शंकराचार्य मठ इंदौर में आध्यात्मिक प्रवचन: ऐसा कोई स्थान नहीं है, जहां परमात्मा की उपस्थिति न हो- डॉ. गिरीशानंदजी महाराज – Indore News

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शंकराचार्य मठ इंदौर में आध्यात्मिक प्रवचन:  ऐसा कोई स्थान नहीं है, जहां परमात्मा की उपस्थिति न हो- डॉ. गिरीशानंदजी महाराज – Indore News

शंकराचार्य मठ इंदौर में आध्यात्मिक प्रवचन: ऐसा कोई स्थान नहीं है, जहां परमात्मा की उपस्थिति न हो- डॉ. गिरीशानंदजी महाराज – Indore News

मुनि रघुबीर परस्पर नवहीं। बचन अगोचर सुखु अनुभवहीं॥… भगवान राम क्षत्रिय होने के कारण ऋषि भारद्वाजजी को प्रणाम कर रहे हैं और रामजी को भारद्वाजजी भगवान मानकर भक्त होने के नाते प्रणाम कर रहे हैं। इस तरह वे एक-दूसरे को प्रणाम करके अलौकिक आनंद की प्राप्त

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एरोड्रम क्षेत्र में दिलीप नगर नैनोद स्थित शंकराचार्य मठ इंदौर के अधिष्ठाता ब्रह्मचारी डॉ. गिरीशानंदजी महाराज ने अपने नित्य प्रवचन में शनिवार को यह बात कही।

ज्ञानी व्यक्ति संसार को दु:खालय मानकर त्याग देते हैं…

महाराजश्री ने बताया कि भागवत के अनुसार आकाश, वायु, अग्नि, पृथ्वी, जीव, जंतु, दिशाएं, वृक्ष, नदियां, समुद्र…. सारा का सारा संसार भगवान का शरीर है। ऐसा समझकर भक्त सभी को अनन्य भाव से प्रणाम करते हैं। फिर चाहे वह द्वेतवाद को मानें चाहे अद्वैतवाद को, चाहे वे विशिष्टा द्वैतवाद मानें, चाहे द्वैताद्वैतवाद मानें, चाहे शुद्धाद्वैतवाद मानें, चाहे अचिंत्य भेदाभेदवाद मानें… सबमें परमात्मा एक ही है। भगवान को चाहें द्वीभुजी मानें, चाहे चतुर्भुजी मानें, चाहे सहस्रभुजी विराट रूप मानें, चाहे साकार मानें, चाहे निराकार मानें, चाहे नराकार (राम-कृष्ण आदि) मानें, चाहे नीराकार (गंगाजी, नर्मदा, आदि) मानें… परमात्मा एक ही हैं। एक ही परमात्मा अनेक रूपों में व्याप्त हैं। सारे के सारे रूप एक ही संपूर्ण परमात्मा के अंग हैं। फिर किसी भी एक अंग को पकड़ लें, तो संपू्र्ण परमात्मा की प्राप्ति हो जाएगी। परमात्मा के एक नाम से ही समग्र परमात्मा की प्राप्ति हो जाती है। ऐसा कोई स्थान नहीं है, जहां परमात्मा न हो, ज्ञानमार्गीय विवेक से संसार को दु:खालय मानकर त्याग कर देता है और भक्त संपूर्ण संसार को ही भगवान मान लेता है। वह पेड़ पौधे, नदी, पर्वत, पशु-पक्षी को नहीं वरन् उसमें विराजे परमात्मा को प्रणाम करता है। चाहे कोई संसार को त्याग दे, चाहे संसार को भगवत रूप मान ले, दोनों को ही परमात्मा की प्राप्ति हो जाती है। भगवान अनेक रूपों में होते हुए भी एक हैं। क्योंकि देव अनेक हैं पर ईश्वर एक है।

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