लालू यादव की पार्टी पर प्रशांत किशोर का ‘तुक्का वार’, जानिए 2020 चुनाव से दबी आ रही अंदर की खबर h3>
पटना: जन सुराज के संयोजक प्रशांत किशोर इन दिनों अपने एक बयान को लेकर चर्चा में हैं। अपने बयान के जरिए उन्होंने यह साबित करने की कोशिश की कि राष्ट्रीय जनता दल (RJD) कोई बड़ी पार्टी नहीं है। इस तरह की पार्टियां देश भर में काफी है। प्रशांत किशोर के इस बयानबाजी का मकसद चाहे जो हो पर बगैर नाम लिए यह एक तरह से बीजेपी के लिए बैटिंग करने जैसा है। हालंकि इस तरह के आरोप प्रशांत किशोर पर लगते रहे हैं। बकौल नीतीश कुमार भी यह कहा गया था कि अमित शाह के कहने पर प्रशांत किशोर को जेडीयू के संगठन में बड़ा पद दिया गया।
ऐसा क्या कहा पीके ने?
चुनावी रणनीतिकार और जन सुराज के संयोजक प्रशांत किशोर ने आरजेडी को यह बताकर छोटा कहने की कोशिश की है कि लोकसभा के 543 सांसदों में से आरजेडी के जीरो सांसद हैं। कई राज्यों में प्रभावी पार्टियों का अध्ययन करेंगे तो पता चलेगा कि राजद जैसी पार्टियों की लंबी फेहरिस्त है। पीके ने कहा कि 2020 के विधानसभा चुनाव में कुछ परिस्थितियां ऐसी बन गईं कि आरजेडी 20-30 सीटें ज्यादा मिल गईं। इसका मतलब ये नहीं हो जाता है कि आरजेडी बहुत बड़ी राजनैतिक ताकत है। अगर बिहार में आरजेडी इतनी ही ताकतवर होती तो उनके लोकसभा में सांसदों की संख्या शून्य नहीं होती।
बिहार विधान सभा चुनाव 2020 और आरजेडी
पीके का यह कहना कि राजद जो राज्य की पहले नंबर की पार्टी बनी वह कुछ विशेष परिस्थिति के कारण बनी। यह सही है। तीन विशेष स्थितियों के कारण तेजस्वी नंबर वन पार्टी बने।
1. नीतीश कुमार के खिलाफ जनमानस में आक्रोश
2. भाजपा की आत्मघाती रणनीति जिसके तहत चिराग अकेले दम लड़े।
3. 15 साल के शासन में भी एनडीए लालू प्रसाद के एम वाई समीकरण को अपनी तरफ मोड़ नहीं पाए।
तब यह कहा भी जा रहा था कि लालू यादव की विरासत संभालने में तेजस्वी सक्षम होंगें या नहीं यह चुनाव एक तरह से लिटमस टेस्ट होगा। परिणाम जब आए तो राजद के राजनीतिक सफर और लालू यादव की विरासत को आगे ले जाने की योग्यता को साबित भी किया और राज्य की सबसे बड़ी पार्टी बनी भी। यहां तक कि लालू प्रसाद के वोट समीकरण को साध कर अपनी राजनीतिक और रणनीतिक समर्थता का इजहार कर डाला।
पर इस समर्थता को लेकर पीके ने जिस विशेष परिस्थिति की ओर इशारा किया। उसका खुलासा नहीं किया। यह सच है कि तेजस्वी यादव के नेतृत्व में राजद का नंबर वन पार्टी बनने के पीछे भाजपा की रणनीति और चिराग पासवान का अकेले चुनाव लड़ना जिम्मेवार है। भाजपा ने चिराग पासवान को जिस तरह से खड़ा करा कर जदयू की कई सीटें हरा दी। अगर कुछ और सीट जीत जाती तो राजद अकेले दम पर सरकार बना लेती। उस चुनाव को लेकर विश्लेषकों का यह नजरिया था कि अगर यह चुनाव लोजपा,भाजपा और जदयू मिल कर लड़ती तो 200 से ज्यादा सीट सीटें जीतती। और राजद के आगामी होप पर भी शायद विराम लग जाता। भाजपा के इस आत्मघाती कदम ने राजद को संजीवनी दी।
लोकसभा चुनाव 2024 के मदद नजर इस बयान का अर्थ?
