शेखर गुप्ता का कॉलम: देश में गृहयुद्ध भड़काना चाहता है पाकिस्तान

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शेखर गुप्ता का कॉलम:  देश में गृहयुद्ध भड़काना चाहता है पाकिस्तान

शेखर गुप्ता का कॉलम: देश में गृहयुद्ध भड़काना चाहता है पाकिस्तान

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33 मिनट पहले

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शेखर गुप्ता, एडिटर-इन-चीफ, ‘द प्रिन्ट’

पाकिस्तान और आईएसआई पर आप एक यह आरोप नहीं लगा सकते कि उनके बारे में यह नहीं कहा जा सकता कब वे क्या कर बैठेंगे। पिछले 45 वर्षों से, जब से उन्होंने आतंकवाद को भारत के खिलाफ एक हथियार के रूप में इस्तेमाल करना शुरू किया है, तब से उनके अगले कदम का पहले से ही पता लगता रहा है। वैसे आईएसआई के तौर-तरीके एक सूत्र में गुंथे नजर आते हैं।

यह सूत्र है- भारत में हिंदुओं को निशाना बनाने के लिए जिहादी लश्करों का या छद्म आतंकवादियों के रूप में भारतीय अल्पसंख्यकों का इस्तेमाल करना। उनकी सोच यह थी कि यहां के हिंदू अल्पसंख्यकों से बदला लेने पर उतर आएंगे। वे भारत में इस तरह का संकट पैदा करने की कोशिश करते रहे हैं कि देश में गृहयुद्ध छिड़ जाए।

यह भारत को सामरिक, सैन्य, राजनीतिक और मनोबल की दृष्टि से कमजोर और दिशाहीन करता। वहीं, भारत का बहुसंख्यक समुदाय जब गुस्से तथा हताशा में अल्पसंख्यकों के खिलाफ खड़ा हो जाएगा तब दो कौम वाला सिद्धांत सही साबित हो जाएगा।

पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष जनरल आसिम मुनीर ने विदेश में रह रहे पाकिस्तानियों के बीच 16 अप्रैल को जो भाषण दिया, उसे सुनिए। वे जिस तरह कुरान का हवाला देकर आक्रामक भाषण दे रहे हैं, उस पर अगर आप ध्यान देंगे तब आप समझ जाएंगे कि दर्द कहां से उठ रहा है।

यह दर्द पाकिस्तान की वैचारिक बुनियाद, दो कौम वाले सिद्धांत की विफलता से उपजता है, जिसे 1971 में ध्वस्त कर दिया गया था। उस सिद्धांत को फिर से चुनौती पाकिस्तान के पश्चिमी सूबों में स्थानीय अल्पसंख्यकों की ओर से मिल रही है।

वे सब मुसलमान ही हैं। लेकिन उनमें से कई पाकिस्तान से बाहर आना चाहते हैं और इसके लिए मरने-मारने तक को तैयार हैं। ऐसे में आप दो कौम वाले सिद्धांत और पाकिस्तान की वैचारिक बुनियाद की वकालत कैसे कर सकते हैं? यह साबित करके कि भारत में मुसलमानों को प्रताड़ित किया जा रहा है।

साफ तौर पर हिंदुओं को चुन कर उनकी हत्या करने की पहली घटना 5 अक्तूबर 1983 को हुई। पंजाब में ढिलवान कस्बे से कपूरथला जा रही बस को रोक कर छह हिंदुओं को बाहर निकाला गया और उनकी हत्या कर दी गई थी।

आधुनिक इतिहास में इस तरह की यह पहली घटना थी। इसने शोक की ऐसी लहर पैदा की कि पूरे देश में आक्रोश फैल गया। इंदिरा गांधी ने पंजाब की अपनी ही दरबारा सिंह सरकार को बरखास्त कर दिया और राष्ट्रपति शासन लगा दिया। इसके बाद हिंदुओं की चुनकर हत्या करने की घटनाएं बढ़ गईं।

यह आतंकी हमले का फॉर्मूला बन गया। 1989 से कश्मीरी आतंकवादी गुटों के हमले शुरू हो गए, जिनकी शुरुआत कश्मीरी पंडितों की हत्याओं, और उन्हें पलायन के लिए मजबूर करने से हुई। यह सिलसिला पूरे भारत में चल पड़ा, जब आईएसआई समर्थित गिरोहों, ‘एलईटी’ के लोगों ने मंदिरों, शादी के समारोहों, होली तथा दिवाली के आयोजनों, रामलीलाओं, हिंदुओं के धार्मिक जुलूसों आदि पर हमले शुरू कर दिए।

