लोकसभा के घमासान से पहले अखिलेश को घोसी से मिली सियासी संजीवनी! SP की इस जीत के मायने गहरे हैं h3>
Ghosi By Election- सपा के सुधाकर के सिर सजा ताज, दारा सिंह को मिली हार, जीत पर Akhilesh की प्रतिक्रिया
लखनऊ: समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के लिए घोसी (Ghosi) केवल पूंजी बचाने की लड़ाई नहीं थी। उसके सियासी रणनीति और संभावनाओं के ‘निवेश’ का रिटर्न भी जांचा जाना था। पार्टी ने 2024 के चुनाव के लिए अपनी उम्मीदों का पूरा दारोमदार पीडीए (पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक) कॉर्ड से जोड़ रखा है। ऐसे में पीडीए बहुल सीट पर सवर्ण उम्मीदवार को चेहरा बनाने को लेकर भी अंदर-बाहर सवाल थे। लेकिन, पीडीए संग स्थानीय चेहरे की रणनीति सपा के लिए कारगर साबित हुई। जीत से सपा ने केवल सीट ही नहीं बरकरार रखी है बल्कि, यह संदेश देने में सफल रही कि साथ छोड़ गए पुराने चेहरों के बिना भी वह अपने वोट बेस के विस्तार में सक्षम है।
सपा ने 2022 में 22 हजार से जीता था चुनाव
2022 का चुनाव सपा ने 22 हजार वोट से जीता था। तब मऊ, आजमगढ़ जिले में पार्टी का मोमेंटम बना हुआ था। दारा खुद ओबीसी चेहरा थे और राजभर वोटों की राजनीति करने वाले ओमप्रकाश राजभर गठबंधन का हिस्सा। लेकिन, चुनाव जीतने के बाद महज डेढ़ साल के भीतर ही पहले राजभर ने साथ छोड़ा और दारा सिंह चौहान विधायकी छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए।
इसे गैर-यादव पिछड़ों को जोड़ने की सपा की मुहिम को झटका माना जा रहा था। इसलिए, इसके नतीजे सपा की रणनीति और परसेप्शन दोनों के लिहाज से अहम थे। पार्टी ने सुधाकर सिंह के तौर पर अपने पुराने चेहरे पर दांव लगाया उससे सहानुभूति का लाभ मिला और सवर्ण वोटरों में भी हिस्सेदारी बढ़ी। ‘स्थानीय बनाम बाहरी’ के मुद्दे को भी हवा देना काम कर गया।
गलतियों से सबक, नेतृत्व ने भी लगाया दम
2019 में हुए उपचुनाव में सुधाकर सिंह 1800 से भी कम वोटों से हार गए थे जबकि सपा का सिंबल नामांकन तक पहुंच ही नहीं पाया था। इस बार पार्टी नेतृत्व ने गलतियों से सबक लिया। लखनऊ में बैठकर अपील करने के बजाय अखिलेश यादव मौके पर प्रचार करने गए तो शिवपाल यादव ने पूरे चुनाव पर घोसी में ही कैंप किया।
मैनपुरी की तरह पार्टी के बड़े-छोटे, स्थानीय नेताओं ने मिलकर पसीना बहाया और मतभेद किनारे रखा। मेहनत के चलते मुस्लिम सहित पार्टी के कोर वोटर सपा के साथ मुस्तैद रहे। इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि वहां चुनाव में उतरे दो मुस्लिम चेहरे कुल मिलाकर 4500 वोट पा सके। वहीं, गैर-यादव ओबीसी और सवर्णों के भी सपा को खूब वोट मिले। जबकि, भाजपा की ओर से इन वर्गों की राजनीति करने वाले चेहरे उतारे गए थे।
उम्मीदों को और मिली ताकत
