लुप्त हो रही पंछियों की कई प्रजाति, यह है इसके पीछे का कारण | bird population increasingly decline climate | Patrika News h3>
आइए जानते हैं कौन-कौन से पक्षी हैं जो लुप्त हो रहे हैं….।
गौरेया
गौरेया एक ऐसी प्रजाति है जो अंटार्कटिका को छोड़कर विश्वभर के हर कोने में पाई जाती है। गौरेया का वैज्ञानिक नाम पारेस डोमेस्टिक है। दुनियाभर में गौरेया को अलग-अलग नामों से जाना जाता है। यह दिखने में सुंदर और छोटी होती है। इनकी लंबाई 15 से 17 सेंटीमीटर तक होती है और इसका वजन 30 से 40 ग्राम तक होता है। यह अपने पंखों की मदद से 25 मील प्रतिघंटा की रफ्तार से उड़ सकती हैं और जरूरत पड़ने पर पानी में तैर भी सकती है। इनकी औसत आयु सीमा 5 से 7 वर्ष तक ही होती है। एक रिसर्च में सामने आया है कि गौरेया की संख्या में पहले से 60 प्रतिशत तक कम हो गई है।
ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (तिलैय्या)
ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (Great Indian bustard) को हिंदी में सोन चिरैया के नाम से जाना जाता है। इसका साइंटिफिक नाम ‘Ardeotis Nigrisips’ है, जो भारत और पाकिस्तान के जंगलों में रहती है। यह राजस्थान का राज्य पक्षी भी है। अब इनकी संख्या भी काफी कम हो गई है। इसकी लंबाई एक मीटर होती है। वजन 10 से 15 किलो होता है। इसके बड़े आकार के कारण इसका काफी शिकार हुआ, यह फूर्ती से नहीं उड़ सकती हैं। बिजली के तारों से भी खतरे के कारण इनकी संख्या कम होती गई। पूरी दुनिया में मात्र 150 ही पक्षी बचे हैं।
लाल सिर वाला गिद्ध
एक दशक में 97 प्रतिशत गिद्ध भी कम हो गए हैं। 1990 के पहले दशक में लगभग 40 लाख गिद्ध भारत में थे, लेकिन अब गिद्धों की कई प्रजातियां लुप्त होने की कगार पर है। यह भारतीय उपमहाद्धीप में पाए जाते हैं। रेड हेड वल्चर को एशिया में गिद्धों का राजा या पांडिचेरी गिद्ध के नाम से भी जाना जाता है। इसकी ऊचाई 76 से 86 सेंटीमीटर तक होती है। इसके पंखों का आकार 2 से 2.6 मीटर तक होता है। इंटरनेशनल यूनियन फार कनजर्वेशन आफ नेचर (आईयूसीएन) ने इसे विलुप्तप्रायः प्रजाति की श्रेणी में रखा है। मध्यप्रदेश में भी गिद्धों के संरक्षण का काम चल रहा है। राजधानी भोपाल में इसके लिए बड़ा सेंटर बनाया गया है।

IMAGE CREDIT: wild life news ब्लैक्सिटन फिश आउल
बड़ा उल्लू या ब्लैक्सिटन फिश आउल का नाम इंग्लैंड के प्रकृतिविद थॉमस ब्लैक्सिटन के नाम पर रखा गया है। इन्होंने इस उल्लू की खोज जापान के होकाइडो में की थी। इसकी शारीरिक संरचना की बात करें तो इसकी लंबाई 25 से 28 इंच होती है। इसकी आंखें पीली होती है। पूरी दुनिया में इसकी आबादी 1000 से 1900 के बीच बताई जाती है। यह सैमल मछलियां, कैटफिश, ट्राउट व कभी-कभी ये मेंढ़क व छोटे जीव का शिकार करता है। केकड़े को भी खाना पंसद करता है।
बत्तख या बेयर की पोचार्ड
बेयर की पोचार्ड बतख की एक प्रजाति है और भारत, चीन, वियतनाम और जापान देश में पाई जाती है। यह दलदली भूमि में रहती है। इनकी कुल आबादी 1,000 से भी कम होने की संभावना है। इसकी लंबाई 40 से 45 सेमी होती है और वजन 850 से 900 ग्राम तक होता है। नर से मादा का आकार छोटा होता है। इसके ऊपरी हिस्से का कलर काला होता है। इसे भी गंभीर रूप से लुप्त प्रायः श्रेणी में रखा गया है।
जलवायु और शहरीकरण हैं प्रमुख कारण
