विराग गुप्ता का कॉलम: सिंधु जल समझौते के पांच जरूरी पहलुओं को समझें

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विराग गुप्ता का कॉलम:  सिंधु जल समझौते के पांच जरूरी पहलुओं को समझें

विराग गुप्ता का कॉलम: सिंधु जल समझौते के पांच जरूरी पहलुओं को समझें

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5 घंटे पहले

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विराग गुप्ता सुप्रीम कोर्ट के वकील

भारत द्वारा सिंधु जल समझौते पर रोक को पाकिस्तान ने युद्ध की शुरुआत माना है। इस पर पाकिस्तान के कानून मंत्री अकील मलिक भारत के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय मंचों में चार तरह से मामले को उठाने का प्रयास कर रहे हैं- अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता, वियना संधि 1969 के उल्लंघन पर हेग स्थित अंतरराष्ट्रीय न्यायालय, विश्व बैंक, यूएन सुरक्षा परिषद।

सिंधु घाटी सभ्यता की सांस्कृतिक धरोहर को नकारने वाला पाकिस्तान संधि के दुरुपयोग से सिंधु और अन्य नदियों के पानी का बेशर्मी से इस्तेमाल करता आ रहा है। पहलगाम में आतंकी हमले के तार पाकिस्तानी सेना और आईएसआई से जुड़े हैं, इसलिए अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत का पक्ष बहुत मजबूत है।

जल मंत्रालय की संसदीय समिति की 2021 की रिपोर्ट के अनुसार भारत सिंधु समझौते से एकतरफा तौर पर अलग नहीं हो सकता (अध्याय 11, परिच्छेद 11.2) पाकिस्तान इस रिपोर्ट का अंतरराष्ट्रीय मंचों में दुरुपयोग नहीं करे, इस बारे में सतर्कता बरतने की जरूरत है। नदी समझौतों से जुड़े मामलों के लिए इन 5 पहलुओं पर बेहतर समझ बनाने की जरूरत है :

1. चीन : चीन, पाकिस्तान और भूटान के साथ हुई संधियों के तहत भारत में 20 हजार मेगावाॅट के पॉवर प्रोजेक्ट्स की सम्भावना है। संसदीय समिति के अनुसार भारत में सिर्फ 3482 मेगावाॅट प्रोजेक्ट्स का निर्माण हुआ है। सिंधु नदी तिब्बत से निकलती है, जहां पर चीन ने साम्राज्यवादी तरीके से कब्जा कर रखा है।

वह अंतरराष्ट्रीय नियमों का उल्लंघन करके ब्रह्मपुत्र नदी पर दुनिया का सबसे बड़ा हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्लांट भी बना रहा है। इसलिए अंतरराष्ट्रीय मंचों में पाकिस्तान का अनैतिक समर्थन करने के कारण चीन को भी सच का आईना दिखाने की जरूरत है।

2. संविधान : संविधान की सातवीं अनुसूची के तहत अंतरराज्यीय नदियों और पड़ोसी राज्यों के साथ संधि के विषय केंद्र के अधीन हैं। लेकिन नदी और पानी का मामला राज्य सरकारों के अधीन आता है। सुप्रीम कोर्ट ने 2012 में नदियों को जोड़ने (आईएलआर) वाले फैसले में केंद्र को निर्देश दिया था। पानी को संविधान की समवर्ती सूची में लाने के लिए आईएलआर समिति के सामने मैंने विस्तृत नोट दिया था, लेकिन उसके अनुसार संविधान संशोधन नहीं हुआ है।

3. जल संकट : पंजाब ने भाखड़ा बांध से जाने वाले 5 हजार क्यूसेक पानी की आपूर्ति को रोक दिया है, जिसकी वजह से हरियाणा में जल संकट बढ़ गया है। सिंधु समझौते में पूर्वी क्षेत्र की 3 नदियों सतलज, व्यास और रावी नदी पर सम्पूर्ण अधिकार होने के बावजूद पानी का पूरा इस्तेमाल नहीं होने पर संसदीय समिति ने 2021 की रिपोर्ट में रोष व्यक्त किया था।

पश्चिम की सिंधु, झेलम और चिनाब नदी के पानी से कृषि और जल ऊर्जा के साथ भारत 36 लाख एकड़ फीट पानी के भंडारण का ढांचा बना सकता है। इन तीन नदियों से लगभग 13.43 एकड़ सिंचित भूमि का विकास करने के बजाय भारत में सिर्फ 7.59 लाख एकड़ भूमि ही सिंचित हो पाई है। इस वजह से उत्तर भारत के राज्यों में खेती के नुकसान पर समिति ने चिंता जताई थी।

4. बाढ़ : राष्ट्रीय बाढ़ आयोग की रिपोर्ट के अनुसार 1953 से 2018 के बीच बाढ़ से 4 करोड़ हेक्टेयर खेतिहर भूमि, 4 लाख करोड़ की संपदा के नुकसान के साथ 1 लाख इंसानों और 6 लाख जानवरों की जान गई है। पूरे देश में आपदा लाने वाली बाढ़ के विषय का केंद्र, राज्य या समवर्ती सूची कहीं भी आवंटन नहीं हुआ है। ड्रेनेज और तटबंधों का विषय राज्यों के अधीन है, जिसके अनुसार राज्य सरकारें सीमित कार्रवाई कर रही हैं। संसदीय समिति की स्पष्ट सिफारिशों के बावजूद अभी तक संसद से बांध सुरक्षा बिल और रिवर बेसिन मैनेजमेंट बिल पारित नहीं हुआ है।

5. बांग्लादेश : भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने बांग्लादेश जा रहे पानी को रोकने की मांग की है। जनता पार्टी सरकार में प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई और फिर प्रधानमंत्री देवगौड़ा ने गंगा जल बंटवारे की संधि पर बांग्लादेश के साथ जल संधि पर हस्ताक्षर किए थे। सिंधु संधि के खिलाफ जम्मू-कश्मीर की राज्य सरकार और बांग्लादेश के साथ जल संधि का ममता बनर्जी सरकार विरोध कर रही हैं।

ममता के अनुसार बांग्लादेश के साथ गंगा, तीस्ता और फरक्का बांध संधियों में भारत सरकार ने पश्चिम बंगाल की सहमति नहीं ली। 30 साल की संधि दिसम्बर 2026 में खत्म हो रही है। कोलकाता बंदरगाह में पानी की गहराई और पश्चिम बंगाल में जल संकट से निपटने के लिए संधि के नवीनीकरण में सरकार को बांग्लादेश के साथ सख्त रवैया अपनाना होगा।

सिंधु, झेलम और चिनाब नदी के पानी से भारत 36 लाख एकड़ फीट भंडारण का ढांचा बना सकता है। लेकिन इन नदियों से लगभग 13.43 एकड़ सिंचित भूमि का विकास करने के बजाय सिर्फ 7.59 लाख एकड़ भूमि ही सिंचित हो पाई है।

(ये लेखक के अपने विचार हैं।)

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