’वित्त’ से मंजूरी मिलते ही कैबिनेट में आएगी नक्सली सरेंडर पॉलिसी | proposed naxal sureender policy mp | Patrika News h3>
-मप्र में सरेंडर पॉलिसी नहीं होने से नक्सल विरोधी अभियान में आ रही परेशानी
-मप्र में बालाघाट, डिंडौरी और मंडला है नक्सल प्रभावित जिले
भोपाल
Published: April 10, 2022 08:42:26 pm
भोपाल. मप्र के नक्सल प्रभावित जिलों मसलन बालाघाट, डिंडौरी एवं मंडला में सक्रिय नक्सलियों को समाज की मुख्यधारा में वापस लाने और उनके बेहतर पुनर्वास के लिए तैयार की गई सरेंडर पॉलिसी वित्त विभाग की मंजूरी के बाद कैबिनेट में रखी जाएगी। यहां से मंजूरी मिलने के बाद इस पर अमल शुरू होगा। बता दें, मप्र में नक्सलियों के आत्मसमर्पण के लिए कोई प्रोत्साहन योजना या नीति नहीं है। वहीं अन्य नक्सल प्रभावित राज्यों जैसे छत्तीसगढ़, ओडिशा, झारखंड, आंध्रप्रदेश और महाराष्ट्र में आत्मसमर्पण नीति को लागू किया गया है। इसके अलावा केंद्र ने भी सरेंडर पॉलिसी तैयार की है। बहरहाल, पुलिस मुख्यालय की नक्सल विरोधी अभियान शाखा ने नक्सल समर्पण नीति का मसौदा गृह विभाग को भेजा था। गृह विभाग के सचिव गौरव राजपूत के मुताबिक वित्त विभाग से मंजूरी मिलते ही इसे इसी महीने कैबिनेट की बैठक में रखा जाएगा। प्रस्तावित नीति के अनुसार नक्सलियों और उनके द्वारा सरेंडर किए जाने वाले हथियारों के आधार पर पुनर्वास किया जाएगा। सरेंडर करने वाले नक्सलियों को जीवन यापन के लिए कृषि योग्य भूमि या अन्य सेवाओं में मौका दिए जाने का भी प्रावधान किया गया है। एके-47 या इसके समकक्ष हथियार सरेंडर करने पर नकद राशि भी दी जाएगी। सरेंडर के लिए नक्सलियों के कैडर और उन पर घोषित इनाम के आधार पर प्रोत्साहन राशि भी तय की गई है। आत्म समर्पण करने वाले नक्सलियों से पुलिस को अन्य नक्सलियों की मूवमेंट की जानकारी मिलेगी, जिससे मप्र को नक्सल मुक्त कराने में आसानी होगी।
’वित्त’ से मंजूरी मिलते ही कैबिनेट में आएगी नक्सली सरेंडर पॉलिसी
छत्तीसगढ़ से सीमावर्ती जिले नक्सल प्रभावित
नक्सल प्रभावित छत्तीसगढ़ की सीमा से सटे मप्र के जिलों में नक्सलियों की गतिविधियां रहती हैं। छत्तीसगढ़ में नक्सल विरोधी ऑपरेशन्स के दौरान ये नक्सली यहां का भी रुख करते हैं। घना वन क्षेत्र होने से नक्सलियों को मप्र में छिपने की बेहतर संभावनाएं नजर आती हैं। इसके अलावा डिंडौरी, बालाघाट और मंडला के दूरदराज और वन्य क्षेत्रों में नक्सली अपनी गतिविधियों को लगातार विस्तार देने की फिराक में रहते हैं। इसके चलते युवाओं को बरगलाकर नक्सल गतिविधियों में शामिल करने के साथ ही स्थानीय तेंदुपत्ता फड़ों से वसूली भी शामिल है। हालांकि पिछले साल हॉक फोर्स की सख्ती के चलते मप्र से सिर्फ एक फड़ से वसूली करने में ही नक्सली सफल हो सके थे।
पिछले साल प्रदेश में 19 नक्सली घटनाएं
मप्र में पिछले साल यानी वर्ष 2021 में 19 नक्सली हिंसा के मामले सामने आए, जिसमें तीन लोगों की मौत हुई। वर्ष 2020 में हुईं 16 घटनाओं में दो की तो वर्ष 2019 में पांच नक्सली हिंसा की घटनाओं में दो लोगों की मौत हुई थी।