पक्षियों की संख्या कम होने के एक नहीं कई कारण हैं। सभी कारण एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। जलवायु परिवर्तन भी अहम कारण है। इसके साथ ही शहरी विकास के लिए हरियाली को खत्म किया गया और कांक्रीट के जंगल बढ़ा दिए गए। इससे शहरों का तापमान बढ़ने लगा। आबादी, प्रदूषण और शोर के कारण भी पक्षियों को परेशानी होने लगी। फैक्ट्रियों के प्रदूषण ने भी और परेशानी बढ़ाई। यही कारण है कि पक्षी अपना आशियाना कहीं और बनाने लगे।
रेडिएशन भी है कारण
पर्यावरण एवं वन विभाग की एक्सपर्ट टीम ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि मोबाइल कम्यूनिकेशन टावरों से फैलने वाली इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन (EMR) भी पक्षियों की घटती संख्या के लिए जिम्मेदार है। इससे फैलने वाली तरंगों से कई कीट-पतंगों और पक्षियों की संख्या कम हो रही है। यह रेडिएशन मोबाइल, टॉवर, एफएम आदि से ज्यादा होता है।
इंसानों पर भी पड़ेगा असर
पक्षियों की संख्या कम होने पर इंसानों पर भी असर पड़ता है। क्योंकि प्रकृति में हर जीव एक-दूसरे से किसी न किसी तरह से जुड़ा रहता है। पक्षियों की संख्या कम होने से मच्छर, मक्खियां, कीड़े और मकड़ियों की संख्या कम होने की जगह बढ़ने लगी है। जिसका असर इंसानों पर भी पड़ेगा।
भोपाल में है रामसर साइट
कुछ चुनिंदा स्थानों में से मध्यप्रदेश के भोपाल में भी पक्षियों के लिए सबसे महफूज जगह है। यह स्थान भोपाल के बड़े तालाब से लगा है। यहां पक्षी प्रेमी प्रवासी पक्षियों को देखने आते हैं। ऐसे ही स्थान पक्षियों के लिए आरक्षित रखे जाएंगे तो लुप्त होने वाले पक्षियों को बचाया जा सकता है। यहां रूस, साइबेरिया, उज्बेकिस्तान चीन और आर्कटिका के ठंडे स्थानों में रहने वाले पक्षी करीब 12 हजार किमी का सफर तय कर बड़ा तालाब आते हैं। यूरोप से यूरेशियन वेगान तो रूस और मंगोलिया से ब्लैक रेड स्टार्ट और लैसर वाइट थ्रोट जैसे बर्ड्स आते हैं। जबकि इस स्थान पर विसलिंग टील और वूली नेक स्टार्क प्रजाति ने भी यहां स्थाई रूप से अपना आशियाना बना लिया है।
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आइए जानते हैं कौन-कौन से पक्षी हैं जो लुप्त हो रहे हैं….।
गौरेया
गौरेया एक ऐसी प्रजाति है जो अंटार्कटिका को छोड़कर विश्वभर के हर कोने में पाई जाती है। गौरेया का वैज्ञानिक नाम पारेस डोमेस्टिक है। दुनियाभर में गौरेया को अलग-अलग नामों से जाना जाता है। यह दिखने में सुंदर और छोटी होती है। इनकी लंबाई 15 से 17 सेंटीमीटर तक होती है और इसका वजन 30 से 40 ग्राम तक होता है। यह अपने पंखों की मदद से 25 मील प्रतिघंटा की रफ्तार से उड़ सकती हैं और जरूरत पड़ने पर पानी में तैर भी सकती है। इनकी औसत आयु सीमा 5 से 7 वर्ष तक ही होती है। एक रिसर्च में सामने आया है कि गौरेया की संख्या में पहले से 60 प्रतिशत तक कम हो गई है।
ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (तिलैय्या)
ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (Great Indian bustard) को हिंदी में सोन चिरैया के नाम से जाना जाता है। इसका साइंटिफिक नाम ‘Ardeotis Nigrisips’ है, जो भारत और पाकिस्तान के जंगलों में रहती है। यह राजस्थान का राज्य पक्षी भी है। अब इनकी संख्या भी काफी कम हो गई है। इसकी लंबाई एक मीटर होती है। वजन 10 से 15 किलो होता है। इसके बड़े आकार के कारण इसका काफी शिकार हुआ, यह फूर्ती से नहीं उड़ सकती हैं। बिजली के तारों से भी खतरे के कारण इनकी संख्या कम होती गई। पूरी दुनिया में मात्र 150 ही पक्षी बचे हैं।
लाल सिर वाला गिद्ध
