शंकराचार्य मठ इंदौर में प्रवचन: सच्चा आनंद भौतिक वस्तुओं में नहीं, परमात्मा में है- डॉ. गिरीशानंदजी महाराज – Indore News h3>
संसार के सुखों में आनंद होता तो सभी को एक समान आनंद होता। बड़े बंगले में आनंद है, बंगला सुंदर है, पर जब बुखार आता है तो बंगले का आनंद सुख नहीं देता। सिरदर्द हो, पेट में दर्द हो तो क्या बंगला सुख दे सकता है? आनंद सांसारिक जड़ वस्तुओं में नहीं क्योंकि आन
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एरोड्रम क्षेत्र में दिलीप नगर नैनोद स्थित शंकराचार्य मठ इंदौर के अधिष्ठाता ब्रह्मचारी डॉ. गिरीशानंदजी महाराज ने अपने नित्य प्रवचन में गुरुवार को यह बात कही।
आनंद आत्मा का स्वरूप
महाराजश्री ने कहा कि कुछ लोग ऐसे होते हैं कि कचोरी-समोसा, सेव-मिक्चर, होटल के भोजन में बहुत खुश हो जाते हैं। तुम कहोगे कि बाहर आनंद कैसे नहीं है? बाहर आनंद न हो तो मनुष्य इतनी मगजमारी क्यों करे? मनपसंद भोजन में आनंद जरूर होता है, पर जिसे टाइफाइड हो गया हो, पीलिया हो गया हो, अपच हो तो क्या उसे कचोरी-समोसे खाने में आनंद आएगा? यदि पसंद का भोजन हो खाने पर बैठने की तैयारी हो, उसी समय समाचार आ जाए कि दूरदराज में बैठे किसी अपने का निधन हो गया है, यह बात आते ही क्या तुम्हें खाने में आनंद आएगा? दु:खद समाचार सुनने के बाद आनंद कहां से आएगा। डॉ. गिरीशानंदजी महाराज ने कहा कि आनंद आत्मा का स्वरूप है। संसार के किसी पदार्थ में नहीं, किसी वस्तु में नहीं, बल्कि जब जीव को आनंद का अनुभव होता है, तब वह अंदर के रहने वाले चैतन्य को जान लेता है। इंद्रियों को मिलने वाला बाहरी सुख थोड़ी देर के लिए होता है, पर एकाग्रता के कारण चित्त में आत्मा का प्रतिबिंब पड़ता है, उससे जो आनंद का अनुभव होता है, वह अंतर्मुखी हो जाता है। बाहर घूमता हुआ वह अंदर चैतन्य परमात्मा का स्पर्श करे और मन का ब्रह्म-संबंध हो जाए, तो उतने समय सद् आनंद मिलता है और जैसे ही मन बहिर्मुखी हुआ, वह सांसारिक आनंद के संपर्क में आया तो सब आनंद उड़ जाता है। आनंद में रहना तो आत्मा का सहज स्वरूप है। सुख-दु:ख वास्तविक धर्म नहीं क्योंकि अनेक कारणों से आते हैं। जिसे अंदर के आनंद का अनुभव हो जाता है, उसे बाहरी आनंद तुच्छ लगने लगते हैं, क्योंकि बाहरी आनंद क्षणिक होते हैं, उसका नाश हो जाता है, पर अंदर के आनंद का अनुभव का कभी नाश नहीं होता, क्योंकि वह अविनाशी है।