लोकसभा चुनाव 2024: GA में सीट तो बंट गए पर RJD, कांग्रेस और लेफ्ट के आगे ये चुनौतियां विकराल

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लोकसभा चुनाव 2024: GA में सीट तो बंट गए पर RJD, कांग्रेस और लेफ्ट के आगे ये चुनौतियां विकराल

लोकसभा चुनाव 2024: GA में सीट तो बंट गए पर RJD, कांग्रेस और लेफ्ट के आगे ये चुनौतियां विकराल

इंडिया गठबंधन ने शुक्रवार को सहयोगी दलों के बीच बिहार की सभी 40 सीटों के बंटवारे की घोषणा कर दी। लेकिन काफी किरकिरी के बाद। सीटों के बंटवारे में गठबंधन दलों में मतभेद की बात लोगों के मन में अवधारणा का रूप लेने के बाद सहमति की घोषणा की गई। राजद ने बंटवारे से पूर्व ही पहले चरण की सभी चार और दूसरे चरण के लिए खासकर पूर्णिया सीट पर अपना उम्मीदवार देकर मतभेद को सार्वजनिक किया। राजद के इस फैसले ने राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां बटोरीं। पप्पू यादव की जन अधिकार पार्टी के कांग्रेस में विलय के बाद इस घटनाक्रम ने बैठे- बिठाए सीमांचल में एनडीए को एक मुद्दा भी दे दिया।

एनडीए में भी सीटों के बंटवारे में देर हुई, लेकिन अंदर खींचतान की भनक तक किसी को नहीं लगने दी गई। सहमति की राह के कई पेच सहमति से सुलझा लिए गए। पसंद की और जीती सीटें छोड़ने के लिए किसी को सहमत कराना आसान नहीं होता, लेकिन यह भी संभव हुआ। एनडीए के छह में चार दलों ने जीती सीटें दूसरे सहयोगी दलों के लिए छोड़ीं। पशुपति कुमार पारस की रालोजपा ने तो सभी सीटें छिनने के बाद भी मौन साधे रखा। इन सबको लेकर सहमति-असहमति का स्तर क्या रहा, इसकी भी जानकारी कानों-कान किसी को नहीं हो सकी। जबकि चुनाव घोषणा से महज डेढ़ महीना पूर्व जदयू की एनडीए में वापसी हुई। इस अर्थ में एनडीए ने इंडिया से बाजी मार ली।

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इंडिया गठबंधन से जदयू 28 जनवरी को बाहर निकला। उस समय जदयू का आरोप यही था कि इंडिया में सीटों के बंटवारे के प्रति कोई गंभीर नहीं है। बिहार में इंडिया गठबंधन में जो दल पहले जुड़े थे, जदयू को छोड़ बाकी आज भी हैं। क्या ड़ेढ़ महीना कम था, सीटों का बंटवारा करने के लिए? समय कम था तो भी संवाद में इतनी पारदर्शिता क्यों नजर नहीं आई कि कांग्रेस ने पूर्णिया सीट देने की शर्त पर पप्पू यादव को शामिल करा लिया और वह सीट नहीं ले पाई। आज एनडीए का हर नेता इसी तर्क पर प्रहार कर रहा है कि इंडिया में कांग्रेस की राजद के आगे कुछ नहीं चली। उसे राजद के आगे घुटने टेकने पड़े? आखिर यह अवसर किसने दिया?

खैर, सीटों के बंटवारे का ऐलान साझा प्रेस कान्फ्रेंस में किया गया और साथ ही इंडिया गठबंधन के सहयोगी दलों में चट्टानी एकता का दावा भी। लेकिन इस दावे भर से निचले स्तर तक पहुंच गई खींचतान और मनमानी की खबरों से जो माहौल बना है, इंडिया गठबंधन के दलों को इस चुनौती से भी अभी पार उतरना है। जिस तरह एनडीए में सबसे बड़ा दल भाजपा है, उसी तरह बिहार में इंडिया का राजद है। भाजपा ने जिस अंदाज में सहयोगी दलों में ऊपर से नीचे तक साझा लड़ाई- साझा चुनौती का संदेश पहुंचाने में कामयाबी हासिल की है, क्या बिहार में राजद यह कर पाएगा? बिहार में सबसे बड़ा जनाधार राजद का है, क्या वह सहयोगी दलों के कार्यकर्ताओं को आश्वस्त कर पाएगा कि उसका वोट उन सीटों पर इंडिया गठबंधन को मिलेगा जहां से उनके उम्मीदवार मैदान में हैं?

इतना ही नहीं, इंडिया के सहयोगी दलों की अपनी- अपनी चुनौतियां भी हैं, जिसे स्वीकार कर उन्हें खुद को साबित करना होगा। कांग्रेस नौ सीटों पर लड़ेगी। बीते विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 70 सीटों पर लड़ी लेकिन जीत 19 पर मिली। बहुमत से कुछ सीटें दूर रह जाने के बाद राजद ने कहा था कि कांग्रेस को ज्यादा सीटें देने से नुकसान हुआ। इस चुनाव में भी कांग्रेस की मांग अधिक सीटों की थी, कम से कम वह 10 सीटें चाहती थी, बंटवारे में उसे नौ मिली हैं। यह उसके लिए एक अवसर है। इस बार अगर वह बेहतर करती है तो बिहार में कांग्रेस की न केवल वापसी होगी, बल्कि भविष्य की राह भी निकलेगी। लेकिन इसके लिए पूरे दमखम और तालमेल से उसे जंग में उतरना होगा।

वाम दलों के हिस्से में पांच सीटें गई हैं। इनमें सबसे अधिक तीन भाकपा माले को मिली हैं। विधानसभा चुनाव में इसका प्रदर्शन अच्छा रहा था। सीपीएम- सीपीआई को भी एक- एक सीट पर लड़ना है। एक समय बिहार के कई अलग- अगल हिस्सों में वाम दलों का बड़ा प्रभाव रहा है। लेकिन जिस तरह पश्चिम बंगाल में नई पीढ़ी तैयार नहीं कर पाने का खामियाजा सीपीएम को भुगतना पड़ा, कमोबेश ऐसी कमजोरी बिहार में भी रही है। अपवाद में दीपंकर भट्टाचार्य का नाम छोड़ दें तो वह दौर लद गए से लगते हैं, जब वाम दलों में एक से बढ़कर एक दिग्गज हुआ करते थे, जिनकी बड़ी पहचान थी और संघर्ष की लंबी यात्रा। यह वाम दलों के लिए बड़ा मौका है कि वह गठबंधन की समग्रता में अपनी अहमियत प्रदर्शित करें।

बहरहाल, बिहार में इंडिया गठबंधन के सहयोगी दलों का अपना- अपना जनाधार रहा है और अगर ये एक होकर लड़ें तो निश्चित ही एनडीए के सामने एक मजबूत चुनौती पेश कर सकेंगे। वैसे कई क्षेत्रों में विरोधाभासी जनाधार को साधने की भी चुनौती इनके सामने होगी।

 

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