एक दशक में 97 प्रतिशत गिद्ध भी कम हो गए हैं। 1990 के पहले दशक में लगभग 40 लाख गिद्ध भारत में थे, लेकिन अब गिद्धों की कई प्रजातियां लुप्त होने की कगार पर है। यह भारतीय उपमहाद्धीप में पाए जाते हैं। रेड हेड वल्चर को एशिया में गिद्धों का राजा या पांडिचेरी गिद्ध के नाम से भी जाना जाता है। इसकी ऊचाई 76 से 86 सेंटीमीटर तक होती है। इसके पंखों का आकार 2 से 2.6 मीटर तक होता है। इंटरनेशनल यूनियन फार कनजर्वेशन आफ नेचर (आईयूसीएन) ने इसे विलुप्तप्रायः प्रजाति की श्रेणी में रखा है। मध्यप्रदेश में भी गिद्धों के संरक्षण का काम चल रहा है। राजधानी भोपाल में इसके लिए बड़ा सेंटर बनाया गया है।
ब्लैक्सिटन फिश आउल
बड़ा उल्लू या ब्लैक्सिटन फिश आउल का नाम इंग्लैंड के प्रकृतिविद थॉमस ब्लैक्सिटन के नाम पर रखा गया है। इन्होंने इस उल्लू की खोज जापान के होकाइडो में की थी। इसकी शारीरिक संरचना की बात करें तो इसकी लंबाई 25 से 28 इंच होती है। इसकी आंखें पीली होती है। पूरी दुनिया में इसकी आबादी 1000 से 1900 के बीच बताई जाती है। यह सैमल मछलियां, कैटफिश, ट्राउट व कभी-कभी ये मेंढ़क व छोटे जीव का शिकार करता है। केकड़े को भी खाना पंसद करता है।
बत्तख या बेयर की पोचार्ड
बेयर की पोचार्ड बतख की एक प्रजाति है और भारत, चीन, वियतनाम और जापान देश में पाई जाती है। यह दलदली भूमि में रहती है। इनकी कुल आबादी 1,000 से भी कम होने की संभावना है। इसकी लंबाई 40 से 45 सेमी होती है और वजन 850 से 900 ग्राम तक होता है। नर से मादा का आकार छोटा होता है। इसके ऊपरी हिस्से का कलर काला होता है। इसे भी गंभीर रूप से लुप्त प्रायः श्रेणी में रखा गया है।
जलवायु और शहरीकरण हैं प्रमुख कारण
पक्षियों की संख्या कम होने के एक नहीं कई कारण हैं। सभी कारण एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। जलवायु परिवर्तन भी अहम कारण है। इसके साथ ही शहरी विकास के लिए हरियाली को खत्म किया गया और कांक्रीट के जंगल बढ़ा दिए गए। इससे शहरों का तापमान बढ़ने लगा। आबादी, प्रदूषण और शोर के कारण भी पक्षियों को परेशानी होने लगी। फैक्ट्रियों के प्रदूषण ने भी और परेशानी बढ़ाई। यही कारण है कि पक्षी अपना आशियाना कहीं और बनाने लगे।
रेडिएशन भी है कारण
पर्यावरण एवं वन विभाग की एक्सपर्ट टीम ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि मोबाइल कम्यूनिकेशन टावरों से फैलने वाली इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन (EMR) भी पक्षियों की घटती संख्या के लिए जिम्मेदार है। इससे फैलने वाली तरंगों से कई कीट-पतंगों और पक्षियों की संख्या कम हो रही है। यह रेडिएशन मोबाइल, टॉवर, एफएम आदि से ज्यादा होता है।
इंसानों पर भी पड़ेगा असर
पक्षियों की संख्या कम होने पर इंसानों पर भी असर पड़ता है। क्योंकि प्रकृति में हर जीव एक-दूसरे से किसी न किसी तरह से जुड़ा रहता है। पक्षियों की संख्या कम होने से मच्छर, मक्खियां, कीड़े और मकड़ियों की संख्या कम होने की जगह बढ़ने लगी है। जिसका असर इंसानों पर भी पड़ेगा।
भोपाल में है रामसर साइट
कुछ चुनिंदा स्थानों में से मध्यप्रदेश के भोपाल में भी पक्षियों के लिए सबसे महफूज जगह है। यह स्थान भोपाल के बड़े तालाब से लगा है। यहां पक्षी प्रेमी प्रवासी पक्षियों को देखने आते हैं। ऐसे ही स्थान पक्षियों के लिए आरक्षित रखे जाएंगे तो लुप्त होने वाले पक्षियों को बचाया जा सकता है। यहां रूस, साइबेरिया, उज्बेकिस्तान चीन और आर्कटिका के ठंडे स्थानों में रहने वाले पक्षी करीब 12 हजार किमी का सफर तय कर बड़ा तालाब आते हैं। यूरोप से यूरेशियन वेगान तो रूस और मंगोलिया से ब्लैक रेड स्टार्ट और लैसर वाइट थ्रोट जैसे बर्ड्स आते हैं। जबकि इस स्थान पर विसलिंग टील और वूली नेक स्टार्क प्रजाति ने भी यहां स्थाई रूप से अपना आशियाना बना लिया है।