रिटेल इन्वेस्टर्स के लिए प्रेरणा थे बिग बुल h3>
मोतीलाल ओसवाल
राकेश झुनझुनवाला ना सिर्फ स्टॉक मार्केट के राजा थे, बल्कि मैं तो कहूंगा कि वह बिगेस्ट बुल, भारत के बहुत बड़े ऐडवोकेट और एक बेहद उम्दा इंसान भी थे। स्टॉक मार्केट को एक अलग ऊंचाई देने में उनकी बड़ी भूमिका थी। स्टॉक मार्केट में बहुत सारे लोग उन्हें देखकर आए। वेल्थ क्रिएशन के वह बहुत बड़े उदाहरण थे। उन्होंने खुद तो पैसा बनाया ही, दूसरों को भी पैसा बनाने के लिए उत्साहित किया। राकेश झुनझुनवाला को मैं पिछले 35 सालों से जानता हूं। हमारा और उनका करियर लगभग साथ ही शुरू हुआ था। मैंने भी सीए (चार्टर्ड एकाउंटेंट) किया, उन्होंने भी सीए किया।
छुपाकर चलने में नहीं था यकीन
तब भारत में एक ही सबसे बड़ा स्टॉक मार्केट था- बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज। उसमें ट्रेडिंग हॉल था, जिसे हम ट्रेडिंग रिंग बोलते थे। वहां पर हम लोग रोजाना ही मिला करते। राकेश के इर्द-गिर्द शुरू से ही लोग रहा करते थे क्योंकि उनका एक कन्विक्शन था, एक नॉलेज बेस था। इसलिए लोग उन्हें काफी इज्जत देते थे। राकेश की खास बात थी कि वह हमेशा अपने दिल से बात करते। उन्होंने कभी कुछ भी नहीं छुपाया। आमतौर पर जब लोग कुछ स्टॉक वगैरह खरीदते हैं तो उसके बारे में दूसरों को नहीं बताते। लेकिन राकेश ऐसे नहीं थे। वह दिल के बहुत खुले थे, उनमें बनावट जरा भी नहीं थी। उनका मानना था कि स्टॉक मार्केट से सबका पैसा बनना चाहिए।
स्टॉक रिंग में हम ना मिल पाएं तो नीचे दलाल स्ट्रीट पर मिलते। कई बार राकेश ऑफिस ही आ जाते। जब भी मिलते बस स्टॉक्स की बातें होतीं। और कुछ नहीं। हम कहीं भी मिलें, हाय-हेलो की जगह एक ही सवाल होता- क्या लगता है मार्केट का? उसी बात से बातें निकलतीं कि नहीं-नहीं, ऐसा खराब है, वैसा खराब है। उनका आउटलुक हमेशा पॉजिटिव रहा। जो भी बोलते, अपने ज्ञान के हिसाब से लोगों को बहुत अच्छे से समझाते थे।
राकेश ऐसे इंसान थे, जिनकी एक रेयर स्किल थी। वह आदमी भी रेयर ही थे। उनकी कंपनी का नाम भी रेयर है। उनकी रेयर स्किल थी- कंपनी, मार्केट और इकॉनमी के बारे में समझना और फिर सब मिलाकर हिसाब लगाना कि कंपनी को स्टॉक मार्केट में किस दाम में और कब लेना चाहिए। यह स्किल बहुत कम लोगों में होती है। आमतौर पर जो एनालिस्ट होता है, उसको कंपनी के बारे में तो पता होता है लेकिन वह स्टॉक मार्केट को एनालाइज नहीं कर पाता। मार्केट कहां, कब, कैसे और क्यों जाएगा, इसका उसे अंदाजा नहीं होता। या इकॉनमी से उसका कोई लिंक नहीं होता। राकेश की पहचान इसलिए अलग हटकर थी।
