शराबबंदी कानून में क्या बदलाव कर सकती है नीतीश सरकार? यहां जानें अंदर की बात h3>
पटना: नीतीश सरकार ने मंगलवार शाम को कैबिनेट की बैठक बुलाकर शराबबंदी कानून में संशोधन करने का फैसला ले लिया है। हालांकि सरकार की ओर से यह नहीं बताया गया है कि शराबंदी कानून में क्या संशोधन किया जाएगा। कैबिनेट बैठक में हिस्सा लेने वाले मंत्रियों से जब पत्रकारों ने इसको लेकर सवाल पूछे तो उन्होंने कहा कि संशोधन को विधानसभा-विधान परिषद में पेश किया जाएगा, वहीं इसके बारे में डिटेल जानकारी दी जाएगी। ऐसे में बिहार के लोगों के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है कि आखिर नीतीश सरकार शराबबंदी कानून में क्या संशोधन करने जा रही है।
शराबबंदी कानून में ये हो सकते हैं बदलाव
मद्य निषेध और उत्पाद विभाग के सूत्रों की ओर से मिली जानकारी में कहा गया है कि शराबबंदी कानून में संशोधन का मुख्य मकसद मुकदमों को कम करना होगा। सूत्र बताते हैं कि शराबबंदी कानून में मुख्य रूप से तीन बदलाव दिख सकते हैं। जो इस प्रकार हैं।
- अगर कोई व्यक्ति एक-दो बोतल शराब के साथ पकड़ा जाता है और वह पूछताछ में संतुष्ट कर देता है कि वह इसका कोई धंधा नहीं करता है। ऐसे में उस व्यक्ति को तत्काल रिहा कर दिया जाएगा। हालांकि केवल पहली बार एक-दो बोतल शराब के साथ पकड़े जाने पर यह रियायत होगी।
- अगर कोई व्यक्ति शराब पीते हुए पकड़ा जाता है और वह बता देता है कि उसने कहां से शराब खरीदी है। उसकी बताई बात अगर सच निकलती है तो उसे तत्काल रिहा कर दिया जाएगा।
- सरकार पहली बार एक-दो बोतल शराब के साथ पकड़े जाने वालों की डिटेल ऑनलाइन पोर्टल पर अपडेट कर सकती है, ताकि बिहार के तमाम थानों की पुलिस और आबकारी विभाग की टीम इसे चेक कर सके। दोबारा शराब पीते या लाते ले जाते पकड़े जाने पर मुकदमा होगा और गिरफ्तारी भी होगी।
यहां याद दिला दें कि इसी साल 28 फरवरी को मद्य निषेध और उत्पाद विभाग के संयुक्त आयुक्त कृष्ण कुमार ने पटना में कहा था कि शराब पीने वाला शख्स अगर पकड़ा जाता है, तो वैसी स्थिति में अब जेल नहीं भेजा जाएगा। बशर्ते शराब पीने वाला व्यक्ति उसके सोर्स की जानकारी देता है। यानी वो यह बता दे कि उसे शराब कहां और किससे मिली। इसके बाद अगर पुलिस या उत्पाद विभाग की कार्रवाई में बताई गई जगह से शराब बरामद हो जाती है या शराब बेचने वाला पकड़ा जाता है, तो शराब पीने वाले को जेल नहीं भेजा जाएगा।
कृष्ण कुमार ने स्वीकार किया कि ये फैसला लेने का कारण कैदियों की संख्या बढ़ना है। उन्होंने कहा कि अब तक ऐसे मामलों में 3.50 लाख से 3.75 लाख तक लोग जेल भेजे गए हैं। विभाग का मानना है कि ऐसे पकड़े गए लोगों को सुधारा जा सकता है, जबकि माफियाओं को इसका डर भी होगा कि अब वे भी पकड़े जा सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने शराबबंदी कानून पर नीतीश सरकार पर सख्त
बिहार सरकार ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट से कहा कि राज्य में कठोरतम मद्यनिषेध कानून में बदलाव किया जाएगा, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने जेलों में हजारों लोगों को डालने वाले इस तरह का कानून बनाने और न्यायिक प्रणाली को अवरूद्ध करने को लेकर एक बार फिर उसे फटकार लगाई। शीर्ष अदालत ने कहा कि यह चिंता का विषय है। न्यायालय ने कहा कि बिहार सरकार बगैर कोई विधायी प्रभाव अध्ययन के कानून लाई और पटना उच्च न्यायालय के 16 न्यायाधीश जमानत अर्जियों का निस्तारण करने में जुटे हुए हैं।
