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Newswrap हिन्दुस्तान, बिहारशरीफTue, 15 Oct 2024 04:25 PM
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वैद्य नगरी से ठग नगरी बन गया कतरीसराय बुजुर्गों ने पूरी दुनिया को असाध्य रोगों से दिलायी निजात बिगड़े बच्चों ने ठगी का धंधा कर किया बदनाम सबसे पहले कतरीसराय से ही शुरू हुआ ठगी का धंधा पार्सल में नकली दवाइयां भेजने से शुरू हुई यह बुराई नालंदा के कोने-कोने में फैल गये साइबर ठग फोटो: साइबर थाना-साइबर थाना। (फाइल फोटो) बिहारशरीफ, हिन्दुस्तान प्रतिनिधि/अमित कुमार। कभी वैद्य नगरी के नाम से विख्यात कतरीसराय आज ठग नगरी बन गया है। बुजुर्गों ने सैकड़ों सालों तक लोगों को असाध्य रोगों से निजात दिलायी। अब बिगड़े बच्चे ठगी का धंधा कर इसे बदनाम करते हैं। देश में सबसे पहले ठगी का धंधा कतरीसराय से ही शुरू हुआ था। यहीं से ठग देशभर में फैल गये हैं। आज नालंदा के कोने-कोने के युवा इस धंधे से जुड़ रहे हैं। पार्सल में नकली दवाइयां भेजने से इस धंधे की शुरुआत हुई थी। फिर तरीका धीरे-धीरे बदलता गया। इंटरनेट आने के बाद ऑनलाइन ठगी का धंधा जोड़ पकड़ने लगा। कतरीसराय से निकली यह बुराई आसपास के जिलों शेखपुरा व नवादा में फैल गयी। साइबर ठग बिहारशरीफ में किराये पर रहकर ठगी की दुकान चलाने लगे। आज भी हर महीने सिर्फ कतरीसराय में दर्जनभर से अधिक ठग पकड़े जाते हैं। सैकड़ों साल से कर रहे इलाज: स्थानीय लोगों की मानें तो यहां के वैद्य सैकड़ों सालों से रोगियों का इलाज कर रहे हैं। गुप्त रोग, सफेद दाग व ल्यूकोरिया का यहां रामबाण इलाज होता था। लोग दूर-दूर से दवाइयां लेने के लिए आते थे। मरीज अधिक आने लगे तो वैद्यों ने रोजगार बढ़ाने के लिए डाकघर के माध्यम से पार्सल के रूप में दवाईयां भेजने का तरीका ढूंढ़ा। मरीजों को लंबे सफर से मुक्ति मिल गयी। लेकिन, यहीं से शुरू हो गया ठगी का धंधा। पार्सल में दवाइयों के नाम पर नकली सामान भेजा जाने लगा। अभी भी दो-चार वैद्य हैं जो असली दवाइयां देते हैं। डाकघर रहता था गुलजार: यहां का डाकघर अपने-अपने आप में अनूठा है। नालंदा जिले में होते हुए भी कुछ साल पहले तक इसका संचालन गया जिला से होता था। बाद में यह नवादा से संचालित होने लगा। एक समय पहले यह डाकघर काफी गुलजार रहता था। पार्सल भेजने वालों की भीड़ लगी रहती थी। डाकघर से मोटा मुनाफा होता था। राजस्व के मामले में देशभर के डाकघरों में कतरीसराय टॉप पर था। कई बार ठगों के पास से डाकघर से संबंधित सामान मिले थे। तत्कालीन एसपी ने एक बार बड़े पैमाने पर छापेमारी के बाद डाकघर की भूमिका पर सवाल उठाये थे। मोबाइल आने पर ठगी का तरीका बदल गया। आज यहां का डाकघर सूना पड़ा रहता है। आती रहती है दूसरे राज्यों की पुलिस: यहां अक्सर दूसरे राज्यों की पुलिस आरोपितों की तलाश में आती रहती है। देशभर में हुई ठगी की घटनाओं के तार कतरीसराय से जुड़ते