वारिस पंजाब दे का क्या एजेंडा, दुबई से पंजाब क्यों आया अमृतपाल सिंह… क्या ‘दूसरा भिंडरावाले’ बना रहा पाकिस्तान?
दुबई से पंजाब क्यों आया अमृतपाल?
अमृतपाल सिंह का जन्म अमृतसर के जल्लूपुर खेड़ा गांव में 1993 में हुआ था। महज 12वीं पास अमृतपाल अचानक से दुबई चला गया। बताते हैं कि वहां पर अमृतपाल ट्रांसपोर्ट के व्यवसाय से जुड़ा था। पंजाबी ऐक्टर और ऐक्टिविस्ट दीप सिद्धू ने वारिस पंजाब दे संगठन की स्थापना 30 सितंबर 2021 में की थी। दीप सिद्धू ने इसका मकसद युवाओं को सिख पंथ के रास्ते पर लाना और पंजाब को जगाना बताया था। किसान आंदोलन और उसके बाद 26 जनवरी 2021 को लाल किला हिंसा मामले में दीप सिद्धू का नाम आया। 15 फरवरी 2022 को दिल्ली से पंजाब लौटते वक्त सोनीपत के पास एक सड़क हादसे में दीप सिद्धू की मौत हो जाती है। मार्च में दावा किया जाता है कि अमृतपाल अब वारिस पंजाब दे का नया सर्वेसर्वा है। इसके बाद 29 सितंबर 2022 को अमृतपाल मोगा के रोडे गांव पहुंचता है। वही रोडे गांव जहां से खालिस्तानी आतंकी जरनैल सिंह भिंडरावाले की जड़ें जुड़ी हुई थीं। 29 सितंबर को ही रोडे गांव में बतौर वारिस पंजाब दे प्रमुख अमृतपाल सिंह की दस्तारबंदी होती है। इसके बाद अमृतपाल सीधे देश की सरकार और सिस्टम को चैलेंज देने लगता है।
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क्या खालिस्तान के आकाओं से पाई ट्रेनिंग?
क्या अमृतपाल को खालिस्तान का समर्थन करने वाले आकाओं से ट्रेनिंग मिली है? यह सवाल इसलिए भी अहम है क्योंकि अमृतपाल ने 2012 में दुबई जाने के बाद क्या किया, इस बारे में कोई ज्यादा जानकारी नहीं है। उसकी एंट्री ऐसे वक्त में होती है, जब पंजाब में कट्टरपंथी ताकतें फिर से सिर उठाती दिखती हैं। आने के साथ ही वह केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को धमकी देते हुए कहता है कि इंदिरा गांधी जैसा हश्र होगा। खालिस्तान की बात बच्चा-बच्चा करता है। यह कहकर वह एक विभाजनकारी मानसिकता को जस्टिफाई करने की कोशिश करता है। वह कहता है कि पंजाब एक अलग देश है और मैं भारत की परिभाषा को नहीं मानता हूं। वह 1984 की बात करता है और कहता है कि सिखों को अलग देश न मिलकर तीन टुकड़ों में बंटा राज्य और नरसंहार मिला। ये सारे बयान ऐसे हैं जो साफ करते हैं कि पंजाब लौटने से पहले जो वक्त उसने दुबई में गुजारा, उस दौरान खालिस्तान की मांग उठाने के लिए किस तरह उसको ट्रेंड किया गया। वह प्रेस कॉन्फ्रेंस के लिए विदेशी मीडिया को भी बुलाने की बात करता है। क्या वह पर्दे के पीछे से पाकिस्तान में बैठे आकाओं से ऑपरेट हो रहा है? यह सबको पता है कि भिंडरावाले और अकाल तख्त पर कब्जा करने वाले उसके समर्थकों को ट्रेनिंग पाकिस्तान से ही मिली थी।
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वारिस पंजाब दे संगठन का क्या एजेंडा?
अब आते हैं वारिस पंजाब दे पर जिसका चीफ है अमृतपाल सिंह। वारिस पंजाब दे संगठन पंजाब के अधिकारों की रक्षा के लिए लड़ाई का दावा करता है। इस संगठन को बनाने वाले दीप सिद्धू ने पंजाब के हक की लड़ाई को आगे बढ़ाना अपना मकसद बताया था। एक और बात गौर करने वाली है कि वारिस पंजाब दे संगठन ने किसी राजनीतिक एजेंडे पर चलने की बात नहीं की थी। लेकिन 2022 में पंजाब के विधानसभा चुनाव में वारिस पंजाब दे ने सिमरनजीत सिंह मान की शिरोमणि अकाली दल (अमृतसर) का समर्थन किया। दीप सिद्धू ने पंजाब में चुनाव से पहले सिमरनजीत की पार्टी के समर्थन में प्रचार किया था। भगवंत मान की लोकसभा सीट संगरूर पर हुए उपचुनाव में सिमरनजीत सिंह मान ने जीत भी दर्ज कर ली। ये वही सिमरनजीत मान हैं, जो खालिस्तान के लिए आवाज उठाते रहते हैं। दिसंबर 2022 में एनबीटी को दिए एक इंटरव्यू में मान ने कहा था, ‘1947 में हिंदुओं को अपना देश मिल गया, मुसलमानों को अपना देश पाकिस्तान मिल गया, तीसरी कौम सिख बची जिसके साथ धोखा हुआ। सिखों की बात सुनी नहीं गई।’ यानी पंजाब के हक की लड़ाई की आड़ लेकर खालिस्तान और उसका समर्थन करने वाले लोगों के लिए वारिस पंजाब दे खड़ा दिखा है। भिंडरावाले का जो हश्र हुआ और उसके बाद पंजाब का अमन-चैन छिना, इसका इतिहास गवाह है। ऐसे में भगवंत मान के बयान में दम तो जरूर दिखता है। क्या अमृतपाल सिंह के रूप में एक दूसरा भिंडरावाले खड़ा करने के नापाक मंसूबे सरहद पार से आए हैं?