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-मप्र में बालाघाट, डिंडौरी और मंडला है नक्सल प्रभावित जिले
भोपाल
Published: April 10, 2022 08:42:26 pm
भोपाल. मप्र के नक्सल प्रभावित जिलों मसलन बालाघाट, डिंडौरी एवं मंडला में सक्रिय नक्सलियों को समाज की मुख्यधारा में वापस लाने और उनके बेहतर पुनर्वास के लिए तैयार की गई सरेंडर पॉलिसी वित्त विभाग की मंजूरी के बाद कैबिनेट में रखी जाएगी। यहां से मंजूरी मिलने के बाद इस पर अमल शुरू होगा। बता दें, मप्र में नक्सलियों के आत्मसमर्पण के लिए कोई प्रोत्साहन योजना या नीति नहीं है। वहीं अन्य नक्सल प्रभावित राज्यों जैसे छत्तीसगढ़, ओडिशा, झारखंड, आंध्रप्रदेश और महाराष्ट्र में आत्मसमर्पण नीति को लागू किया गया है। इसके अलावा केंद्र ने भी सरेंडर पॉलिसी तैयार की है। बहरहाल, पुलिस मुख्यालय की नक्सल विरोधी अभियान शाखा ने नक्सल समर्पण नीति का मसौदा गृह विभाग को भेजा था। गृह विभाग के सचिव गौरव राजपूत के मुताबिक वित्त विभाग से मंजूरी मिलते ही इसे इसी महीने कैबिनेट की बैठक में रखा जाएगा। प्रस्तावित नीति के अनुसार नक्सलियों और उनके द्वारा सरेंडर किए जाने वाले हथियारों के आधार पर पुनर्वास किया जाएगा। सरेंडर करने वाले नक्सलियों को जीवन यापन के लिए कृषि योग्य भूमि या अन्य सेवाओं में मौका दिए जाने का भी प्रावधान किया गया है। एके-47 या इसके समकक्ष हथियार सरेंडर करने पर नकद राशि भी दी जाएगी। सरेंडर के लिए नक्सलियों के कैडर और उन पर घोषित इनाम के आधार पर प्रोत्साहन राशि भी तय की गई है। आत्म समर्पण करने वाले नक्सलियों से पुलिस को अन्य नक्सलियों की मूवमेंट की जानकारी मिलेगी, जिससे मप्र को नक्सल मुक्त कराने में आसानी होगी।
’वित्त’ से मंजूरी मिलते ही कैबिनेट में आएगी नक्सली सरेंडर पॉलिसी
छत्तीसगढ़ से सीमावर्ती जिले नक्सल प्रभावित
नक्सल प्रभावित छत्तीसगढ़ की सीमा से सटे मप्र के जिलों में नक्सलियों की गतिविधियां रहती हैं। छत्तीसगढ़ में नक्सल विरोधी ऑपरेशन्स के दौरान ये नक्सली यहां का भी रुख करते हैं। घना वन क्षेत्र होने से नक्सलियों को मप्र में छिपने की बेहतर संभावनाएं नजर आती हैं। इसके अलावा डिंडौरी, बालाघाट और मंडला के दूरदराज और वन्य क्षेत्रों में नक्सली अपनी गतिविधियों को लगातार विस्तार देने की फिराक में रहते हैं। इसके चलते युवाओं को बरगलाकर नक्सल गतिविधियों में शामिल करने के साथ ही स्थानीय तेंदुपत्ता फड़ों से वसूली भी शामिल है। हालांकि पिछले साल हॉक फोर्स की सख्ती के चलते मप्र से सिर्फ एक फड़ से वसूली करने में ही नक्सली सफल हो सके थे।
पिछले साल प्रदेश में 19 नक्सली घटनाएं
मप्र में पिछले साल यानी वर्ष 2021 में 19 नक्सली हिंसा के मामले सामने आए, जिसमें तीन लोगों की मौत हुई। वर्ष 2020 में हुईं 16 घटनाओं में दो की तो वर्ष 2019 में पांच नक्सली हिंसा की घटनाओं में दो लोगों की मौत हुई थी।
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