हैं। कभी मोबाइल लोकेशन के आधार पर, कभी बैंक खाता के आधार पर तो कभी अन्य माध्यमों से आरोपितों का पता लगता रहा है। अब तो पूरा नालंदा इस मामले में बदनाम हो गया है। कतरीसराय से फैलकर यह धंधा मानपुर, गिरियक, सिलाव, बिहारशरीफ आदि इलाकों में फैल चुका है। इसी तरह, शेखपुरा का शेखोपुरसराय व नवादा का वारिसलीगंज भी इसकी चपेट में आ चुका है। क्यों चर्चा में है नालंदा : वाराणसी में वाहन एजेंसी दिलाने के नाम पर 72 लाख रुपये की साइबर ठगी के मामले में पुलिस ने सरगना समेत चार शातिरों को गिरफ्तार किया है। इनमें से सरगना समेत तीन नालंदा के हैं। आरोपितों में सिलाव के रघु बिगहा गांव का प्रियरंजन कुमार, सत्येन्द्र सुमन और नियामत नगर का रंजन कुमार शामिल है। प्रियरंजन गिरोह का सरगना है। गौरीगंज निवासी तेजश्वी तेजस्वी शुक्ला ने वाहन एजेंसी के नाम पर 72 लाख की ठगी का केस दर्ज कराया था। इस मामले में छह लोग पहले ही गिरफ्तार हो चुके हैं। गिरफ्तार प्रियरंजन गिरोह का सरगना है। आरोपितों ने वाहन कंपनी का फर्जी वेबसाइट बनाकर एजेंसी देने का झांसा देकर ठगी की है। इनपर पहले भी ठगी की दर्जनों घटनाओं को अंजाम देने का शक है। प्रियरंजन पटना में धोखाधड़ी के मामले में जेल की हवा खा चुका है। रोज ठगी के नये पैतरें अपनाते हैं साइबर ठग पहले छपवाते थे विज्ञापन, अब सोशल साइट्स को बनाते हैं माध्यम लालच व झांसा देकर जाल में फंसाते हैं आम लोगों को बिहारशरीफ, हिन्दुस्तान प्रतिनिधि। साइबर ठग रोज ठगी के नये पैंतरे अपनाते हैं। पहले विज्ञापन छपवाते थे। चेहरा पहचानो-इनाम पाओ, लौटरी में कार जीतने का झांसा देते थे। बाद में सोशल साइट्स को माध्यम बनाकर लोगों को फंसाते हैं। सभी चीजों में एक बात कॉमन है कि साइबर लोगों को किसी न किसी तरह का लालच देते हैं। लालच में अंधे हो गये लोग ठगों के जाल में फंस जाते हैं। ठगी का तरीका धीरे-धीरे बदलता चला गया। पहले गाड़ी फंसने का लालच देते थे। फिर बैंककर्मी बनकर लोगों को फोन करने लगे। ग्राहकों को खाता बंद करने, एटीएम कार्ड बंद करने की धमकी देकर जरूरी जानकारी निकाल लेना और खाते से रुपये निकालने का चलन बढ़ गया। फिर ऑनलाइन शॉपिंग कंपनियों के ग्राहकों को निशाना बनाने लगे। उनका नंबर निकालकर उन्हें फोन कर लालच देकर उन्हें फंसाने लगे। इसी तरह, छात्रों से प्रतियोगिता परीक्षाओं में नंबर बढ़वाने, किसानों से सरकार की ओर से मिलने वाली योजना का लाभ दिलाने के नाम पर ठगी करने लगे। कोरोना काल में ऑक्सीजन सिलेंडर व इंजेक्शन के नाम पर ठगी की चर्चा पूरी दुनिया में हुई। इसके तार भी नालंदा से जुड़े थे। बड़ी-बड़ी कंपनियों के फर्जी वेबासाइट बनाकर एजेंसी दिलाने, कम कीमत में सामान दिलाने के नाम पर भी दर्जनों को चूना लगाया गया। सोशल साइट्स पर फर्जी पेज बनाकर रसूखदारों के नाम पर रुपये उगाही का चलन भी काफी दिन तक चला। ठगों के पास लोगों को ठगने के ऐसे सैकड़ों तरीके