है, अभी तक ना चार्जशीट बनी है और ना ही कोई पूछने वाला है। वो पेंशन निकालता है, उसका एटीएम यूज करता है।

मुझे इस बात का जिंदगी भर अफसोस रहेगा कि मेरी बेटी को बचाया जा सकता था, लेकिन किसी ने मदद नहीं की। एसपी-डीजीपी, एम्बेसी से लेकर कई बड़े अधिकारियों तक के पास मैं गया, लेकिन किसी ने नहीं सुनी।

ये जज्बात शब्बीर ने NEWS4SOCIALरिपोर्टर शाश्वत से साझा किए।

डिस्क्लेमर: यूएई में 2020 के बाद से फायरिंग स्क्वॉड के जरिए गोली मारकर ही मृत्युदंड दिया जाता है।

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