विकास की जमीनी हकीकत: रात को कोई बीमार हो जाए तो भगवान ही मालिक, लड़कियां आठवीं के बाद पढ़ नहीं पातीं, खतरे में इस गांव का अस्तित्व!

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विकास की जमीनी हकीकत: रात को कोई बीमार हो जाए तो भगवान ही मालिक, लड़कियां आठवीं के बाद पढ़ नहीं पातीं, खतरे में इस गांव का अस्तित्व!

विकास की जमीनी हकीकत: रात को कोई बीमार हो जाए तो भगवान ही मालिक, लड़कियां आठवीं के बाद पढ़ नहीं पातीं, खतरे में इस गांव का अस्तित्व!

बलरामपुर: ‘अगर देर रात कोई बीमार हो जाए तो उसे भगवान ही बचा सकता है। रात में नाव से उस पार जाना मुश्‍किल है। उतरौला बजारा की दूरी लगभग 12 किलोमीटर है। बाढ़ के समय तो हम पूरी तरह से भगवान भरोसे हो जाते हैं। हमारे उत्‍तर प्रदेश में चुनाव (Uttar Pradesh Election 2022) है। नेता खूब प्रचार कर रहे हैं हैं। लेकिन हमारे गांव में तो प्रत्‍याशी इसके लिए भी नहीं आते, क्‍योंक‍ि उनकी बड़ी गाड़ी यहां तक पहुंच नहीं सकती। पहले तो उन्‍हें चार किलोमीटर पैदल चलना पड़ेगा। फिर नाव से उस पार जाएंगे। अब इतना कष्‍ट कौन उठाए। नदी के उस पार न तो ढंग का स्‍कूल है और न ही अस्‍पताल। मुझे ही देख‍िए, 12 क‍िलोमीटर अतरौला जा रहा ईलाज कराने।’ नाव से उतरी मोटरसाइकिल पर बैठते हुए घघरू (60) नाराज होते हुए कहते हैं।

अगर आप व‍िकास की जमीनी हकीकत देखना चाहते हैं तो उत्‍तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से लगभग 150 किलोमीटर दूर जिला बलरामपुर (Balrampur), तहसील उतरौला के गांव भरवलिया जाइए। लगभग 4,000 की आबादी वाले इस गांव में जाने के लिए आज भी आपको नाव का सहारा लेना पड़ता है। उससे पहले आपको पगडंडी के सहारे चार किलोमीटर की पैदल यात्रा करनी होगी। राप्‍ती नदी के उस पार बसे इस गांव के लोग आज भी मूलभूत सुविधाओं का इंतजार कर रहे हैं।

सरकार सुविधाओं के नाम पर मात्र एक सरकारी स्‍कूल
उत्‍तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 (Uttar Pradesh Election 2022) अब अपने आख‍िरी पड़ाव की ओर बढ़ रहा है। छठवें चरण (6th phase election) के 10 जिलों की 58 सीटों पर 3 मार्च को मतदान होना हैं। इसके बाद आख‍िरी चरण का मतदान 7 मार्च को होगा। अब तक आपने लगभग हर नेता को मंच से विकास पर बात करते हुए सुना होगा। सत्‍ताधारी दल के नेता कभी यह कहते नहीं थकते क‍ि हमने सबसे ज्‍यादा विकास किया है। लेकिन इस गांव के लिए विकास आज भी दूर की कौड़ी है।

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नाव से उस पार जाते ग्रामीण।

सिद्धार्थनगर की सीमा पर बसे भरवलिया तक जाने के लिए आपको पहले 4 किलोमीटर पगडंडी रास्तों पर पैदल जाना होगा। पगडंडी खत्म होती है तो सामने राप्ती नदी दिखाई पड़ती है। राप्ती नदी को नाव के सहारे पार कर इस गांव में पहुंचा जा सकता है। लोकतंत्र में चुनाव के महोत्सव होते हैं। पोलिंग पार्टियां भी नाव के सहारे ही इस गांव में पहुंचती हैं। गांव में सरकारी सुविधाओं के नाम पर मात्र एक सरकारी स्कूल है जहां आठवीं तक पढ़ाई होती है।