हैं। फर्जी सीम कार्ड व बैंक खातों से चलता है खेल्र अलग-अलग कामों के लिए अलग-अलग लोग फोन करने वाला अलग, तो रुपये निकालने वाला होता है अलग गिरोह बनाकर सिस्टम से करते हैं काम पढ़े-लिखे डिग्रीधारक युवा जुड़े हैं इस धंधे से बिहारशरीफ, हिन्दुस्तान प्रतिनिधि। साइबर ठगी के इस धंधे में फर्जी सीम कार्ड और फर्जी बैंक खातों का बड़ा रोल है। ठगी में अलग-अलग कामों के लिए अलग-अलग लोग होते हैं। फोन कर लालच देने वाला कोई और होता है, रुपये किसी और के खाते में आते हैं और उसे निकालता कोई और है। सबका अलग-अलग कमीशन होता है। गिरोह बनाकर पूरे सिस्टम से यह धंधा किया जाता है। पढ़े-लिखे डिग्रीधारक युवा इस धंधे से जुड़े हैं। कुछ समय पहले तक फर्जी सीम कार्ड आसानी से मिल जाते थे। फर्जी खाता भी आसानी से खुल जाते थे। ठग इनके माध्यम से काम चला लेते थे। अब इसमें दिक्कत आयी तो ठगों ने नया तरीका ढूंढ़ लिया। रुपये का लालच देकर लोगों से सीम कार्ड या बैंक खाता खरीद लेते हैं। मामला फंसने पर वह पकड़ा जाता है जिसके नाम से सीम या खाता होता है। असली धंधेबाज बच निकलता है। एक सीम या खाता के बदले धंधेबाज पांच-पांच हजार रुपये तक देते हैं। खाते से रुपये निकालकर धंधेबाज को देने पर खाताधारक को तय कमीशन मिलता है। इस धंधे में ग्रेजुएट, आइटीआई, कंप्यूटर कोर्स के डिग्रीधारक जुड़े हैं। साइबर ठग उन्नत लैपटॉप, कम्प्यूटर, मोबाइल के साथ नयी तकनीक का इस्तेमाल करते हैं। अभी भी ठगी की नर्सरी बना हुआ है कतरीसराय ठगी के गुर सीखने के बाद दूसरे राज्यों में करते हैं जुर्म बिहारशरीफ, हिन्दुस्तान प्रतिनिधि। अभी भी कतरीसराय ठगी की नर्सरी बना हुआ है। प्रखंड के सुनसान इलाकों, नदी किनारे, बगीचों में अभी भी ठगों का जमावड़ा लगता है और फोन से ग्राहकों को फंसाने का धंधा होता है। ठगी के इस धंधे की ट्रेनिंग ग्राहकों को फोन करने से ही होती है। ठगी के गुर सीखने के बाद बड़े ठग दूसरे राज्यों में ठगी की बड़ी-बड़ी घटनाओं को अंजाम देते हैं। दिल्ली के सिलेंडर ठगी मामले में नालंदा व शेखपुरा से दो दर्जन ठगों को पकड़ा गया था। भर्ती परीक्षाओं में हुई गड़बड़ी के तार भी नालंदा से जुड़ते रहे हैं। गुजरात, दिल्ली, मध्य प्रदेश, हरियाणा समेत कई राज्यों में हुई ठगी की बड़ी-बड़ी घटनाओं के आरोपित नालंदा से जुड़े थे। दूसरे राज्यों की पुलिस का आना-जाना लगा रहता है। आमतौर पर पुलिस ठगी की छोटी घटनाओं पर ध्यान नहीं देती है। बड़ी रकम या किसी बड़े आदमी से ठगी होने पर पुलिस की कार्रवाई होती है। इस धंधे में इतना पैसा है कि लगातार युवा इससे जुड़ रहे हैं। इस वजह से यह धंधा अपनी जड़ें जमा रहा है।
