शिवसेना के साथ धनुष-बाण भी गया… जानिए चुनाव आयोग के फैसले से उद्धव ठाकरे की कितनी बड़ी हार
उद्धव के सामने अस्तित्व का संकट
चुनाव आयोग के फैसले के बाद उद्धव ठाकरे के सामने अस्तित्व का संकट गहरा गया है। शिवसेना का नाम और पार्टी का चुनाव चिह्न धनुष बाण एकनाथ शिंदे को मिल चुका है। अब एक तरह से वह शिवसेना के सुप्रीमो बन गए हैं जिस पर अभी आधिकारिक फैसला होना बाकी है। उद्धव के समर्थक भी कहने लगे हैं कि अपने फैसले के चलते ठाकरे परिवार बाल ठाकरे की विरासत को नहीं संभाल पाया।
बीएमसी चुनावों पर असर
चुनाव आयोग का फैसला ऐसे समय पर आया है जब मुंबई में बीएमसी चुनाव होने वाले हैं। बीएमसी चुनाव में इस फैसले का असर पड़ सकता है। जहां मराठी वोटों में बड़ा बंटवारा होने की संभावना है। इसका सीधा लाभ बीजेपी को मिलेगा और वह बड़े बजट वाली बीएमसी में सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभर सकती है।
महाराष्ट्र की राजनीति में घटेगा कद
एक समय था जब शिवसेना को महाराष्ट्र में बीजेपी का बड़ा भाई कहा जाता था। हालांकि बाद में बीजेपी के मुकाबले उसके वोट फीसदी और सीटों में कमी आती गई। चुनाव आयोग के फैसले के बाद बाल ठाकरे की शिवसेना का और कमजोर होना तय है। वहीं बीजेपी के पास इसे भुनाने का बेहतरीन मौका है जिससे महाराष्ट्र की राजनीति में अब असली बड़े भाई की भूमिका की जगह वह ले सकती है।
कांग्रेस का साथ बना आत्मघाती कदम!
शिवसेना का गठन करने वाले बाल ठाकरे ने खुद कभी सत्ता की कमान नहीं संभाली, लेकिन उनके बेटे उद्धव ठाकरे ने इस परंपरा को तोड़ा। पिछले विधानसभा चुनाव के बाद मुख्यमंत्री बनने के लालच में उन्होंने बीजेपी से नाता तोड़ कांग्रेस और एनसीपी का साथ कर लिया। यह फैसला ही उनके लिए आत्मघाती सिद्ध हुआ।
क्या है चुनाव आयोग का फैसला?
उद्धव ठाकरे की अगुवाई वाले शिवसेना गुट को झटका देते हुए चुनाव आयोग ने शिवसेना का नाम और चुनाव चिह्न ‘धनुष-बाण’ एकनाथ शिंदे गुट को दे दिया। आयोग ने अपने फैसले में जहां शिंदे की अगुवाई वाले गुट को असली शिवसेना के रूप में मान्यता दी, वहीं उद्धव ठाकरे गुट को राज्य में विधानसभा उपचुनावों के पूरा होने तक ‘मशाल’ चुनाव चिह्न रखने की इजाजत दी।
शिंदे के पक्ष में गई कौन सी दलील?
1966 में बालासाहेब ठाकरे ने जिस शिवसेना की स्थापना की थी, चुनाव आयोग के फैसले से वह ठाकरे परिवार के हाथ से पहली बार फिसलती दिखाई दी है। पिछले साल शिवसेना के 67 विधायकों में 40 विधायकों को तोड़कर बीजेपी के साथ सरकार बनाने वाले सीएम एकनाथ शिंदे ने बहुत बड़ी लड़ाई जीत ली। पार्टी के अधिकांश विधायक और सांसद शिंदे के साथ होने का तर्क उनके पक्ष में गया है।
चुनाव आयोग ने अपने आदेश में कहा कि शिंदे को 2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में पार्टी के 76 फीसदी विजयी वोटों के साथ विधायकों का समर्थन प्राप्त है। इसके अलावा शिवसेना के संशोधित संविधान और इसके संशोधनों की प्रक्रिया में लोकतांत्रिक व्यवस्था की कमी का भी जिक्र किया।
उद्धव को पहले से ही था अहसास!
पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को पहले से एहसास था कि चुनाव आयोग का फैसला उनके पक्ष में नहीं आएगा। चुनाव आयोग अक्सर चुने गए विधायकों और सांसदों की गिनती करते हुए पार्टियों की मान्यता पर फैसला करता है। शिवसेना से टूटकर सरकार बनाने वाले एकनाथ शिंदे के साथ संगठन नहीं है, यही उसकी ओर से आयोग के सामने पेश किया गया सबसे बड़ा तर्क था।