विपक्षी एकता में सबसे बड़ी समस्या सामने खड़ी है, समाधान को लेकर परेशान नीतीश कुमार!

16
विपक्षी एकता में सबसे बड़ी समस्या सामने खड़ी है, समाधान को लेकर परेशान  नीतीश कुमार!

विपक्षी एकता में सबसे बड़ी समस्या सामने खड़ी है, समाधान को लेकर परेशान नीतीश कुमार!

पटना: विपक्षी एकता में सबसे बड़ी बाधा सीटों का बंटवारा बनेगा। एक होकर चुनाव लड़ने के पैरोकार भी इस संकट को समझ रहे हैं। महज मोदी (Narendra Modi) के खिलाफ माहौल बनाने के लिए विपक्षी एकता का ढिंढोरा खूब पीटा जा रहा है। कवायद में भी कोई कमी नहीं है। बिन बुलाए मेहमान की तरह नीतीश धड़ल्ले से विपक्षी दलों के नेताओं के घर दस्तक देने पहुंच जा रहे हैं। विपक्ष के लोग भी भलीभांति जानते हैं कि सीटों का तालमेल यानी सीट शेयरिंग कितना टफ काम है। सीट शेयरिंग (Seat Sharing), मतलब एस स्क्वायर। एनडीए जैसे व्यवस्थित गठबंधन को अपने गिने-चुने साथियों को संतुष्ट करने में कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं, यह नीतीश कुमार को भी बेहतर पता है। इसलिए कि 2019 में उनकी पार्टी जेडीयू एनडीए का ही हिस्सा थी।

बिहार में विपक्ष कैसे करेगा सीट शेयरिंग ?

बिहार की बात करें तो महागठबंधन में अभी सात दल हैं। नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू ने 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी से बराबर सीटें मांगी थीं। साल 2014 में बीजेपी के 22 उम्मीदवार जीते थे और जेडीयू को 2 सीटों से संतोष करना पड़ा था। बीजेपी से बराबर की हिस्सेदारी के लिए तब जेडीयू ने विधानसभा में बीजेपी से जेडीयू की अधिक संख्या को आधार बना कर अधिक नहीं तो कम से कम बीजेपी के बराबर हिस्सेदारी के लिए क्या-क्या तर्क नहीं दिये। जेडीयू ने खुद को ‘बड़ा भाई’ बताया और बिहार में नीतीश के नेतृत्व में चुनाव लड़ने की शर्त रखी। जेडीयू का यह तर्क हास्यास्पद इसलिए लगा था कि पूरे देश में नरेंद्र मोदी के चेहरे पर एनडीए चुनाव लड़ रहा था और बिहार में नीतीश के नेतृत्व में लोकसभा का चुनाव लड़ने की शर्त मनवाने पर जेडीयू का जोर था। बीजेपी की उदारता और साथियों को खुश रखने का कमाल था कि बीजेपी ने अपने 5 सिटिंग एमपी के टिकट काट दिए और पिछले चुनाव में 2 सीटें जीतने वाले जेडीयू को अपने बराबर 17 सीटें दे दीं। बीजेपी ने अपने हिस्से की सभी सीटों पर जीत दर्ज की, लेकिन मोदी मैजिक के बावजूद जेडीयू ने एक सीट गंवा दी। यह वही साल था, जब एनडीए में बीजेपी के अलावा जेडीयू और लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) शामिल थे। लोजपा ने भी हिस्से में मिली सभी 6 सीटें जीत ली थीं।

क्या नीतीश को 2019 के पैटर्न पर सीटें मिलेंगी ?

एनडीए में तो तीन ही दल थे, तब सीट शेयरिंग में इतनी किचकिच हुई। अब तो नीतीश कुमार जिस महागठबंधन के साथ हैं, उसमें सात दल हैं। चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर कहते हैं कि 2020 के विधानसभा चुनाव में भाकपा (माले) ने अपने हिस्से की 17 सीटों पर उम्मीदवार उतारे, जिनमें 12 जीत भी गए। यानी माले को 70 प्रतिशत कामयाबी मिली। नीतीश कुमार ने अपनी पार्टी जेडीयू के 110 कैंडिडेट खड़े किए, जिनमें 43 ही जीत पाए। यानी नीतीश कुमार के करिश्माई व्यक्तित्व के बावजूद जेडीयू के 60 प्रतिशत उम्मीदवार हार गए। व्यावहारिक सच यह है कि सीटों के बंटवारे में यकीनन सीटों के बंटवारे में विधानसभा में जीत के आंकड़े को आधार बनाया जाएगा। आरजेडी को भी इस बात का अनुभव है कि विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के करीब बने रहने के लिए उसे बंटवारे में जरूरत से ज्यादा सीटें देने के कारण ही तेजस्वी बिना नीतीश के महागठबंधन की सरकार बनाने से चूक गए थे। इसलिए आरजेडी 2019 में जेडीयू को मिली 17 सीटों की तरह नीतीश कुमार को इस बार होने वाले लोकसभा चुनाव में उतनी सीटें देने को तैयार होगा, यह संदिग्ध लगता है।

Bihar Politics: झारखंड में हेमंत से मिल कर नीतीश विपक्षी एकता का मंत्र दे गए या जेडीयू का जनाधार बढ़ाने की मुहिम छेड़ गए !

आरजेडी को भी नीतीश का जनाधार पता है

आरजेडी को अच्छी तरह पता है कि नीतीश कुमार का जनाधार अब दरक चुका है। नीतीश कुमार आरोप लगाते हैं कि चिराग पासवान ने असेंबली इलेक्शन में उनके उम्मीदवारों के खिलाफ अपने कैंडिडेट दे दिए थे, इसलिए कम सीटें आईं। वह यह नहीं मानते कि तेजस्वी ने उनके आधार वोट में सेंध लगाया और आरजेडी दूसरी बड़ी पार्टी विधानसभा में बन गई। अब तो पहले नंबर की पार्टी है। आरजेडी के नेतृत्व में जो महागठबंधन बना था, उसकी भी नैया तेजस्वी की वजह से पार लग गई। अब तो नीतीश कुमार का लव-कुश समीकरण भी आरसीपी सिंह और उपेंद्र कुशवाहा ने दरका दिया है। इसलिए यह असंभव लगता है कि बीजेपी की तरह उदार होकर आरजेडी नीतीश कुमार को बराबर सीटें देने पर तैयार हो जाए।
रिपोर्ट- ओमप्रकाश अश्क

बिहार की और खबर देखने के लिए यहाँ क्लिक करे – Delhi News