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वैद्य नगरी से ठग नगरी बन गया कतरीसराय बुजुर्गों ने पूरी दुनिया को असाध्य रोगों से दिलायी निजात बिगड़े बच्चों ने ठगी का धंधा कर किया बदनाम सबसे पहले कतरीसराय से ही शुरू हुआ ठगी का धंधा पार्सल में नकली दवाइयां भेजने से शुरू हुई यह बुराई नालंदा के कोने-कोने में फैल गये साइबर ठग फोटो: साइबर थाना-साइबर थाना। (फाइल फोटो) बिहारशरीफ, हिन्दुस्तान प्रतिनिधि/अमित कुमार। कभी वैद्य नगरी के नाम से विख्यात कतरीसराय आज ठग नगरी बन गया है। बुजुर्गों ने सैकड़ों सालों तक लोगों को असाध्य रोगों से निजात दिलायी। अब बिगड़े बच्चे ठगी का धंधा कर इसे बदनाम करते हैं। देश में सबसे पहले ठगी का धंधा कतरीसराय से ही शुरू हुआ था। यहीं से ठग देशभर में फैल गये हैं। आज नालंदा के कोने-कोने के युवा इस धंधे से जुड़ रहे हैं। पार्सल में नकली दवाइयां भेजने से इस धंधे की शुरुआत हुई थी। फिर तरीका धीरे-धीरे बदलता गया। इंटरनेट आने के बाद ऑनलाइन ठगी का धंधा जोड़ पकड़ने लगा। कतरीसराय से निकली यह बुराई आसपास के जिलों शेखपुरा व नवादा में फैल गयी। साइबर ठग बिहारशरीफ में किराये पर रहकर ठगी की दुकान चलाने लगे। आज भी हर महीने सिर्फ कतरीसराय में दर्जनभर से अधिक ठग पकड़े जाते हैं। सैकड़ों साल से कर रहे इलाज: स्थानीय लोगों की मानें तो यहां के वैद्य सैकड़ों सालों से रोगियों का इलाज कर रहे हैं। गुप्त रोग, सफेद दाग व ल्यूकोरिया का यहां रामबाण इलाज होता था। लोग दूर-दूर से दवाइयां लेने के लिए आते थे। मरीज अधिक आने लगे तो वैद्यों ने रोजगार बढ़ाने के लिए डाकघर के माध्यम से पार्सल के रूप में दवाईयां भेजने का तरीका ढूंढ़ा। मरीजों को लंबे सफर से मुक्ति मिल गयी। लेकिन, यहीं से शुरू हो गया ठगी का धंधा। पार्सल में दवाइयों के नाम पर नकली सामान भेजा जाने लगा। अभी भी दो-चार वैद्य हैं जो असली दवाइयां देते हैं। डाकघर रहता था गुलजार: यहां का डाकघर अपने-अपने आप में अनूठा है। नालंदा जिले में होते हुए भी कुछ साल पहले तक इसका संचालन गया जिला से होता था। बाद में यह नवादा से संचालित होने लगा। एक समय पहले यह डाकघर काफी गुलजार रहता था। पार्सल भेजने वालों की भीड़ लगी रहती थी। डाकघर से मोटा मुनाफा होता था। राजस्व के मामले में देशभर के डाकघरों में कतरीसराय टॉप पर था। कई बार ठगों के पास से डाकघर से संबंधित सामान मिले थे। तत्कालीन एसपी ने एक बार 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शुक्ला ने वाहन एजेंसी के नाम पर 72 लाख की ठगी का केस दर्ज कराया था। इस मामले में छह लोग पहले ही गिरफ्तार हो चुके हैं। गिरफ्तार प्रियरंजन गिरोह का सरगना है। आरोपितों ने वाहन कंपनी का फर्जी वेबसाइट बनाकर एजेंसी देने का झांसा देकर ठगी की है। इनपर पहले भी ठगी की दर्जनों घटनाओं को अंजाम देने का शक है। प्रियरंजन पटना में धोखाधड़ी के मामले में जेल की हवा खा चुका है। रोज ठगी के नये पैतरें अपनाते हैं साइबर ठग पहले छपवाते थे विज्ञापन, अब सोशल साइट्स को बनाते हैं माध्यम लालच व झांसा देकर जाल में फंसाते हैं आम लोगों को बिहारशरीफ, हिन्दुस्तान प्रतिनिधि। साइबर ठग रोज ठगी के नये पैंतरे अपनाते