इस कठोरतम कानून के तहत दर्ज मामलों के आरोपियों की जमानत अर्जियों के एक समूह पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश की पीठ ने राज्य सरकार द्वारा क्या कुछ प्रभाव अध्ययन किया गया है, उस बारे में न्यायालय के समक्ष रिकार्ड पेश करने का निर्देश दिया। पीठ ने कहा, ‘बिहार सरकार की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता रंजीत कुमार ने दलील दी है कि कानून को कहीं अधिक कारगर बनाने के लिए और इसके अप्रिय परिणाम से निपटने के लिए एक संशोधन लाया जाएगा। हम जानना चाहेंगे कि बिहार मद्यनिषेध कानून लागू करने से पहले क्या विधायी प्रभाव अध्ययन किया गया है। ’
बिहार मद्यनिषेध कानून 2016 में बनाया गया था, जिसके तहत पूरे राज्य में शराब की बिक्री और सेवन पर प्रतिबंध है। यह कानून गंभीर अपराधों के लिए कैद की सजा के अलावा आरोपी की संपत्ति कुर्क करने का प्रावधान करता है। कानून में 2018 में संशोधन किया गया , जिसके तहत कुछ प्रावधान हल्के कर दिये गये। सुनवाई की शुरूआत में पीठ ने कहा कि यह चिंता का विषय है कि पटना उच्च न्यायालय के 16 न्यायाधीश जमानत के विषयों की सुनवाई कर रहे हैं।
Bihar Prohibition Law : बिहार में शराब पीने वालों को नहीं होगी जेल, आरजेडी को खून-खराबे की आशंका, Watch Video
पीठ ने कहा, ‘यह कानून भीड़ बढ़ा रहा है। इसे ठीक करिये या हम कहेंगे कि संशोधन होने तक हर किसी को जमानत पर रिहा कर दें। आपने बगैर किसी विधायी प्रभाव अध्ययन के कानून बनाया। आपने यह अध्ययन नहीं किया कि कानून से उत्पन्न होने वाले मामलों से निपटने के लिए किस बुनियादी ढांचे की जरूरत पड़ेगी। हर विधान वाद उत्पन्न करता है।’
पीठ ने कहा कि राज्य सरकार ने कानून को गैर जमानती बना दिया है जो समस्या को और बढ़ा रहा है क्योंकि विषय उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय पहुंच रहा है। पीठ ने कहा, ‘चीजों को ठीक करने का भार आप(बिहार सरकार) पर है। ’ कोर्ट ने कहा कि शराब की समस्या एक सामाजिक मुद्दा है और हर राज्य को इससे निपटने के लिए कानून बनाने का अधिकार है, लेकिन इस पर कुछ अध्ययन करना चाहिए था कि यह कितनी तादाद में मुकदमे बढ़ाएगा, किस तरह के बुनियादी ढांचे की जरूरत होगी और कितनी संख्या में न्यायाधीशों की जरूरत पड़ेगी। न्यायमूर्ति सुंदरेश ने कहा कि इस कानून के तहत गिरफ्तार किये गये ज्यादातर लोग समाज के निचले तबके से हैं। पीठ ने कहा कि राज्य जब कभी इस तरह के कानून लाये, हर पहलू पर गौर करे। पीठ इस मामले में अब मई के पहले सप्ताह में सुनवाई करेगी।
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मद्य निषेध और उत्पाद विभाग के सूत्रों की ओर से मिली जानकारी में कहा गया है कि शराबबंदी कानून में संशोधन का मुख्य मकसद मुकदमों को कम करना होगा। सूत्र बताते हैं कि शराबबंदी कानून में मुख्य रूप से तीन बदलाव दिख सकते हैं। जो इस प्रकार हैं।
- अगर कोई व्यक्ति एक-दो बोतल शराब के साथ पकड़ा जाता है और वह पूछताछ में संतुष्ट कर देता है कि वह इसका कोई धंधा नहीं करता है। ऐसे में उस व्यक्ति को तत्काल रिहा कर दिया जाएगा। हालांकि केवल पहली बार एक-दो बोतल शराब के साथ पकड़े जाने पर यह रियायत होगी।
- अगर कोई व्यक्ति शराब पीते हुए पकड़ा जाता है और वह बता देता है कि उसने कहां से शराब खरीदी है। उसकी बताई बात अगर सच निकलती है तो उसे तत्काल रिहा कर दिया जाएगा।
- सरकार पहली बार एक-दो बोतल शराब के साथ पकड़े जाने वालों की डिटेल ऑनलाइन पोर्टल पर अपडेट कर सकती है, ताकि बिहार के तमाम थानों की पुलिस और आबकारी विभाग की टीम इसे चेक कर सके। दोबारा शराब पीते या लाते ले जाते पकड़े जाने पर मुकदमा होगा और गिरफ्तारी भी होगी।
यहां याद दिला दें कि इसी साल 28 फरवरी को मद्य निषेध और उत्पाद विभाग के संयुक्त आयुक्त कृष्ण कुमार ने पटना में कहा था कि शराब पीने वाला शख्स अगर पकड़ा जाता है, तो वैसी स्थिति में अब जेल नहीं भेजा जाएगा। बशर्ते शराब पीने वाला व्यक्ति उसके सोर्स की जानकारी देता है। यानी वो यह बता दे कि उसे शराब कहां और किससे मिली। इसके बाद अगर पुलिस या उत्पाद विभाग की कार्रवाई में बताई गई जगह से शराब बरामद हो जाती है या शराब बेचने वाला पकड़ा जाता है, तो शराब पीने वाले को जेल नहीं भेजा जाएगा।
