विश्लेषणः एमपी में नई विचारधारा का प्रवेश, आम आदमी पार्टी ने बनाई जगह | analysis- kejriwal aam aadmi party entered madhya pradesh | Patrika News h3>
आजादी के बाद यह क्षेत्र सोशलिस्ट पार्टी का गढ़ रहा है। 1952 में मनगवां विधानसभा श्रीनवास तिवारी विधायक चुने गए, 1977 में रीवा संसदीय सीट से यमुना प्रसाद शास्त्री सांसद बने, 1957 में रीवा सीट जगदीश चंद्र जोशी विधायक चुने गए थे। इसके अलावा कई अन्य लोग यहां से सोशलिस्ट पार्टी से चुने जाते रहे। जनसंघ का यहां विशेष प्रभाव नहीं रहा, यही वजह रही कि भाजपा को स्थापित होने में समय लगा। जनता दल, कम्युनिष्ट के दोनों दलों के विधायक भी यहां से चुने जाते रहे। भाकपा से पहले गुढ़ विधायक विश्वंभर प्रसाद पांडेय चुने गए थे। माकपा से सिरमौर से रामलखन शर्मा पहले विधायक चुने गए थे।
विधानसभा चुनाव पर असर
अब दिल्ली से निकली आम आदमी पार्टी ने यही से मध्यप्रदेश में एंट्री कर ली है। यह नगरीय निकाय का चुनाव परिणाम चाहे भले हो लेकिन अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव के परिणाम में भी इसका असर पड़ेगा। सिंगरौली में रोड शो करने आए केजरीवाल ने इसके संकेत भी दिए थे कि महापौर पद पर जनता ने जीत दिलाई तो वह आगे भी सोचेंगे। प्रदेश में एक बार फिर भाजपा और कांग्रेस के साथ तीसरा विकल्प भी लोगों के लिए आएगा।
बसपा-सपा को भी यहीं से मिली एंट्री
सामाजिक बदलाव का आंदोलन चलाते हुए कांशीराम ने बसपा का गठन किया। इस पार्टी के प्रमुख आंदोलन यूपी, हरियाणा, पंजाब, बिहार आदि में हुए। लेकिन मध्यप्रदेश में विंध्य ने ही इसे स्थापित किया, यहां से पहली बार 1991 में भीम सिंह पटेल सांसद चुने गए। भीम सिंह बसपा के मध्यप्रदेश के पहले सांसद थे। इसके बाद बुद्धसेन पटेल, देवराज पटेल सांसद चुने गए। समाजवादी पार्टी आई तो जनता ने उसको भी जगह दी। सीधी के गोपदबनास विधानसभा से 2003 में कृष्णकुमार सिंह भंवर, देवसर से वंशमणि वर्मा और सतना के मैहर से नारायण त्रिपाठी विधायक चुने गए थे।
लीक से हटकर निर्णय लेता है क्षेत्र
विंध्य क्षेत्र की जनता कई बार लीक से हटकर निर्णय लेती रही है। ताजा उदाहरण वर्ष 2018 का है जब पूरे प्रदेश में बदलाव की लहर चली तो यहां के लोगों ने कांग्रेस को हरा दिया। आपातकाल के बाद जब पूरे देश में कांग्रेस को लोग हरा रहे थे, तब इस क्षेत्र में लोगों ने कांग्रेस की कई सीटें जिताई। जिन नेताओं के नाम से यह क्षेत्र कुछ समय के लिए जाना गया, उन्हें ही लोगों ने हरा दिया। अर्जुन सिंह, श्रीनिवास तिवारी जैसे लोगों को हराकर उनका राजनीतिक प्रभाव कम कर दिया था।
तीसरे विकल्प को अवसर देती रही जनता
मध्यप्रदेश में अब तक चाहे भले ही दो दलों के बीच ही राजनीति चलती आ रही हो लेकिन विंध्य क्षेत्र की जनता हर बार तीसरे मोर्चे को अवसर देती रही। पार्टियां इन अवसरों को चाहे भले ही नहीं भुना पाईं लेकिन जनता ने स्थापित दलों को भी समय-समय पर आगाह किया है कि वह कोई भी निर्णय ले सकती है।