हैं। पहले विज्ञापन छपवाते थे। चेहरा पहचानो-इनाम पाओ, लौटरी में कार जीतने का झांसा देते थे। बाद में सोशल साइट्स को माध्यम बनाकर लोगों को फंसाते हैं। सभी चीजों में एक बात कॉमन है कि साइबर लोगों को किसी न किसी तरह का लालच देते हैं। लालच में अंधे हो गये लोग ठगों के जाल में फंस जाते हैं। ठगी का तरीका धीरे-धीरे बदलता चला गया। पहले गाड़ी फंसने का लालच देते थे। फिर बैंककर्मी बनकर लोगों को फोन करने लगे। ग्राहकों को खाता 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प्रतिनिधि। साइबर ठगी के इस धंधे में फर्जी सीम कार्ड और फर्जी बैंक खातों का बड़ा रोल है। ठगी में अलग-अलग कामों के लिए अलग-अलग लोग होते हैं। फोन कर लालच देने वाला कोई और होता है, रुपये किसी और के खाते में आते हैं और उसे निकालता कोई और है। सबका अलग-अलग कमीशन होता है। गिरोह बनाकर पूरे सिस्टम से यह धंधा किया जाता है। पढ़े-लिखे डिग्रीधारक युवा इस धंधे से जुड़े हैं। कुछ समय पहले तक फर्जी सीम कार्ड आसानी से मिल जाते थे। फर्जी खाता भी आसानी से खुल जाते थे। ठग इनके माध्यम से काम चला लेते थे। अब इसमें दिक्कत आयी तो ठगों ने नया तरीका ढूंढ़ लिया। रुपये का लालच देकर लोगों से सीम कार्ड या बैंक खाता खरीद लेते हैं। मामला फंसने पर वह पकड़ा जाता है जिसके नाम से सीम या खाता होता है। असली धंधेबाज बच निकलता है। एक सीम या खाता के बदले धंधेबाज पांच-पांच हजार रुपये तक देते हैं। खाते से रुपये निकालकर धंधेबाज को देने पर खाताधारक को तय कमीशन मिलता है। इस धंधे में ग्रेजुएट, आइटीआई, कंप्यूटर कोर्स के डिग्रीधारक जुड़े हैं। साइबर ठग उन्नत लैपटॉप, कम्प्यूटर, मोबाइल के साथ नयी तकनीक का इस्तेमाल करते हैं। अभी भी ठगी की नर्सरी बना हुआ है कतरीसराय ठगी के गुर सीखने के बाद दूसरे राज्यों में करते हैं जुर्म बिहारशरीफ, हिन्दुस्तान प्रतिनिधि। अभी भी कतरीसराय ठगी की नर्सरी बना हुआ है। प्रखंड के सुनसान इलाकों, नदी किनारे, बगीचों में अभी भी ठगों का जमावड़ा लगता है और फोन से ग्राहकों को फंसाने का धंधा होता है। ठगी के इस धंधे की ट्रेनिंग ग्राहकों को फोन करने से ही होती है। ठगी के गुर सीखने के बाद बड़े ठग दूसरे राज्यों में ठगी की बड़ी-बड़ी घटनाओं को अंजाम देते हैं। दिल्ली के सिलेंडर ठगी मामले में नालंदा व शेखपुरा से दो दर्जन ठगों को पकड़ा गया था। भर्ती परीक्षाओं में हुई गड़बड़ी के तार भी नालंदा से जुड़ते रहे हैं। गुजरात, दिल्ली, मध्य प्रदेश, हरियाणा समेत कई राज्यों में हुई ठगी की बड़ी-बड़ी घटनाओं के आरोपित नालंदा से जुड़े थे। दूसरे राज्यों की पुलिस का आना-जाना लगा रहता है। आमतौर पर पुलिस ठगी की छोटी घटनाओं पर ध्यान नहीं देती है। बड़ी रकम या किसी बड़े आदमी से ठगी होने पर पुलिस की कार्रवाई होती है। इस धंधे में इतना पैसा है कि लगातार युवा इससे जुड़ रहे हैं। इस वजह से यह धंधा अपनी जड़ें जमा रहा है।