राकेश का कन्विक्शन ऐसा था कि खुलकर सबको बता देते कि मैंने ये शेयर लिया आज, तू भी ले ले। 1991-92 के बाद हिंदुस्तान में भी बहुत सारे फंड इन्वेस्टर्स आए। राकेश झुनझुनवाला एक तरह से उन सबके सलाहकार भी थे। आप उन्हें पसंद ना करें, फिर भी उन्हें इग्नोर नहीं कर सकते थे। कमरे में बैठकर सोचा करते कि क्या होने वाला है, फिर काफी रिसर्च करते। उनमें लोगों को सुनने की भी अच्छी क्षमता थी। वह जानते थे कि जब आप सुनते हैं, तभी आपको विषय के बारे में पता चलता है। फिर उसी प्रतिबद्धता और पैशन के साथ वह शेयर होल्ड भी करते थे।
राकेश जब भी मिलते, मैं पूछता- क्या लगता है राकेश? वह बोलते- तेजी, तेजी, तेजी। कहते, घर बेचकर शेयर लो, बंगला बेचकर शेयर लो, लेकिन शेयर कभी बेचना नहीं। स्टॉक मार्केट में आमतौर पर बोलते हैं कि तेजी हमेशा परमानेंट है, मंदी टेंपरेरी है। तो राकेश भी हमेशा यही बोलते कि तेजी करके बहुत पैसा बना सकते हैं। उन्होंने और उनसे जुड़े दूसरे लोगों ने भी पैसा बनाया। शेयर बाजार में उनके पीछे बहुत सारे रिटेल इन्वेस्टर्स, बहुत सारे नए लोग आए कि राकेश कर सकते हैं तो हम क्यों नहीं कर सकते!
राकेश अपने आप में मार्केट मूवर थे। अगर उन्होंने कोई स्टॉक खरीद लिया तो अपने आप वह बढ़ जाता था। उन पर लोगों का एक तरह से अंधा विश्वास था। लेकिन इस भरोसे के पीछे उनकी रिसर्च, प्रतिबद्धता और समझ होती थी। उनकी इसी चीज से बहुत सारे लोगों ने खूब पैसा बनाया। स्टॉक मार्केट में किसी एक को वेल्थ क्रिएशन का शहंशाह बोलना हो तो मैं राकेश का नाम लूंगा। देश के लिए वह बेहद आशावान थे। हमेशा कहते कि इंडिया के दिन हैं, अगले दस-बीस-तीस साल में बहुत प्रोग्रेस करेगा। वह बहुत बिंदास और खुलकर बोलते, लेकिन उनकी बात का कोई बुरा नहीं मानता था। लोगों को लगता कि थोड़ा रफ बोल रहा है, लेकिन उनका अपना एक जज्बा था, अपना एक तरीका था लोगों से शेयर करने का। वह दिल से बात करते थे, इसलिए लोगों के दिलों पर राज भी करते थे।
चैरिटी में दे दी प्रॉपर्टी
राकेश हम सबको बहुत कुछ सिखाकर गए हैं, अपनी एक लेगेसी छोड़कर गए हैं। यहां पर मैं एक चीज देखता हूं कि स्टॉक मार्केट में कि यही वो जगह है जहां आप सीख सकते हैं, कमा सकते हैं और रिटर्न भी पा सकते हैं। मगर राकेश ने अपनी संपत्ति का एक बड़ा हिस्सा चैरिटी में दे दिया। यह एक मिसाल है। हिंदुस्तान में बहुत कम लोग ऐसे हुए हैं ,जिन्होंने बोला है कि मेरी वेल्थ का पचीस, पैंतीस टका या वन थर्ड चैरिटी के लिए है। यह उनकी शख्सियत का एक और पहलू है। वह बहुत सारी कंपनियों के बोर्ड में भी रहे। बहुत सारी कंपनियां प्रमोट भी कीं। हमेशा गाइडेंस के लिए अवेलेबल रहते थे। मुझे लगता है कि उनके जाने से स्टॉक मार्केट और देश को भी एक बड़ा नुकसान हुआ है। इसकी भरपाई बहुत मुश्किल है।
(लेखक मोतीलाल ओसवाल फाइनैंशल सर्विसेज के प्रबंध निदेशक हैं)