कोटे की दुकान से राशन उठाने के लिए यहां के लोगों को नदी पार कर नंदौरी गांव आना पड़ता है। एएनएम सेंटर न होने से गर्भवती महिलाओं का टीकाकरण समय से नहीं हो पाता है। ऐसी महिलाओ को आंगनबाड़ी केंद्र तक आने के लिए नाव का ही सहारा है।

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हम जब नाव से हम भरवलिया जा रहे थे तो नाव पर हमें कई मह‍िलाएं भी मिलीं जो उस उतरौला से मजदूरी करके लौट रहींं थीं। उन्‍होंने पहले तो बात करने से मना कर दिया। लेकिन उन्‍होंने अपनी कुछ दिक्‍कतें बताईं। उन्‍होंने कहा क‍ि गांव में 8वीं के बाद स्‍कूल नहीं है। लड़के तो नाव पार करके दूसरे स्‍कूल चले जाते हैं। लेकिन हमारे गांव लड़कियां नहीं पढ़ पातीं।

हर साल बह जाते हैं सैकड़ों घर
ऐसा नहीं है क‍ि विकास की बाट बस भरवलिया गांव के लोग ही जोह रहे हैं। उससे सटे 15 से 20 गांव ऐसे में हैं जो हर साल त्रासदियों से दो चार होते हैं। यहां के लोग बताते हैं क‍ि राप्‍ती में हर साल बाढ़ आती है। कटान से न जाने कितने घर कट जाते हैं। कटान को रोकने के लिए सरकार की तरफ से कोई व्‍यवस्‍था नहीं की जाती। बाढ़ आने पर सब व्‍यस्‍त हो जाते हैं।

भरवलिया से सटे जहादा के मोहम्‍मद अकरम खंडहर में तब्‍दील हो चुके कच्‍चे घरों को दिखाते हुए कहते हैं, ‘ये देख‍िए, 25-50 घर तो आपको यहीं दिख जाएंगे। ऐसे न जाने कितने घर हैं जो हर साल कटान में बह जाते हैं। इतने खेत चले गये क‍ि कई लोगों के पास अब तो खेत बचा ही नहीं है। बाढ़ के समय नाव नहीं चलती। तब उतरौला जाना बहुत मुश्किल हो जाता है।’

गांव भरवलिया के घर।

कटान की वजह से खंडहर हुए सैकड़ों घर।

गांव को राप्ती नदी की कटान से बचाने के लिए कार्ययोजना तैयार की गई थी। लेकिन वह भी काम अधूरा पड़ा है। नदी के मुहाने पर बने तमाम घर खंडहर हो चुके हैं। कई परिवार गांव से पलायन कर चुके हैं। गांव के ही मुजीद मोहम्मद (38) कहते हैं क‍ि हर साल कटान की वजह से गांव छोटा होता जा रहा है। अगर यही हाल रहा तो एक समय ऐसा भी आएगा जब गांव का अस्तित्व ही खत्‍म हो जाएगा। सबसे बड़ी बात तो यह है क‍ि सरकारों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।

पीपा पुल भी नहीं, एक मात्र नाव वह भी गांव के लोगों का
देश में आज भी बहुत से ऐसे नदी किनारे बसे कई गांव हैं जिन्‍हें जोड़ने के लिए पक्‍का पुल नहीं है। लेकिन ज्‍यादातर जगहों पर पीपा पुल तो है ही। लेकिन यहां तो पीपा पुल तक नहीं है। इस पार से उस पार जाने के लिए एक मात्र नाव है वह भी गांव वालों की। इसे चलाने की जिम्‍मेदारी एक मल्‍लाह के ऊपर है जिन्‍हें गांव वाले मिलकर साल में एक बार एकमुश्‍त राशन देते हैं। इस पूरे मामले पर हमने प्रशासन से भी बात करने की कोश‍िश की। एडीएम राम अभ‍िलाष को कई बार फोन किया। लेकिन उन्‍होंने फोन नहीं उठाया।

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भरवलिया से शहर की ओर जाते गांव के लोग।



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