लॉरेंस तक जाने वाले कारतूसों से हमारा लेना-देना नहीं: शूटर जसपाल के पिता बोले- बेटे का नाम गलत लिया, मेरठ में पकड़ी थीं 1975 गोलियां – Meerut News

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लॉरेंस तक जाने वाले कारतूसों से हमारा लेना-देना नहीं:  शूटर जसपाल के पिता बोले- बेटे का नाम गलत लिया, मेरठ में पकड़ी थीं 1975 गोलियां – Meerut News

लॉरेंस तक जाने वाले कारतूसों से हमारा लेना-देना नहीं: शूटर जसपाल के पिता बोले- बेटे का नाम गलत लिया, मेरठ में पकड़ी थीं 1975 गोलियां – Meerut News

‘सक्षम मलिक 4-5 साल पहले हमारे इंस्टीट्यूट में आया। कॉलेज के पास ही रहता था। वो कारतूस कहां से लाया? ये नहीं पता। अंदाजा होता कि ऐसा करेगा तो उसे भगा देते। उसने बेवजह ही हम लोगों का नाम लिया है।’

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ये कहना है नेशनल शूटर जसपाल राणा के पिता नारायण सिंह राणा का। वह देहरादून के इंस्टीट्यूट ऑफ शूटिंग स्पोर्ट्स (RISS) के मालिक हैं। कहा जा रहा है कि मेरठ में जो 1975 कारतूस पकड़े गए हैं, वह उनके इंस्टीट्यूट से ही लाए गए थे। लॉरेंस बिश्नोई गैंग के वेस्ट यूपी के गुर्गों तक कारतूस पहुंचाए जाने थे।

नारायण सिंह राणा के दूसरे बेटे सुभाष राणा के खिलाफ मेरठ STF ने एफआईआर दर्ज कराई है। इसमें 2 और आरोपी हैं, ड्राइवर राशिद अली और नेशनल शूटर सक्षम मलिक।

दरअसल, मेरठ में 4 फरवरी को राशिद 1975 कारतूस के साथ पकड़ा गया। उसने बयान दिया- ये कारतूस देहरादून के इंस्टीट्यूट ऑफ शूटिंग स्पोर्ट्स (RISS) से सुभाष राणा और सक्षम मलिक ने दिए थे। कहा था कि मेरठ लेकर जाना है। तुम्हें एक फोन आएगा, जहां बताएं वहां कारतूस की डिलीवरी कर देना।

इसके बाद STF ने पल्लवपुरम थाने में आर्म्स एक्ट में केस दर्ज किया। उत्तराखंड पुलिस को डिटेल भेजी गई हैं। क्या वाकई में यह कारतूस RISS से निकाले गए? शूटर सुभाष राणा और सक्षम मलिक का क्या कनेक्शन है? देहरादून में क्या जांच चल रही है?

इसे लेकर शूटर जसपाल राणा के पिता नारायण सिंह राणा से दैनिक NEWS4SOCIALएप की टीम ने बात की….

रिपोर्टर : मेरठ में पकड़े गए 1975 कारतूस में आपके इंस्टीट्यूट का नाम आ रहा है? नारायण सिंह : देखिए, हमें मीडिया से ही जानकारी मिली है। हम लोग ये सब काम नहीं करते हैं। मैं यूपी में MLC रह चुका है, उत्तराखंड में मंत्री रहा हूं। रिपोर्टर : हकीकत में क्या हुआ है, आपके एक बेटे सुभाष के खिलाफ FIR हुई है?

नारायण सिंह : एक लड़का है सक्षम। वो यूपी के मुजफ्फरनगर का है, हमारे यहां शूटिंग करता है। नेशनल का अच्छा शूटर है। हमारे यहां 4-5 साल रहा। सक्षम कॉलेज के पास कमरा लेकर रहता था। हमें कभी नहीं लगा कि ऐसा कुछ कर सकता है। मुझे पता नहीं कि उसके संपर्क में कौन शख्स आया, जिससे वो कारतूस लाया। अगर लगता कि ऐसा कर सकता है, तो उसको भगा देते। इसमें सक्षम का ही रोल है, बेवजह ही हम लोगों का नाम लिया जा रहा है।

रिपोर्टर : आप कह रहे कि कारतूस आपके इंस्टीट्यूट से नहीं निकले हैं?

