लीडरशिप बिना कैसा नैरेटिव? साथ न आकर भी कांग्रेस को बड़ी सीख दे गए प्रशांत किशोर h3>
बीते कई दिनों से यह शोर था कि कांग्रेस को प्रशांत किशोर मिल सकते हैं, लेकिन मंगलवार को यह खबर आई कि दोनों की राह एक नहीं होगी। पहले कांग्रेस के नेता रणदीप सुरजेवाला ने बताया कि प्रशांत किशोर ने कांग्रेस में आने के प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया है तो कुछ देर बाद ही खुद पीके का ट्वीट आ गया। उन्होंने कांग्रेस के ऑफर को ठुकराने की बात तो कही ही, इसके साथ ही पार्टी को अहम संदेश भी दे दिया कि आखिर उसके लिए जरूरी क्या है। प्रशांत किशोर ने ट्वीट किया, ‘मैंने कांग्रेस के ऑफर को खारिज कर दिया है, जिसमें मुझे एम्पावर्ड एक्शन ग्रुप का हिस्सा बनने और चुनाव की जिम्मेदारी संभालने के लिए कहा गया था।’
इन शब्दों में उन्होंने बताया कि कांग्रेस से उन्हें क्या जिम्मेदारी मिल रही थी और उन्होंने उसे खारिज कर दिया है। इसके बाद जो उन्होंने लिखा वह सबसे अहम है। उन्होंने कांग्रेस को सुझाव देते हुए लिखा, ‘मेरी राय है कि कांग्रेस को मुझसे ज्यादा लीडरशिप और सामूहिक इच्छाशक्ति की जरूरत है ताकि संगठन में गहरे तक घुसी खामियों को दूर कर व्यवस्थागत परिवर्तन किया जा सके।’ इस तरह प्रशांत किशोर ने एक ही पंक्ति में कांग्रेस की दो मूलभूत समस्याओं को उकेर दिया और उसके सामने बदलाव का तरीका भी रख दिया। हालांकि कांग्रेस के नेता खुद भी इन कमियों को स्वीकार करते रहे हैं, लेकिन बदलाव को लेकर एक हिचक बनी रही है।
मोदी से ममता तक बड़े चेहरों के लिए कारगर रहे हैं पीके
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प्रशांत किशोर का इशारा साफ था कि बिना लीडरशिप के वह भी कांग्रेस के लिए बहुत कुछ करने की स्थिति में नहीं हैं। मुझसे ज्यादा लीडरशिप की जरूरत है कि बात कहकर उन्होंने इसकी ओर इशारा भी कर दिया है। दरअसल प्रशांत किशोर के ट्रैक रिकॉर्ड को भी देखें तो पीएम नरेंद्र मोदी, नीतीश कुमार, कैप्टन अमरिंदर सिंह, जगन मोहन रेड्डी से लेकर ममता बनर्जी तक अब तक जितने लोगों के लिए उन्होंने काम किया है, सभी अपने राज्य में बड़े चेहरे रहे हैं। प्रशांत किशोर ने इन नेताओं के लिए एक नैरेटिव जरूर तैयार करने का काम किया था, लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि इन नेताओं की भी अपनी छवि थी।
I declined the generous offer of #congress to join the party as part of the EAG & take responsibility for the elections.
In my humble opinion, more than me the party needs leadership and collective will to fix the deep rooted structural problems through transformational reforms.