कृष्ण कुमार ने स्वीकार किया कि ये फैसला लेने का कारण कैदियों की संख्या बढ़ना है। उन्होंने कहा कि अब तक ऐसे मामलों में 3.50 लाख से 3.75 लाख तक लोग जेल भेजे गए हैं। विभाग का मानना है कि ऐसे पकड़े गए लोगों को सुधारा जा सकता है, जबकि माफियाओं को इसका डर भी होगा कि अब वे भी पकड़े जा सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने शराबबंदी कानून पर नीतीश सरकार पर सख्त
बिहार सरकार ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट से कहा कि राज्य में कठोरतम मद्यनिषेध कानून में बदलाव किया जाएगा, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने जेलों में हजारों लोगों को डालने वाले इस तरह का कानून बनाने और न्यायिक प्रणाली को अवरूद्ध करने को लेकर एक बार फिर उसे फटकार लगाई। शीर्ष अदालत ने कहा कि यह चिंता का विषय है। न्यायालय ने कहा कि बिहार सरकार बगैर कोई विधायी प्रभाव अध्ययन के कानून लाई और पटना उच्च न्यायालय के 16 न्यायाधीश जमानत अर्जियों का निस्तारण करने में जुटे हुए हैं।
इस कठोरतम कानून के तहत दर्ज मामलों के आरोपियों की जमानत अर्जियों के एक समूह पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश की पीठ ने राज्य सरकार द्वारा क्या कुछ प्रभाव अध्ययन किया गया है, उस बारे में न्यायालय के समक्ष रिकार्ड पेश करने का निर्देश दिया। पीठ ने कहा, ‘बिहार सरकार की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता रंजीत कुमार ने दलील दी है कि कानून को कहीं अधिक कारगर बनाने के लिए और इसके अप्रिय परिणाम से निपटने के लिए एक संशोधन लाया जाएगा। हम जानना चाहेंगे कि बिहार मद्यनिषेध कानून लागू करने से पहले क्या विधायी प्रभाव अध्ययन किया गया है। ’
बिहार मद्यनिषेध कानून 2016 में बनाया गया था, जिसके तहत पूरे राज्य में शराब की बिक्री और सेवन पर प्रतिबंध है। यह कानून गंभीर अपराधों के लिए कैद की सजा के अलावा आरोपी की संपत्ति कुर्क करने का प्रावधान करता है। कानून में 2018 में संशोधन किया गया , जिसके तहत कुछ प्रावधान हल्के कर दिये गये। सुनवाई की शुरूआत में पीठ ने कहा कि यह चिंता का विषय है कि पटना उच्च न्यायालय के 16 न्यायाधीश जमानत के विषयों की सुनवाई कर रहे हैं।
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पीठ ने कहा, ‘यह कानून भीड़ बढ़ा रहा है। इसे ठीक करिये या हम कहेंगे कि संशोधन होने तक हर किसी को जमानत पर रिहा कर दें। आपने बगैर किसी विधायी प्रभाव अध्ययन के कानून बनाया। आपने यह अध्ययन नहीं किया कि कानून से उत्पन्न होने वाले मामलों से निपटने के लिए किस बुनियादी ढांचे की जरूरत पड़ेगी। हर विधान वाद उत्पन्न करता है।’
पीठ ने कहा कि राज्य सरकार ने कानून को गैर जमानती बना दिया है जो समस्या को और बढ़ा रहा है क्योंकि विषय उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय पहुंच रहा है। पीठ ने कहा, ‘चीजों को ठीक करने का भार आप(बिहार सरकार) पर है। ’ कोर्ट ने कहा कि शराब की समस्या एक सामाजिक मुद्दा है और हर राज्य को इससे निपटने के लिए कानून बनाने का अधिकार है, लेकिन इस पर कुछ अध्ययन करना चाहिए था कि यह कितनी तादाद में मुकदमे बढ़ाएगा, किस तरह के बुनियादी ढांचे की जरूरत होगी और कितनी संख्या में न्यायाधीशों की जरूरत पड़ेगी। न्यायमूर्ति सुंदरेश ने कहा कि इस कानून के तहत गिरफ्तार किये गये ज्यादातर लोग समाज के निचले तबके से हैं। पीठ ने कहा कि राज्य जब कभी इस तरह के कानून लाये, हर पहलू पर गौर करे। पीठ इस मामले में अब मई के पहले सप्ताह में सुनवाई करेगी।