मोतीलाल ओसवाल
राकेश झुनझुनवाला ना सिर्फ स्टॉक मार्केट के राजा थे, बल्कि मैं तो कहूंगा कि वह बिगेस्ट बुल, भारत के बहुत बड़े ऐडवोकेट और एक बेहद उम्दा इंसान भी थे। स्टॉक मार्केट को एक अलग ऊंचाई देने में उनकी बड़ी भूमिका थी। स्टॉक मार्केट में बहुत सारे लोग उन्हें देखकर आए। वेल्थ क्रिएशन के वह बहुत बड़े उदाहरण थे। उन्होंने खुद तो पैसा बनाया ही, दूसरों को भी पैसा बनाने के लिए उत्साहित किया। राकेश झुनझुनवाला को मैं पिछले 35 सालों से जानता हूं। हमारा और उनका करियर लगभग साथ ही शुरू हुआ था। मैंने भी सीए (चार्टर्ड एकाउंटेंट) किया, उन्होंने भी सीए किया।
छुपाकर चलने में नहीं था यकीन
तब भारत में एक ही सबसे बड़ा स्टॉक मार्केट था- बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज। उसमें ट्रेडिंग हॉल था, जिसे हम ट्रेडिंग रिंग बोलते थे। वहां पर हम लोग रोजाना ही मिला करते। राकेश के इर्द-गिर्द शुरू से ही लोग रहा करते थे क्योंकि उनका एक कन्विक्शन था, एक नॉलेज बेस था। इसलिए लोग उन्हें काफी इज्जत देते थे। राकेश की खास बात थी कि वह हमेशा अपने दिल से बात करते। उन्होंने कभी कुछ भी नहीं छुपाया। आमतौर पर जब लोग कुछ स्टॉक वगैरह खरीदते हैं तो उसके बारे में दूसरों को नहीं बताते। लेकिन राकेश ऐसे नहीं थे। वह दिल के बहुत खुले थे, उनमें बनावट जरा भी नहीं थी। उनका मानना था कि स्टॉक मार्केट से सबका पैसा बनना चाहिए।
स्टॉक रिंग में हम ना मिल पाएं तो नीचे दलाल स्ट्रीट पर मिलते। कई बार राकेश ऑफिस ही आ जाते। जब भी मिलते बस स्टॉक्स की बातें होतीं। और कुछ नहीं। हम कहीं भी मिलें, हाय-हेलो की जगह एक ही सवाल होता- क्या लगता है मार्केट का? उसी बात से बातें निकलतीं कि नहीं-नहीं, ऐसा खराब है, वैसा खराब है। उनका आउटलुक हमेशा पॉजिटिव रहा। जो भी बोलते, अपने ज्ञान के हिसाब से लोगों को बहुत अच्छे से समझाते थे।
राकेश ऐसे इंसान थे, जिनकी एक रेयर स्किल थी। वह आदमी भी रेयर ही थे। उनकी कंपनी का नाम भी रेयर है। उनकी रेयर स्किल थी- कंपनी, मार्केट और इकॉनमी के बारे में समझना और फिर सब मिलाकर हिसाब लगाना कि कंपनी को स्टॉक मार्केट में किस दाम में और कब लेना चाहिए। यह स्किल बहुत कम लोगों में होती है। आमतौर पर जो एनालिस्ट होता है, उसको कंपनी के बारे में तो पता होता है लेकिन वह स्टॉक मार्केट को एनालाइज नहीं कर पाता। मार्केट कहां, कब, कैसे और क्यों जाएगा, इसका उसे अंदाजा नहीं होता। या इकॉनमी से उसका कोई लिंक नहीं होता। राकेश की पहचान इसलिए अलग हटकर थी।