एक समय तो आईएसआई से जुड़ा एक भारतीय आतंकवादी गुट भी उभर आया। इस तथाकथित इंडियन मुजाहिदीन ने पूरे भारत में जहां-तहां सीरियल बम धमाके करके दहशत फैला दिया। इन 45 वर्षों में हिंदुओं को निशाना बनाकर हमला करने की करीब 100 घटनाएं हुईं। इनमें मुंबई की रेलों में 26/11 के सीरियल बम धमाकों को शामिल नहीं किया गया है।

मुझे लगता है कि ये दुखद तथ्य हमारे इस मूल मुद्दे की पुष्टि करने के लिए काफी हैं कि भाड़े के प्रत्यक्ष और परोक्ष तत्वों का इस्तेमाल करके भारत में हिंदुओं को निशाना बनाना ही आईएसआई की चाल रही है। वे चाहते हैं कि भारत में अपने ही अल्पसंख्यकों के खिलाफ गुस्सा पैदा हो और उन्हें निशाना बनाया जाए।

अब हम आपको 1993 के मुंबई बम धमाकों की याद दिलाएंगे। इससे पहले एके-47 राइफलों और हथगोलों को चुनिंदा स्थानों पर जमा कर दिया गया था, जिनमें संजय दत्त का घर भी शामिल था। इसके पीछे सोच यह था कि अयोध्या में बाबरी मस्जिद कांड के बाद दंगे हुए थे और शिवसैनिक मुस्लिम बहुल इलाकों में हमला कर सकते थे, तब उन्हें और पुलिस को हजारों नहीं तो सैकड़ों की तादाद में मौत के घाट उतारने में इन हथियारों का इस्तेमाल किया जाएगा। इसके बाद पूरे भारत में जो आग लगती उसे कौन काबू में कर सकता था? उस दौरान मुंबई के पुलिस प्रमुख एमएन सिंह ने बताया तब महाराष्ट्र पुलिस के पास भी एके-47 नहीं थी।

पाकिस्तान का खेल यह है कि भारत के हिंदुओं पर इतनी देर तक इतना कहर बरपाओ कि आखिर वे अपने यहां अल्पसंख्यकों पर हमले कर बैठें। इस बात को कौन अच्छी तरह समझता है। ऐसे लोगों में हम वैचारिक रूप से दो विपरीत ध्रुवों पर स्थित प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तथा आरएसएस से लेकर असदुद्दीन ओवैसी तक को गिन सकते हैं।

मोदी ने बिहार में दिए अपने भाषण में हिंदू, कलमा या ऐसे किसी शब्द का जिक्र नहीं किया, जिससे साम्प्रदायिक स्वर निकलता हो। यह काफी विवेकपूर्ण था। मैं इसे आरएसएस के शीर्ष नेताओं में नंबर दो दत्तात्रेय होसबले के बयान के साथ जोड़कर देखूंगा, जिन्होंने पहलगाम में हुए हमले को ‘सैलानियों’ का जनसंहार कहा।

उन्हें मालूम है कि इस मोड़ पर आंतरिक स्थिरता और शांति भारत के लिए कितनी महत्वपूर्ण है। इसीलिए ओवैसी भी आतंकवादियों के लिए ऐसे अपशब्दों का इस्तेमाल कर रहे हैं, जिनका इस्तेमाल हमारी राजनीति में भाजपा से भी ज्यादा धुर दक्षिणपंथियों या योद्धा चैनलों तक ने कभी नहीं किया था।

ओवैसी को मालूम है कि पाकिस्तानियों ने हिंदुओं को चुनकर निशाना बनाकर भारी तकलीफ पहुंचाई है। वे हिंदुओं को संदेश देना चाहते हैं कि भारत के मुसलमान उनके साथ खड़े हैं, और वे दुश्मनों की हौसला अफजाई नहीं करना चाहते। पाकिस्तान और आईएसआई ने भारत के बहुसंख्यकों पर दबाव डालकर उनके सब्र का फिर से इम्तिहान लेने की कोशिश की है।

दो कौम वाले सिध्दांत को सही साबित करने के लिए…

कश्मीरियों दो कौम वाले सिध्दांत और पाकिस्तान की वैचारिक बुनियाद की वकालत कैसे की जा सकती है? यह साबित करके कि भारत में मुसलमानों को प्रताड़ित किया जा रहा है। पाकिस्तान की तमाम कोशिशें ही यही हैं कि भारत के हिंदू अपने यहां अल्पसंख्यकों पर हमले कर बैठें।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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