लकड़ी आधारित दाह संस्कार की बजाय इलेक्ट्रिकऔर पीएनजी क्रिमेटोरियम बनें: एनजीटी

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लकड़ी आधारित दाह संस्कार की बजाय इलेक्ट्रिकऔर पीएनजी क्रिमेटोरियम बनें: एनजीटी

लकड़ी आधारित दाह संस्कार की बजाय इलेक्ट्रिकऔर पीएनजी क्रिमेटोरियम बनें: एनजीटी

नई दिल्ली: रिहायशी इलाकों में स्थित श्मशान गृहों (क्रिमेटोरियम) में लकड़ी आधारित दाह संस्कारों से वहां की वायु पर जो दुष्प्रभाव पड़ता है, उसके मद्देनजर नैशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल (एनजीटी) ने एक अहम आदेश पारित किया है। ट्रिब्यूनल ने दिल्ली, यूपी समेत सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वे शवदाह गृहों में लकड़ी आधारित क्रियाकर्म की बजाय इलेक्ट्रिक/पीएनजी के जरिए दाह संस्कार का विकल्प देने पर गंभीरता से काम करें।

लोगों को पर्यावरण अनुकूल व्यवहार करना चाहिए- एनजीटी
ट्रिब्यूनल ने आदेश पारित करते हुए पर्यावरण हित के साथ क्रियाकर्म से जुड़ी धार्मिक मान्यताओं का भी पूरा खयाल रखा। साफ किया कि प्राधिकरण का इरादा किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का नहीं है। एनजीटी अध्यक्ष जस्टिस आदर्श कुमार गोयल की बेंच ने कहा कि वह जानते हैं कि धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, आग के जरिए दाह संस्कार के तरीके को पवित्र माना गया है। हालांकि, आज वायु प्रदूषण की जो स्थिति है और लकड़ी आधारित दाह संस्कार से इसपर जो असर पड़ रहा है, उसे देखते हुए जरूरी है कि लोगों को पर्यावरण के अनुकूल उपायों को अपनाने के लिए शिक्षित और प्रेरित किया जाए।

एनजीटी ने जारी किए निर्देश
एनजीटी ने इस मुद्दे पर पिछले साल 25 मई को ही सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए निर्देश जारी किए थे। तब कोरोना के प्रकोप के चलते हर जगह शवों के ढेर लग रहे थे और उनके निपटारे का मुद्दा प्रशासन और पर्यावरण, दोनों के लिए गंभीर चुनौती पैदा कर रहा था। उस दौरान एनजीटी ने देशभर की राज्य और केंद्र शासित प्रदेश सरकारों को आदेश दिया था कि वे दाह संस्कार से प्रदूषण को रोकने के लिए जरूरी कदम उठाएं। इसके लिए गैस जैसे विकल्पों का इस्तेमाल करें और लोगों को भी दाह संस्कार के लिए पर्यावरण अनुकूल उपायों को अपनाने के लिए सजग और प्रोत्साहित करें। उसी आदेश का जिक्र करते हुए ट्राइब्यूनल ने अब निर्देश दिया है कि शुरुआत के लिए लकड़ी आधारित क्रीमेटोरियम की बजाए इलेक्ट्रिक/पीएनजी क्रीमेटोरियम को एक विकल्प के तौर पर स्थापित किया जा सकता है।

अधिकारियों की निष्क्रियता से नाखुश एनजीटी
गाजियाबाद, इंदिरापुरम इलाके से जुड़े जिस मामले में यह आदेश पारित किया गया, वहां के संबंध में जो रिपोर्ट मिली, उसे देखकर ट्राइब्यूनल ने कहा कि इससे जाहिर है कि इस मुद्दे पर गंभीरता से कोशिशें नहीं हुईं। एनजीटी ने संबंधित प्राधिकारियों को निर्देश दिया कि वे लकड़ी आधारित श्मशान घाटों के साथ इलेक्ट्रिक/पीएनजी शवदाह गृहों की व्यवहार्यता का पता लगाएं, जो पर्यावरण के अनुकूल होने के साथ उन लोगों के लिए मददगार भी हों, जिनके लिए लकड़ी आधारित अंतिम संस्कार में भारी खर्च को उठाना मुश्किल होता है। ट्राइब्यूनल ने कहा कि इस पहलू पर संबंधित सभी राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों के अधिकारी विचार करेंगे।

कैसे उठा मुद्दा
एक डिवेलेपर ने एनजीटी में याचिका दाखिल कर इंदिरापुरम, गाजियाबाद के शक्ति खंड 4 में संचालित श्मशान घाट में दाह संस्कार के दौरान धुएं और धूल के कारण वायु प्रदूषण से बचाए जाने की गुहार लगाई। ट्राइब्यूनल ने 15 दिसंबर 2021 में एक संयुक्त समिति बनाई। इसमें सीपीसीबी, राज्य के पल्यूशन कंट्रोल बोर्ड, गौतम बुद्ध नगर के डीएम, जीडीए और जीएमसी को शामिल किया। उन्हें तथ्यों का पता लगाने, सुधारात्मक काम करने और पिछले निर्देशों के हिसाब से कार्रवाई की रिपोर्ट दाखिल करने के लिए कहा गया। संबंधिति समिति की रिपोर्ट देखने के बाद ट्रिब्यूनल ने कहा कि साफ है कि इलाका घनी आबादी वाला है और दाह संस्कार के दौरान वहां वायु प्रदूषण होता है। गौर किया प्रशासन 42 लाख रुपये की लागत से अतिरिक्त चिताओं के लिए व्यवस्था की योजना बना रहा है और एक दाह संस्कार में 350 से 450 किलोग्राम लकड़ी खुले में जलाई जाती है।

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