मैनपुरी के बाद घोसी में मिली बड़ी जीत सपा की उम्मीदों को और ताकत देगी। पूर्वांचल के जातीय कुरुक्षेत्र में नामी क्षत्रपों के बिना अलग-अलग वोट समूहों में हिस्सेदारी के जरिए सपा ने यह दिखा दिया है कि 2022 में उसे मिल वोट महज तुक्का नहीं थे। बसपा की गैर-मौजूदगी में दलित वोटरों में सेंधमारी भी सपा के लिए संभावनाओं से भरी हैं। यह एक इशारा भी है कि अगर विपक्ष एकजुट रहा तो भाजपा से चुनौती आसान हो जाएगी। इसलिए, इस नतीजों के बाद विपक्षी एका की बहस और तेज होगी और सपा की इस गठबंधन की अगुआई की दावेदारी भी।
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Ghosi By Election- सपा के सुधाकर के सिर सजा ताज, दारा सिंह को मिली हार, जीत पर Akhilesh की प्रतिक्रिया
2022 का चुनाव सपा ने 22 हजार वोट से जीता था। तब मऊ, आजमगढ़ जिले में पार्टी का मोमेंटम बना हुआ था। दारा खुद ओबीसी चेहरा थे और राजभर वोटों की राजनीति करने वाले ओमप्रकाश राजभर गठबंधन का हिस्सा। लेकिन, चुनाव जीतने के बाद महज डेढ़ साल के भीतर ही पहले राजभर ने साथ छोड़ा और दारा सिंह चौहान विधायकी छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए।
इसे गैर-यादव पिछड़ों को जोड़ने की सपा की मुहिम को झटका माना जा रहा था। इसलिए, इसके नतीजे सपा की रणनीति और परसेप्शन दोनों के लिहाज से अहम थे। पार्टी ने सुधाकर सिंह के तौर पर अपने पुराने चेहरे पर दांव लगाया उससे सहानुभूति का लाभ मिला और सवर्ण वोटरों में भी हिस्सेदारी बढ़ी। ‘स्थानीय बनाम बाहरी’ के मुद्दे को भी हवा देना काम कर गया।
गलतियों से सबक, नेतृत्व ने भी लगाया दम
2019 में हुए उपचुनाव में सुधाकर सिंह 1800 से भी कम वोटों से हार गए थे जबकि सपा का सिंबल नामांकन तक पहुंच ही नहीं पाया था। इस बार पार्टी नेतृत्व ने गलतियों से सबक लिया। लखनऊ में बैठकर अपील करने के बजाय अखिलेश यादव मौके पर प्रचार करने गए तो शिवपाल यादव ने पूरे चुनाव पर घोसी में ही कैंप किया।
मैनपुरी की तरह पार्टी के बड़े-छोटे, स्थानीय नेताओं ने मिलकर पसीना बहाया और मतभेद किनारे रखा। मेहनत के चलते मुस्लिम सहित पार्टी के कोर वोटर सपा के साथ मुस्तैद रहे। इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि वहां चुनाव में उतरे दो मुस्लिम चेहरे कुल मिलाकर 4500 वोट पा सके। वहीं, गैर-यादव ओबीसी और सवर्णों के भी सपा को खूब वोट मिले। जबकि, भाजपा की ओर से इन वर्गों की राजनीति करने वाले चेहरे उतारे गए थे।
उम्मीदों को और मिली ताकत
मैनपुरी के बाद घोसी में मिली बड़ी जीत सपा की उम्मीदों को और ताकत देगी। पूर्वांचल के जातीय कुरुक्षेत्र में नामी क्षत्रपों के बिना अलग-अलग वोट समूहों में हिस्सेदारी के जरिए सपा ने यह दिखा दिया है कि 2022 में उसे मिल वोट महज तुक्का नहीं थे। बसपा की गैर-मौजूदगी में दलित वोटरों में सेंधमारी भी सपा के लिए संभावनाओं से भरी हैं। यह एक इशारा भी है कि अगर विपक्ष एकजुट रहा तो भाजपा से चुनौती आसान हो जाएगी। इसलिए, इस नतीजों के बाद विपक्षी एका की बहस और तेज होगी और सपा की इस गठबंधन की अगुआई की दावेदारी भी।
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