राकेश का कन्विक्शन ऐसा था कि खुलकर सबको बता देते कि मैंने ये शेयर लिया आज, तू भी ले ले। 1991-92 के बाद हिंदुस्तान में भी बहुत सारे फंड इन्वेस्टर्स आए। राकेश झुनझुनवाला एक तरह से उन सबके सलाहकार भी थे। आप उन्हें पसंद ना करें, फिर भी उन्हें इग्नोर नहीं कर सकते थे। कमरे में बैठकर सोचा करते कि क्या होने वाला है, फिर काफी रिसर्च करते। उनमें लोगों को सुनने की भी अच्छी क्षमता थी। वह जानते थे कि जब आप सुनते हैं, तभी आपको विषय के बारे में पता चलता है। फिर उसी प्रतिबद्धता और पैशन के साथ वह शेयर होल्ड भी करते थे।
राकेश जब भी मिलते, मैं पूछता- क्या लगता है राकेश? वह बोलते- तेजी, तेजी, तेजी। कहते, घर बेचकर शेयर लो, बंगला बेचकर शेयर लो, लेकिन शेयर कभी बेचना नहीं। स्टॉक मार्केट में आमतौर पर बोलते हैं कि तेजी हमेशा परमानेंट है, मंदी टेंपरेरी है। तो राकेश भी हमेशा यही बोलते कि तेजी करके बहुत पैसा बना सकते हैं। उन्होंने और उनसे जुड़े दूसरे लोगों ने भी पैसा बनाया। शेयर बाजार में उनके पीछे बहुत सारे रिटेल इन्वेस्टर्स, बहुत सारे नए लोग आए कि राकेश कर सकते हैं तो हम क्यों नहीं कर सकते!
राकेश अपने आप में मार्केट मूवर थे। अगर उन्होंने कोई स्टॉक खरीद लिया तो अपने आप वह बढ़ जाता था। उन पर लोगों का एक तरह से अंधा विश्वास था। लेकिन इस भरोसे के पीछे उनकी रिसर्च, प्रतिबद्धता और समझ होती थी। उनकी इसी चीज से बहुत सारे लोगों ने खूब पैसा बनाया। स्टॉक मार्केट में किसी एक को वेल्थ क्रिएशन का शहंशाह बोलना हो तो मैं राकेश का नाम लूंगा। देश के लिए वह बेहद आशावान थे। हमेशा कहते कि इंडिया के दिन हैं, अगले दस-बीस-तीस साल में बहुत प्रोग्रेस करेगा। वह बहुत बिंदास और खुलकर बोलते, लेकिन उनकी बात का कोई बुरा नहीं मानता था। लोगों को लगता कि थोड़ा रफ बोल रहा है, लेकिन उनका अपना एक जज्बा था, अपना एक तरीका था लोगों से शेयर करने का। वह दिल से बात करते थे, इसलिए लोगों के दिलों पर राज भी करते थे।
चैरिटी में दे दी प्रॉपर्टी
राकेश हम सबको बहुत कुछ सिखाकर गए हैं, अपनी एक लेगेसी छोड़कर गए हैं। यहां पर मैं एक चीज देखता हूं कि स्टॉक मार्केट में कि यही वो जगह है जहां आप सीख सकते हैं, कमा सकते हैं और रिटर्न भी पा सकते हैं। मगर राकेश ने अपनी संपत्ति का एक बड़ा हिस्सा चैरिटी में दे दिया। यह एक मिसाल है। हिंदुस्तान में बहुत कम लोग ऐसे हुए हैं ,जिन्होंने बोला है कि मेरी वेल्थ का पचीस, पैंतीस टका या वन थर्ड चैरिटी के लिए है। यह उनकी शख्सियत का एक और पहलू है। वह बहुत सारी कंपनियों के बोर्ड में भी रहे। बहुत सारी कंपनियां प्रमोट भी कीं। हमेशा गाइडेंस के लिए अवेलेबल रहते थे। मुझे लगता है कि उनके जाने से स्टॉक मार्केट और देश को भी एक बड़ा नुकसान हुआ है। इसकी भरपाई बहुत मुश्किल है।
(लेखक मोतीलाल ओसवाल फाइनैंशल सर्विसेज के प्रबंध निदेशक हैं)