आजादी के बाद यह क्षेत्र सोशलिस्ट पार्टी का गढ़ रहा है। 1952 में मनगवां विधानसभा श्रीनवास तिवारी विधायक चुने गए, 1977 में रीवा संसदीय सीट से यमुना प्रसाद शास्त्री सांसद बने, 1957 में रीवा सीट जगदीश चंद्र जोशी विधायक चुने गए थे। इसके अलावा कई अन्य लोग यहां से सोशलिस्ट पार्टी से चुने जाते रहे। जनसंघ का यहां विशेष प्रभाव नहीं रहा, यही वजह रही कि भाजपा को स्थापित होने में समय लगा। जनता दल, कम्युनिष्ट के दोनों दलों के विधायक भी यहां से चुने जाते रहे। भाकपा से पहले गुढ़ विधायक विश्वंभर प्रसाद पांडेय चुने गए थे। माकपा से सिरमौर से रामलखन शर्मा पहले विधायक चुने गए थे।
विधानसभा चुनाव पर असर
अब दिल्ली से निकली आम आदमी पार्टी ने यही से मध्यप्रदेश में एंट्री कर ली है। यह नगरीय निकाय का चुनाव परिणाम चाहे भले हो लेकिन अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव के परिणाम में भी इसका असर पड़ेगा। सिंगरौली में रोड शो करने आए केजरीवाल ने इसके संकेत भी दिए थे कि महापौर पद पर जनता ने जीत दिलाई तो वह आगे भी सोचेंगे। प्रदेश में एक बार फिर भाजपा और कांग्रेस के साथ तीसरा विकल्प भी लोगों के लिए आएगा।
बसपा-सपा को भी यहीं से मिली एंट्री
सामाजिक बदलाव का आंदोलन चलाते हुए कांशीराम ने बसपा का गठन किया। इस पार्टी के प्रमुख आंदोलन यूपी, हरियाणा, पंजाब, बिहार आदि में हुए। लेकिन मध्यप्रदेश में विंध्य ने ही इसे स्थापित किया, यहां से पहली बार 1991 में भीम सिंह पटेल सांसद चुने गए। भीम सिंह बसपा के मध्यप्रदेश के पहले सांसद थे। इसके बाद बुद्धसेन पटेल, देवराज पटेल सांसद चुने गए। समाजवादी पार्टी आई तो जनता ने उसको भी जगह दी। सीधी के गोपदबनास विधानसभा से 2003 में कृष्णकुमार सिंह भंवर, देवसर से वंशमणि वर्मा और सतना के मैहर से नारायण त्रिपाठी विधायक चुने गए थे।
लीक से हटकर निर्णय लेता है क्षेत्र
विंध्य क्षेत्र की जनता कई बार लीक से हटकर निर्णय लेती रही है। ताजा उदाहरण वर्ष 2018 का है जब पूरे प्रदेश में बदलाव की लहर चली तो यहां के लोगों ने कांग्रेस को हरा दिया। आपातकाल के बाद जब पूरे देश में कांग्रेस को लोग हरा रहे थे, तब इस क्षेत्र में लोगों ने कांग्रेस की कई सीटें जिताई। जिन नेताओं के नाम से यह क्षेत्र कुछ समय के लिए जाना गया, उन्हें ही लोगों ने हरा दिया। अर्जुन सिंह, श्रीनिवास तिवारी जैसे लोगों को हराकर उनका राजनीतिक प्रभाव कम कर दिया था।
तीसरे विकल्प को अवसर देती रही जनता
मध्यप्रदेश में अब तक चाहे भले ही दो दलों के बीच ही राजनीति चलती आ रही हो लेकिन विंध्य क्षेत्र की जनता हर बार तीसरे मोर्चे को अवसर देती रही। पार्टियां इन अवसरों को चाहे भले ही नहीं भुना पाईं लेकिन जनता ने स्थापित दलों को भी समय-समय पर आगाह किया है कि वह कोई भी निर्णय ले सकती है।