शंकराचार्य मठ इंदौर में प्रवचन: पुस्तकीय ज्ञान से ज्यादा जरूरी है उसे जीवन में उतारना – डॉ. गिरीशानंदजी महाराज – Indore News h3>
जो व्यक्ति केवल पुस्तकें पढ़कर ज्ञान प्राप्त करता है, वह ज्ञान स्थिर नहीं रहता पर थोड़ा-सा मिला हुआ ज्ञान अधिकांशत: पुस्तकों में ही रह जाता है। बहुत लोगों का ज्ञान जीभ पर ही रहता है, पर जीवन में नहीं उतरता। “पुस्तकस्था तु या विद्या, परहस्तगतं धनम्। कार
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एरोड्रम क्षेत्र में दिलीप नगर नैनोद स्थित शंकराचार्य मठ इंदौर के अधिष्ठाता ब्रह्मचारी डॉ. गिरीशानंदजी महाराज ने अपने नित्य प्रवचन में रविवार को यह बात कही।
जो परमात्मा के पीछे पड़े वह संत
महाराजश्री ने कहा कि ज्ञान जब तक जीवन में नहीं उतरता वह निरर्थक होता है। पुस्तकों के पीछे पड़े वह विद्वान और जो परमात्मा के पीछे पड़े वह संत। शास्त्रों को पढ़कर जो बोले वह विद्वान, परमात्मा के प्रेम में जो बोले वह संत, संत परमात्मा की प्रेरणा से अंत:करण से बोलता है। संतों को भगवान की कृपा से ज्ञान होता है। संत को पुस्तक पढ़ने नहीं जाना पड़ता है। जिसने केवल पुस्तक पढ़कर ज्ञान प्राप्त किया, किसी संत की सेवा नहीं की, परमात्मा को नहीं रिझाया, ऐसे ज्ञानी का पतन हो जाता है। उसको माया विघ्न करती है।
जिसकी मन-बु्द्धि शुद्ध, उसका ज्ञान स्थिर
डॉ. गिरीशानंदजी महाराज ने बताया कि शंकराचार्यजी कहते हैं- वाग्वैखरी शब्दझरी शास्त्र व्याख्यान कौशलं वैदिष्यं विदुषां तद्वत् भुक्तय न तु मुक्तय… शास्त्रों पर विद्वतापूर्ण व्याख्यान देना, धर्म पर लंबा-चौड़ा व्याख्यान देना, शब्दों का वाकजाल बुन देना, शास्त्रार्थ विषय को वाद-विवाद में वाणी-विलास के भ्रम में डालकर स्वयं का पांडित्य प्रदर्शन करना, इन सबसे लौकिक सिद्धि भले ही प्राप्त होती हो, लोगों में वाहवाही होती हो, द्रव्य मिलता हो परंतु उससे मुक्ति कदापि नहीं मिलती। ऐसे ज्ञान से अनेक प्रकार के लौकिक भोग प्राप्त हो सकते हैं और इन भोगों में फंसकर ऐसे ज्ञानी पंडित का पतन हो जाता है। जिसकी मन-बु्द्धि शुद्ध होती है, उसका ही ज्ञान स्थिर होता है और परमात्मा की कृपा से जो ज्ञान प्राप्त होता है, वह भी स्थिर होता है।