नारायण सिंह : देखिए, जसपाल और सुभाष के पास तो देशभर से बच्चे आते हैं। मगर हमारे इंस्टीट्यूट में तो उसने एम्युनेशन (कारतूस) रखा नहीं। इसका तो खाली शोर मच गया। नहीं पता कहां से गाड़ी बुलाई, किसको दे रहा था। हमें जानकारी नहीं है।

रिपोर्टर : खिलाड़ी कोटे से कारतूस कैसे मिलते हैं?

नारायण सिंह : ये जो खिलाड़ी हैं, इन्हें एक इम्पोर्ट लाइसेंस मिलता है। कारतूस 2 ही तरीके से बाहर से आ सकता है। पहला, नेशनल राइफल एसोसिएशन के जरिए। दूसरा, जो बड़े खिलाड़ी होते हैं, उन्हें व्यक्तिगत रूप से 15 हजार गोलियां लाने का परमिट मिलता है।

नारायण सिंह राणा खुद यूपी सरकार में एमएलसी रहे हैं। उत्तराखंड सरकार में खेल मंत्री भी रहे हैं।

रिपोर्टर : आपके इंस्टीट्यूट में एम्युनेशन कैसे आता है?

नारायण सिंह : हमारे यहां एम्युनेशन (कारतूस) नेशनल राइफल एसोसिएशन से आता है, वो इम्पोर्ट करते हैं। फिर हमारा एक परमिट बनता है, उस परमिट पर हमें कारतूस देते हैं। वो सारा कारतूस हम अपने स्टोर में रखते हैं। यहां थ्री लॉक सिक्योरिटी में रहता है। यहां एक-एक गोली का हिसाब रहता है, क्योंकि उसका रिकॉर्ड हमें डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट को देना होता है।

रिपोर्टर : क्या आपने अपने इंस्टीट्यूट का रिकॉर्ड चेक करवा लिया है?

नारायण सिंह : पूरा-पूरा चेक करवा लिया है। कभी भी चेक करने आ सकते हैं। एक-एक गोली का हिसाब रखते हैं।

रिपोर्टर : कहा जा रहा है कि ये गोलियां लॉरेंस बिश्नोई गैंग को सप्लाई होनी थी?

नारायण सिंह : कुछ मीडिया वाले लिख रहे हैं, मगर आप बताओ, 2 हजार गोलियों की कीमत क्या होती है? मुश्किल से एक लाख रुपए। इतनी तो महीने की तनख्वाह मिलती है, मैं MLC रह चुका हूं। मैं SPG का कमांडो रहा हूं। मुझे पता है कि एक गोली गायब होने की सजा क्या होती है।

रिपोर्टर : इंस्टीट्यूट में कारतूस को लेकर कितनी पाबंदी रखते हैं? नारायण सिंह : हमारे बच्चे भी हमारे ही स्टैंडर्ड पर काम कर रहे हैं, अभी देखिए सुभाष राणा को द्रोणाचार्य पुरस्कार मिला है। यहां डायरेक्टर ऑफ कॉम्पटीशन बना रखा है। हम लोग ऐसा क्यों करेंगे। कैंप में जो फायरिंग होती है, उसके खोखे भी सुरक्षित रख लेते हैं।

खोखे तक को कैंप से बाहर लेकर जाने की परमिशन नहीं है। क्योंकि ये खोखे नेशनल राइफल एसोसिएशन में जमा करने होते हैं, रिकॉर्ड के लिए। इतनी पाबंदियां लगाई हुई हैं। जो व्यक्तिगत रूप से 15 हजार कारतूस मंगवाए जाते हैं, उनके खोखे भी जमा कराने होते हैं। …….

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