विदेशी मुद्रा भंडार से गायब हो रहा डॉलर, अब किसी टैंक या मिसाइल से कम नहीं है करेंसी

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विदेशी मुद्रा भंडार से गायब हो रहा डॉलर, अब किसी टैंक या मिसाइल से कम नहीं है करेंसी

विदेशी मुद्रा भंडार से गायब हो रहा डॉलर, अब किसी टैंक या मिसाइल से कम नहीं है करेंसी

नई दिल्ली: यूक्रेन पर किए गए हमले (Attack on Ukraine) के चलते रूस पर पश्चिमी देशों ने कड़े प्रतिबंध (Sanctions on Russia) लगाए हैं। इन प्रतिबंधों के तहत अमेरिका ने रूस के 469 अरब डॉलर के करेंसी रिजर्व का एक बड़ा हिस्सा फ्रीज कर दिया। रूस, अमेरिकी डॉलर (US Dollar) में लेनदेन नहीं कर सकता लिहाजा वह अपनी करेंसी रूबल में पेंमेंट समेत अन्य विकल्पों का इस्तेमाल कर रहा है। रूस पर अमेरिकी डॉलर के इस्तेमाल को लेकर लगाए गए प्रतिबंधों के बाद दुनिया में अमेरिकी डॉलर के दबदबे को लेकर चर्चा और बहस दोनों शुरू हो गई हैं। करेंसीज को हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है, जिसका सबसे बड़ा उदाहरण डॉलर है। कहा जा रहा है कि अब अमेरिकी डॉलर एक ऐसा हथियार है, जिसे जरूरत पड़ने पर अमेरिका कभी भी इस्तेमाल कर सकता है।

जहां तक केन्द्रीय बैंकों के विदेशी मुद्रा भंडार की बात है तो कई देशों ने इसमें डॉलर की हिस्सेदारी को या तो पिछले कुछ सालों में कम किया है, या फिर कम कर रहे हैं। अब रिजर्व को डायवर्सिफाई करने पर राष्ट्र गंभीर हैं। जहां तक भारत की बात है तो आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत दास (RBI Governor Shaktikanta Das) ने कहा है कि हमारा रिजर्व कई करेंसीज में बंटा हुआ है, बेशक उसमें अधिकांश हिस्सेदारी डॉलर की है। 6 महीने पहले हमने फैसला किया था कि रिजर्व को अन्य करेंसीज में डायवर्सिफाई किया जाए।

अभी डॉलर के वर्चस्व को चुनौती देना संभव नहीं
कहा जा रहा है कि अमेरिकी डॉलर के दबदबे और इसे एक हथियार की तरह इस्तेमाल कर लिए जाने को देखते हुए दुनिया के विभिन्न देश ट्रांजेक्शन के ऐसे नए मैकेनिज्म तलाश सकते हैं, जो अमेरिकी डॉलर को बाईपास करें। ऐसी चर्चा है कि चीनी युआन एक संभवित रिप्लेसमेंट हो सकता है। सउदी अरब, चीन के साथ बातचीत कर रहा है कि वह तेल बिक्री के बदले युआन में पेमेंट ले सके। ये बदलाव और करेंसीज को हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने की राह ने डॉलर के वर्चस्व को लेकर सवाल खड़े कर दिए हैं। लेकिन एक्सपर्ट्स का कहना है अभी डॉलर के वर्चस्व को चुनौती देना संभव नहीं है।

आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन का कहना है कि अमेरिका के हालिया एक्शंस के बावजूद, अमेरिकी डॉलर का दबदबा कायम रहेगा। युआन को करेंसी ग्रुपिंग का केन्द्र बनने के लिए एक लंबा रास्ता तय करना होगा। यह स्वतंत्र रूप से कन्वर्टिबल नहीं है, इसकी वैल्यू बाजार निर्धारित नहीं है। साथ ही इस पर मैनिपुलेशन के चार्जेस हैं। यही मामला रूस के रूबल के साथ भी है। छोटे करेंसी ग्रुप्स जल्द क्रिएट होंगे, ऐसी संभावना नजर आती है। राजन का यह भी कहना है कि करेंसी को हथियार की तरह इस्तेमाल किया जाना, रिजर्व रखने वाले केन्द्रीय बैंकों को अधिक करेंसी डायवर्सिटी की ओर ले जा सकता है।

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गैर परंपरागत करेंसीज का उदय
आईएमएफ की एक रिपोर्ट कहती है कि केन्द्रीय बैंकों के रिजर्व में अमेरिकी डॉलर की हिस्सेदारी घटी है। वहीं दूसरी ओर गैर परंपरागत रिजर्व करेंसीज जैसे ऑस्ट्रेलियाई डॉलर और चीनी युआन की हिस्सेदारी, अन्य परंपरागत रिजर्व करेंसीज जैसे यूरो, पाउंड और येन के मुकाबले बढ़ी है। यह शिफ्ट व्यापक रूप से है। 46 एक्टिव डायवर्सिफायर्स ऐसे हैं, जिनके रिजर्व का कम से कम 5 फीसदी अब गैर परंपरागत करेंसीज में है। गैर परंपरागत रिजर्व करेंसीज से अर्थ उन देशों की मुद्राओं से है, जिनका कोई इकनॉमिक स्केल और क्रॉस बॉर्डर ट्रांजेक्शन वॉल्यूम नहीं है, जो परंपरागत रिजर्व करेंसी इश्युअर्स को प्रतिष्ठित बनाए।

डिजिटल करेंसीज का उदय और वर्चस्व
सक्षम और अच्छी फंक्शनिंग वाले मार्केट्स के लिए अमेरिकी डॉलर का दबदबा लंबे वक्त से है। इसकी कई वजह हैं, जैसे मजबूत लोकतंत्र, सेफ हैवन स्टेटस, आसान वैश्विक स्वीकार्यता; फॉरेक्स ट्रेडिंग, ग्लोबल पेमेंट्स, ट्रेड व फाइनेंस में इस्तेमाल की आसानी। चीन के आर्थिक रूप से कामयाब होने के बावजूद इसकी करेंसी को डॉलर जैसा विश्वास कायम करने में सालों लग जाएंगे। यह फुली कन्वर्टिबल नहीं है और कोविड19 महामारी के बाद चीन को लेकर काफी अविश्वास है।

भले ही डॉलर के वर्चस्व को अभी चुनौती न दी जा सके लेकिन हाल की कुछ स्टडीज डिजिटल पेमेंट्स के विकास को दर्शाती हैं। साथ ही यह भी बताती हैं कि इस सेगमेंट में चीन का अग्रणी होना आगे चलकर अमेरिकी डॉलर के लिए खतरा पैदा कर सकता है। हार्वर्ड कैनेडी स्कूल के बेलफेर सेंटर फॉर साइंस एंड इंटरनेशनल अफेयर्स की एक नई रिपोर्ट में कहा गया है कि डिजिटल युआन ट्रडर्स को ट्रांजेक्शन रिरूट करने के एक आसान तरीके की पेशकश कर सकता है और डॉलर बेस्ड सिस्टम को बाईपास कर सकता है। यह भी संभावना है कि चीन की टेक्नोलॉजीस को इंटरनेशनली अपना लिया जाए और यह पूरी दुनिया में डिजिटल फाइनेंशियल प्रैक्टिसेज के नियम बता रहा हो।

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