लोकसभा चुनाव के संदर्भ में प्रशांत किशोर का यह बयान कहीं न कहीं प्रदेश भाजपा के लिए फायदा पहुंचाने वाला माना जा रहा है। राजनीतिक विश्लेषक मान ही रहे हैं कि 2024 चुनाव के पहले जदयू को बिखराव का सामना करना पड़ेगा। ऐसे में तो भाजपा और राजद दो प्रमुख पार्टियां रहेगी। ऐसे में जन सुराज यात्रा के दौरान जब पीके राजद को बड़ी पार्टी नहीं मानती है जनता के बीच समग्रता में भाजपा के लिए एक बड़ा संदेश जाएगा और यह खास कर बिहार में भाजपा के लिए काफी लाभकारी साबित होगा।
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ऐसा क्या कहा पीके ने?
चुनावी रणनीतिकार और जन सुराज के संयोजक प्रशांत किशोर ने आरजेडी को यह बताकर छोटा कहने की कोशिश की है कि लोकसभा के 543 सांसदों में से आरजेडी के जीरो सांसद हैं। कई राज्यों में प्रभावी पार्टियों का अध्ययन करेंगे तो पता चलेगा कि राजद जैसी पार्टियों की लंबी फेहरिस्त है। पीके ने कहा कि 2020 के विधानसभा चुनाव में कुछ परिस्थितियां ऐसी बन गईं कि आरजेडी 20-30 सीटें ज्यादा मिल गईं। इसका मतलब ये नहीं हो जाता है कि आरजेडी बहुत बड़ी राजनैतिक ताकत है। अगर बिहार में आरजेडी इतनी ही ताकतवर होती तो उनके लोकसभा में सांसदों की संख्या शून्य नहीं होती।
बिहार विधान सभा चुनाव 2020 और आरजेडी
पीके का यह कहना कि राजद जो राज्य की पहले नंबर की पार्टी बनी वह कुछ विशेष परिस्थिति के कारण बनी। यह सही है। तीन विशेष स्थितियों के कारण तेजस्वी नंबर वन पार्टी बने।
1. नीतीश कुमार के खिलाफ जनमानस में आक्रोश
2. भाजपा की आत्मघाती रणनीति जिसके तहत चिराग अकेले दम लड़े।
3. 15 साल के शासन में भी एनडीए लालू प्रसाद के एम वाई समीकरण को अपनी तरफ मोड़ नहीं पाए।
तब यह कहा भी जा रहा था कि लालू यादव की विरासत संभालने में तेजस्वी सक्षम होंगें या नहीं यह चुनाव एक तरह से लिटमस टेस्ट होगा। परिणाम जब आए तो राजद के राजनीतिक सफर और लालू यादव की विरासत को आगे ले जाने की योग्यता को साबित भी किया और राज्य की सबसे बड़ी पार्टी बनी भी। यहां तक कि लालू प्रसाद के वोट समीकरण को साध कर अपनी राजनीतिक और रणनीतिक समर्थता का इजहार कर डाला।
पर इस समर्थता को लेकर पीके ने जिस विशेष परिस्थिति की ओर इशारा किया। उसका खुलासा नहीं किया। यह सच है कि तेजस्वी यादव के नेतृत्व में राजद का नंबर वन पार्टी बनने के पीछे भाजपा की रणनीति और चिराग पासवान का अकेले चुनाव लड़ना जिम्मेवार है। भाजपा ने चिराग पासवान को जिस तरह से खड़ा करा कर जदयू की कई सीटें हरा दी। अगर कुछ और सीट जीत जाती तो राजद अकेले दम पर सरकार बना लेती। उस चुनाव को लेकर विश्लेषकों का यह नजरिया था कि अगर यह चुनाव लोजपा,भाजपा और जदयू मिल कर लड़ती तो 200 से ज्यादा सीट सीटें जीतती। और राजद के आगामी होप पर भी शायद विराम लग जाता। भाजपा के इस आत्मघाती कदम ने राजद को संजीवनी दी।
लोकसभा चुनाव 2024 के मदद नजर इस बयान का अर्थ?
लोकसभा चुनाव के संदर्भ में प्रशांत किशोर का यह बयान कहीं न कहीं प्रदेश भाजपा के लिए फायदा पहुंचाने वाला माना जा रहा है। राजनीतिक विश्लेषक मान ही रहे हैं कि 2024 चुनाव के पहले जदयू को बिखराव का सामना करना पड़ेगा। ऐसे में तो भाजपा और राजद दो प्रमुख पार्टियां रहेगी। ऐसे में जन सुराज यात्रा के दौरान जब पीके राजद को बड़ी पार्टी नहीं मानती है जनता के बीच समग्रता में भाजपा के लिए एक बड़ा संदेश जाएगा और यह खास कर बिहार में भाजपा के लिए काफी लाभकारी साबित होगा।