— Prashant Kishor (@PrashantKishor) April 26, 2022
2017 है उदाहरण, कांग्रेस की मदद नहीं कर पाए थे पीके
कांग्रेस की समस्या को लेकर हम एक उदाहरण भी देख सकते हैं। 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस ने पीके की सेवाएं ली थीं, लेकिन वह कामयाब नहीं हो सकी थी और सपा के साथ मिलकर भी 100 सीटों पर लड़ने के बाद 7 सीटें ही मिल पाई थीं। साफ है कि कांग्रेस को भले ही पीके ने खाट पर चर्चा, ब्राह्मण चेहरा जैसे नैरेटिव देने की कोशिश की थी, लेकिन लीडरशिप की कमी, सामूहिक नेतृत्व में संघर्ष और कार्यकर्ताओं का मोबिलाइजेशन न होने के चलते सब धरा रह गया। ऐसे में पीके की सलाह कारगर प्रतीत होती है कि उनसे ज्यादा कांग्रेस को लीडरशिप और सामूहिक इच्छाशक्ति की जरूरत है।
बीते कई दिनों से यह शोर था कि कांग्रेस को प्रशांत किशोर मिल सकते हैं, लेकिन मंगलवार को यह खबर आई कि दोनों की राह एक नहीं होगी। पहले कांग्रेस के नेता रणदीप सुरजेवाला ने बताया कि प्रशांत किशोर ने कांग्रेस में आने के प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया है तो कुछ देर बाद ही खुद पीके का ट्वीट आ गया। उन्होंने कांग्रेस के ऑफर को ठुकराने की बात तो कही ही, इसके साथ ही पार्टी को अहम संदेश भी दे दिया कि आखिर उसके लिए जरूरी क्या है। प्रशांत किशोर ने ट्वीट किया, ‘मैंने कांग्रेस के ऑफर को खारिज कर दिया है, जिसमें मुझे एम्पावर्ड एक्शन ग्रुप का हिस्सा बनने और चुनाव की जिम्मेदारी संभालने के लिए कहा गया था।’
इन शब्दों में उन्होंने बताया कि कांग्रेस से उन्हें क्या जिम्मेदारी मिल रही थी और उन्होंने उसे खारिज कर दिया है। इसके बाद जो उन्होंने लिखा वह सबसे अहम है। उन्होंने कांग्रेस को सुझाव देते हुए लिखा, ‘मेरी राय है कि कांग्रेस को मुझसे ज्यादा लीडरशिप और सामूहिक इच्छाशक्ति की जरूरत है ताकि संगठन में गहरे तक घुसी खामियों को दूर कर व्यवस्थागत परिवर्तन किया जा सके।’ इस तरह प्रशांत किशोर ने एक ही पंक्ति में कांग्रेस की दो मूलभूत समस्याओं को उकेर दिया और उसके सामने बदलाव का तरीका भी रख दिया। हालांकि कांग्रेस के नेता खुद भी इन कमियों को स्वीकार करते रहे हैं, लेकिन बदलाव को लेकर एक हिचक बनी रही है।
मोदी से ममता तक बड़े चेहरों के लिए कारगर रहे हैं पीके
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प्रशांत किशोर का इशारा साफ था कि बिना लीडरशिप के वह भी कांग्रेस के लिए बहुत कुछ करने की स्थिति में नहीं हैं। मुझसे ज्यादा लीडरशिप की जरूरत है कि बात कहकर उन्होंने इसकी ओर इशारा भी कर दिया है। दरअसल प्रशांत किशोर के ट्रैक रिकॉर्ड को भी देखें तो पीएम नरेंद्र मोदी, नीतीश कुमार, कैप्टन अमरिंदर सिंह, जगन मोहन रेड्डी से लेकर ममता बनर्जी तक अब तक जितने लोगों के लिए उन्होंने काम किया है, सभी अपने राज्य में बड़े चेहरे रहे हैं। प्रशांत किशोर ने इन नेताओं के लिए एक नैरेटिव जरूर तैयार करने का काम किया था, लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि इन नेताओं की भी अपनी छवि थी।
I declined the generous offer of #congress to join the party as part of the EAG & take responsibility for the elections.
In my humble opinion, more than me the party needs leadership and collective will to fix the deep rooted structural problems through transformational reforms.
— Prashant Kishor (@PrashantKishor) April 26, 2022
2017 है उदाहरण, कांग्रेस की मदद नहीं कर पाए थे पीके
कांग्रेस की समस्या को लेकर हम एक उदाहरण भी देख सकते हैं। 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस ने पीके की सेवाएं ली थीं, लेकिन वह कामयाब नहीं हो सकी थी और सपा के साथ मिलकर भी 100 सीटों पर लड़ने के बाद 7 सीटें ही मिल पाई थीं। साफ है कि कांग्रेस को भले ही पीके ने खाट पर चर्चा, ब्राह्मण चेहरा जैसे नैरेटिव देने की कोशिश की थी, लेकिन लीडरशिप की कमी, सामूहिक नेतृत्व में संघर्ष और कार्यकर्ताओं का मोबिलाइजेशन न होने के चलते सब धरा रह गया। ऐसे में पीके की सलाह कारगर प्रतीत होती है कि उनसे ज्यादा कांग्रेस को लीडरशिप और सामूहिक इच्छाशक्ति की जरूरत है।